उमेश त्रिवेदी
भले ही आम आदमी पार्टी के बीस सदस्यों की सदस्यता रद्द करने के बाद दिल्ली विधान सभा में आम आदमी पार्टी की सरकार और अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्रित्व पर कोई असर नहीं पड़े, लेकिन पार्टी के लिए यह राजनीतिक सदमा भारी सिद्ध होगा। इससे उबरना आसान नहीं है। इसके बाद भाजपा और कांग्रेस से एक साथ लड़ रही आम आदमी पार्टी पर अंगारों की बारिश ज्यादा तेज होगी। चुनाव आयोग ने लाभ के पद के दुरुपयोग के आरोप में इन विधायकों की सदस्यता रद्द की है। मार्च 2015 में केजरीवाल सरकार ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था।
चुनाव आयोग के फैसले के राजनीतिक-निहितार्थ और नीयत पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं। इस घटना से भाजपा और कांग्रेस के राजनीतिक-गलियारों में खुशी का माहौल है। इससे आम आदमी पार्टी पर उनके राजनीतिक हमलों को धार मिल गई है। अरविंद केजरीवाल वैसे भी काफी पहले से ’डिफेन्सिव-मोड’ में राजनीति कर रहे हैं। केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आक्रामकता की नीति में बदलाव करते हुए खामोशी से काम कर रहे थे। खामोशी के राजनीतिक-कवच में केजरीवाल ने कई उल्लेखनीय काम किए है।
भाजपा और कांग्रेस उनके कामों में खोट निकालने में असमर्थ महसूस करते थे। अब उन्हें हमला करने का नायाब अवसर मिल गया है। कांग्रेस और भाजपा ने समवेत स्वरों में मांग की है कि जिस सरकार के आधे लोग भ्रष्टाचार के आरोपों में बर्खास्त किए गए हों, उसे सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं हैं। राज्यसभा में गुप्ता-बंधुओं की नामजदगी के मसले में भी अपनी ही पार्टी में जबरदस्त आलोचना झेल रहे केजरीवाल के सिर पर चुनाव आयोग ने कांटों का ताज रख दिया है।
‘आप’ का कहना है कि यह फैसला विधायकों को सुने बिना हुआ है। विधायकों की गवाही और सबूतों को जाने बिना यह बर्खास्तगी करके आयोग ज्यादती कर रहा है। आप-नेता नागेन्द्र शर्मा ने मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार जोति पर आरोप लगाया है कि वो प्रधानमंत्री मोदी के उपकारों का नमक अदा कर रहे हैं। आप-नेता आशुतोष ने कहा है कि चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री कार्यालय का लेटर-बॉक्स नहीं होना चाहिए। आयोग को इतने निचले स्तर पर काम करते देखने का उनका पहला तजुर्बा है।
अचल कुमार जोति 1975 बैच के गुजरात काडर के पूर्व आयएएस अधिकारी हैं। मोदी के मुख्यमंत्रित्व-काल में वे तीन साल तक राज्य के मुख्य सचिव रहे थे। 2103 में रिटायर होने के बाद मोदी ने उन्हें राज्य का सतर्कता आयुक्त भी नियुक्त किया था। अपने गुजरात कनेक्शन के कारण जोति पर उस वक्त भी राजनीतिक-पक्षपात के आरोप लगे थे, जब उन्होंने हिमाचल के चुनाव की घोषणा के साथ गुजरात विधानसभा के चुनाव कराने का ऐलान नहीं किया था।
जोति पर आरोप लगा था कि यह विलम्ब इसलिए किया गया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी चुनाव के पहले गुजरात में विकास-कार्यो की घोषणा करके राजनीतिक-लाभ कमाना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी ने कहा है कि जोति ने अपने जन्म दिन 23 जनवरी के पहले यह निर्णय इसलिये लिया है कि वो उस दिन सेवानिवृत्त होने वाले हैं। बताया जाता है कि सोमवार को जोति रिटायर हो रहे हैं। वे जुलाई 2017 में महज सात महीनों के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे।
केजरीवाल के बचाव में सबसे पहले बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी आई हैं। उनका कहना है कि एक संवैधानिक संस्था का उपयोग राजनीतिक फायदे के लिए नहीं करना चाहिए। इस मामले में चुनाव आयोग ने बर्खास्त विधायकों को नहीं सुना। यह प्राकृतिक न्याय के सिध्दांतों के खिलाफ है। इस कठिन समय में हम अरविंद केजरीवाल के साथ खड़े हैं।
दिल्ली के एक वकील प्रशांत पटेल ने नियुक्तियों को लाभ का पद निरुपित करते हुए राष्ट्रपति से इन विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। राष्ट्रपति ने मार्च 2016 में याचिका को चुनाव आयोग के पास भेजा था। केजरीवाल-सरकार ने इस गलती की मरम्मत के लिए विधानसभा में रिमूवल ऑफ डिस्क्वालिफिकेशन एक्ट 1997 में संशोधन करके उसे राष्ट्पति की मंजूरी के लिए भेजा था, लेकिन राष्ट्रपति ने उसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। केजरीवाल इस संशोधन के जरिए भूतलक्षी प्रभाव से संसदीय सचिवों को लाभ के पद के दायरों से बाहर निकालना चाहते थे। यह मामला 21 विधायकों के विरुध्द था, लेकिन विधायक जरनैल सिंह के इस्तीफे के बाद यह संख्या बीस रह गई थी।
(सुबह सवेरे से साभार)