अजय बोकिल
उफ्! कहां तो बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह की मौत का मर्डर एंगल पुख्ता करने की बात हो रही थी और कहां अब बॉलीवुड में ड्रग्स की परतें उधेड़ी जा रही हैं। आलम यह है कि सुशांत की मौत की राजनीतिक लाइन ‘ट्रैक’ पर रखने के लिए भी सोशल मीडिया पर अभियान छेड़ना पड़ा है। क्योंकि ड्रग एंगल उस पर हावी हो गया है। बात अब ‘थाली में छेद’, अपनी-अपनी थाली और बॉलीवुड को ‘ड्रग्सवुड’ के रूप में बदनाम करने तक आन पहुंची है। लगता है सुशांत को इंसाफ दिलाने की पूरी मुहिम ड्रग्स की काली और अंधेरी दुनिया में गुम होती जा रही है।
सुशांत प्रकरण की मुख्य आरोपी मानी जा रही रिया चक्रवर्ती के ड्रग्स खुलासों ने पूरे मामले को ऐसा नया मोड़ दे दिया है कि लोगों की दिलचस्पी सुशांत की मौत की वजह जानने से ज्यादा बॉलीवुड के नशेड़ी चेहरों और उन स्टार किड्स की असली जिंदगी के चेहरे चीन्हने में हो गई है, जहां पैसा, प्रसिद्धि, नशा और बेलगाम जिंदगी का कॉकटेल जबर्दस्त किक मारता दिखलाई दे रहा है।
इस लिहाज से सुशांत प्रकरण इस बात की केस स्टडी होनी चाहिए कि अपराध या हादसे के किसी मामले को राजनीतिक रंग में रंगने का अंजाम क्या और कहां तक जा सकता है? इंसाफ दिलाने की मुहिम आत्मग्लानि के आईने में कैसे बदल सकती है? जबकि हकीकत में अभिनेता सुशांत की संदिग्ध मौत का रहस्य तीन महिने बाद भी अनसुलझा है। एम्स दिल्ली के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम 20 सितंबर को फैसला करने वाली है कि आखिर सुशांत ने खुदकुशी की या उसे मारा गया।
मुंबई पुलिस पहले ही इस नतीजे पर पहुंच चुकी थी कि सुशांत ने आत्महत्या की थी। लेकिन इस मामले पर राजनीतिक रस्साकशी शुरू होने के बाद सुशांत के परिजनों और समर्थकों ने घटना की सीबीआई जांच की मांग की, जिसे केन्द्र की भाजपा सरकार ने मान लिया। लेकिन सीबीआई भी महीने भर बाद किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकी है, बावजूद टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के इस दबाव के कि सुशांत की मौत को मर्डर घोषित करो।
अब तक मिली सूचनाओं का निहितार्थ यही है कि भले सुशांत को किसी ने आत्महत्या के लिए उकसाया हो, लेकिन उसे किसी ने मारा है, इसके ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। बहरहाल जांच जारी है। फिलवक्त तस्वीर यह है कि सीबीआई की जांच के बीच ही सनसनी और ठोस सबूतों के मामले में ड्रग्स और नारकोटिक्स विभाग सीबीआई से आगे निकलता दिख रहा है। यह भी साफ होता जा रहा है कि रजत पट की यह रंगीन दुनिया भीतर से कितनी काली है।
सपा सांसद और जानी-मानी अभिनेत्री जया बच्चन का यह कहना अपनी जगह सही है कि रिया प्रकरण के बहाने पूरे बॉलीवुड को नशेड़ी साबित करने की मुहिम चल रही है। यह जिस थाली में खा रहे हैं, उसी में छेद करने जैसा है। लेकिन इस थाली में क्या-क्या परोसा जा रहा है, यह भी उजागर होना चाहिए। यह सही है कि बॉलीवुड बुनियादी तौर पर प्रतिभाशाली लोगों की दुनिया है, लेकिन यह भी सच है कि इस दुनिया में नशे का जहर तेजी से घुलता जा रहा है।
गुजरे जमाने में इसके लिए मुख्य रूप से शराब को दोषी माना जाता था, लेकिन नई सदी में नशे की दुनिया में ‘दारू’ की हैसियत ‘बीयर’ से भी गई बीती हो चुकी है। बॉलीवुड की युवा पीढ़ी की पसंद अब वीड्स, मारिजुआना, हशीश, चरस, अफीम, कोकेन और एमडी जैसे सिंथेटिक ड्रग्स हैं, जिसके लिए खास तौर पर पार्टियां होती हैं। आज के कई चमकते चेहरे इन ड्रग्स के लतियल रह चुके हैं। इन पार्टियों में वो सब होता है, जिस पर एक सामान्य व्यक्ति शर्मसार ही हो सकता है।
कहते हैं कि बॉलीवुड और उसकी जीवन शैली इस बात का बैरोमीटर है कि हमारा समाज कैसे और किस तेजी से बदल रहा है। हमारे जीवन मूल्य किस तरह बदल रहे हैं। जो कुछ आज काल्पनिक-सा लगता है, वह कल की मुख्य धारा नहीं बनेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। कुछ लोग गरीबी और अभावों के कारण नशे के इस धंधे में लिप्त हो जाएं, यह बात फिर भी समझ आती है, लेकिन रिया ने जिन नामों का खुलासा किया है, उन्हें किस बात की कमी है?
पैसा और शोहरत तो बचपन से उनके चरण चूमते हैं। गोया उनका इस दुनिया में अवतरित होना ही काफी है। जबकि एक आम इंसान इन दो बातों के लिए सारी उम्र खपा देता है, लेकिन बॉलीवुड की ये ‘होनहार’ संतानें खुद को नशे के समंदर में डुबोने में जिंदगी खपा रही हैं। इसे हम क्या मानें? जया बच्चन और भाजपा नेत्री हेमामालिनी ने भी पूरे बॉलीवुड को बदनाम करने का विरोध किया है। बात सही है कि सभी लोग गलत रास्ते पर नहीं है। अधिकांश ऐसे हैं, जिन्होंने संघर्षों के बाद इज्जत और दौलत कमाई है। लेकिन कई ऐसे भी हैं, जिनके लिए उपलब्धि का अर्थ सिर्फ नशे में जीना है। ये नशा शोहरत और दौलत का तो था ही, अब ड्रग्स का असली नशा भी इसमें शुमार हो गया है।
इस प्रहसन में एक एंगल मुंबई को बदनाम करने का भी है। कहा गया कि मुंबई और प्रकारांतर से बॉलीवुड को ‘ड्रग्सवुड’ साबित करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सिर्फ नशे के कारोबार की बात की जाए तो देश की राजधानी नई दिल्ली इस मामले में भी मुंबई से आगे है। दो साल पहले एक जर्मन डाटा फर्म एबीसीडी ने अपने अध्ययन में बताया था कि मादक पदार्थ मारिजुआना के अवैध कारोबार में दिल्ली, मुंबई से काफी आगे है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दक्षिण एशिया में भारत नशे के कारोबार का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहां ड्रग्स पंजाब, राजस्थान, की सरहद से लाए जाते हैं। जबकि देश में गोवा इस तरह के अवैध कारोबार का सबसे बड़ा केन्द्र है। सबको पता है कि सुशांत, रिया, कंगना की आड़ में वो लड़ाई लड़ी जा रही है, जिसे ‘सत्ता का नशा’ कहते हैं। इस नशे का कोई उतार नहीं होता और न ही इस पर ड्रग्स और नारकोटिक्स विभाग का कोई बस चलता है।
सत्ता की ये वो ‘थाली’ है, जिसे हर कोई अपने पाले में खींचकर उसे भरपेट जीमना चाहता है। इस परोक्ष सत्ता संघर्ष में बड़ी सफाई के साथ बॉलीवुड को भी खींच लिया गया है। नतीजा ये कि जो बॉलीवुड सुशांत की मौत पर बंटा था, वह अब ‘ड्रग्सवुड’ पर भी विभाजित हो गया है। भाजपा सांसद रवि किशन की यह मांग सही है कि बॉलीवुड में पनप रही ‘नशे की काली दुनिया’ बेनकाब होनी चाहिए। काला धंधा, काला ही होता है। लेकिन यह किस सीमा तक जाएगा, कोई नहीं जानता।
आश्चर्य नहीं कि जिस सुशांत को इंसाफ दिलाने के लिए मुहिम की शुरुआत हुई थी, उसके हाथ भी उसी नशे की दुनिया में सने दिखें, जिसकी आड़ में भाजपा और महाराष्ट्र में महाआघाड़ी के ठाकरे व पवार को घेरा जा रहा है। नशे की जांच ने और किक मारी तो इसमें रिया, उसका भाई शोविक ड्रग यूज और पैडलिंग के आरोप में तो फंसेंगे ही, लेकिन अपने साथ कई और चेहरों को लपेट लेंगे। अभी बिहार चुनाव के मद्देनजर पांसे सुशांत के पक्ष में फेंके जा रहे हैं, लेकिन कल को पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में इंसाफ के कटघरे में ‘सुशांत’ की जगह ‘रिया’ भी दिखाई दे सकती है।
कुल मिलाकर जो खेल खेला जा रहा है, वह अंतहीन है। याद रहे कि इस खेल में नेताओं की दिलचस्पी तो चुनावी हार-जीत के साथ खत्म हो जाएगी, लेकिन बॉलीवुड को जो घाव लगेंगे, उससे उबरने में उसे बरसों लग जाएंगे। बड़ा सवाल यह है कि क्या बॉलीवुड इस पूरे घटनाक्रम से कोई सबक लेगा या फिर इसे भी एक ‘फिल्मी कहानी’ मानकर दरकिनार कर देगा?