राकेश अचल
सोशल मीडिया की ताकत को लेकर सरकारें ही नहीं अपितु अदालतें भी संवेदनशील नजर आने लगी हैं। उन्हें सोशल मीडिया बन्दूक की तरह लगता है इसलिए वे इस पर रोक के लिए निर्देश देने के लिए उतावली नजर आ रही हैं। सवाल ये है कि क्या भविष्य में सचमुच सरकारें और अदालतें सोशल मीडिया के इस्तेमाल को बन्दूक के इस्तेमाल की तरह प्रतिबंधित कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कुछ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंदूक की तरह करते हैं। अगर कोर्ट बंदूक से दूर रहने का आदेश दे सकती है तो इसी तरह सोशल मीडिया से दूर रहने का आदेश भी दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अमरोहा के कांग्रेस नेता की याचिका पर सुनवाई के दौरान शुक्रवार को कहा, वह जमानत के दौरान आरोपी के सोशल मीडिया से दूरी बनाने के संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी करेगा।
इस समय देश और दुनिया में सोशल मीडिया की ताकत और उसके इस्तेमाल को लेकर अंतहीन बहस चल रही है। दुनिया में अनेक देश ऐसे हैं जो सोशल मीडिया को प्रतिबंधित या सीमित कर चुके हैं लेकिन इस माध्यम से आतंकित ताकतों का काम भी इस सोशल मीडिया के बिना चल नहीं पा रहा है। भारत की बात करें तो एक आंकड़े के अनुसार देश में इस समय करीब 35 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। यह संख्या आने वाले एक दशक में 45 से 50 करोड़ तक हो सकती है। कोरोना संकट के बाद भारत जैसे देश में जहाँ सरकार ने आरोग्य ऐप को डाऊनलोड करना आवश्यक कर दिया है वहां ये संख्या और ज्यादा हो सकती है।
आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे सचिन चौधरी को जमानत देते वक्त इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया से दूरी रखने की शर्त लगाई थी। चौधरी ने इसको शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी है। सीजेआई एसए बोबडे की पीठ ने कांग्रेस नेता की याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा, हम इस मामले में दिशा-निर्देश जारी करेंगे। पीठ ने चौधरी के वकील सलमान खुर्शीद से कहा, हमें हाईकोर्ट के फैसले में कुछ गलत नहीं दिखाई देता। अगर सोशल मीडिया के इस्तेमाल से किसी को नुकसान पहुंचने की आशंका है तो अदालत क्यों नहीं ऐसा आदेश पारित कर सकती?
इस समय दुनिया में सोशल मीडिया के कई रूप हैं जिनमें इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। सब जानते हैं कि सोशल मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। नील्सन के अनुसार ‘इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’।
सवाल ये है कि क्या सोशल मीडिया ‘सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय है?’ दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, ‘वर्चुअल’ और ‘फिजिकल सिविलाइजेशन’। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। इस हकीकत से कोई इंकार नहीं कर सकता कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। और शायद इसीलिए सरकारें और अदालतें इसके इस्तेमाल को लेकर चिंतित दिखाई देने लगी हैं।
सोशल मीडिया ने लोगों को जहाँ अभिव्यक्ति की आजादी दी है वहीं लोगों की निजता के अधिकार के हनन का अवसर भी दिया है। यह भ्रम, सनसनी, अफवाहें फ़ैलाने का औजार भी बन गया है। ऐसे में इसके खतरों को देखते हुए यदि अदालतें और सरकारें सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने के लिए कदम उठाती हैं तो कोई अचरज की बात नहीं है। पिछले एक दशक में हम सोशल मीडिया के लाभ-हानि से खूब परिचित हो चुके हैं।
लापरवाही से इसका इस्तेमाल करने वाले बड़ी संख्या में सत्ता और रसूखदार लोगों के कोप का शिकार भी हुए हैं। अनेक लोगों को हवालातों में हवा और लातें दोनों खाना पड़ी हैं। लेकिन क्या इन सब कारणों से सोशल मीडिया प्रतिबंधित किया जा सकता है? शायद नहीं, क्योंकि अब ये माध्यम प्रशासन और व्यापार दोनों की जरूरत बन चुका है। एक साथ, एक पल में, पलक झपकते, एक बड़ी आबादी तक पहुँचने का अब कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं है हमारे पास।
भारत में अपराध की अनेक वारदातें सोशल मीडिया खातों के जरिये ही पकड़ में आईं। इसी के सहारे लंदन दंगों में शामिल कई लोगों को वहाँ की पुलिस ने पकड़ा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए। बैंकुअर दंगे के कई अहम सुराग देने में सोशल मीडिया की बडी भूमिका रही। मिस्र के तहरीर चौक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है?
इस सबके बावजूद सोशल मीडिया के ऊपर संकट लगातार बढ़ रहा है और निकट भविष्य में जब ये सत्ता के लिये चुनौती बन जाएगा, तो इसके पंख कतरे जरूर जायेंगे। इसलिए आवश्यक है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोग जागरूकता, सतर्कता के साथ इसका इस्तेमाल करें और सत्ता तथा अदालतों को इसका गला घोंटने का कोई भी अवसर न दें।
सोशल मीडिया की पहुँच तकनीकी क्रान्ति के साथ निरंतर बढ़ रही है। अब दुनिया की अधिकांश भाषाओं में सोशल मीडिया के इस्तेमाल की सुविधा है। सोशल मीडिया के पास यदि पहुँच है तो भाषाओं के पास अपनी शक्ति है, जो जादू का सा असर छोड़ती है। आज दो साल के बच्चे से लेकर सौ साल तक के बुजुर्ग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोरोना संकट में जबरन भोगना पड़ रहे एकांतवास ने सोशल मीडिया की उपयोगिता को एक बार फिर प्रमाणित किया है।
सोशल मीडिया के जरिये संपर्क ही नहीं चिकित्सा और जागरूकता दोनों का लाभ सरकारों और समाज ने उठाया है। अत: इसके इस्तेमाल को लेकर सरकारों और अदालतों की धमकियां भी कितनी कारगर होंगी अभी कहा नहीं जा सकता।