भारत का इतिहास एक बार फिर निशाने पर है…

महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती से ठीक दो दिन पहले देश में एक बार फिर भारत के इतिहास के पुनर्लेखन की बात उठी है। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व सिविल सेवा अधिकारी मंच की ओर से नेहरू मेमोरियल में आयोजित पांचवी वार्षिक व्याख्यानमाला के समापन कार्यक्रम में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा-वर्तमान परिप्रेक्ष्य’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अब वक्त आ गया है कि देश का ‘सच्चा इतिहास’ लिखा जाए।

अमित शाह ने इतिहास के पुनर्लेखन के अपने आग्रह के दौरान खासतौर से कश्‍मीर का संदर्भ दिया और कहा कि कश्मीर का इतिहास तोड़-मरोड़कर देश के सामने रखा गया, क्योंकि जिनकी गलतियां थीं उन्हीं के हिस्से में इतिहास लिखने की जिम्मेदारी भी आ गई। उन्होंने अपनी गलतियों को छुपाकर, जानकारियां जनता के सामने रखीं। अब समय आ गया है कि ‘सच्ची’ जानकारी जनता के सामने रखी जाए।

शाह बोले- आजादी के वक्त 630 रियासतों को एक करने में कोई दिक्कत नहीं आई, मगर जम्मू-कश्मीर को एक करने के लिए पांच अगस्त 2019 तक इंतजार करना पड़ा। जब एक देश आजाद होता है तो उसके सामने सबसे पहले सुरक्षा, संविधान निर्माण जैसे बुनियादी प्रश्‍न होते हैं लेकिन भारत के सामने 630 रियासतों को एक करने का प्रश्न आ गया।

‘’630 अलग-अलग रियासतें एक देश में समाहित करना और अखंड भारत बनाना ये हमारे लिए बहुत बड़ा चुनौती का काम था, लेकिन देश के प्रथम गृह मंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे पूरा किया। वे न होते तो ये काम कभी न हो पाता। पटेल की ही दृढ़ता का परिणाम है कि 630 रियासतों वाला भारत एक देश के रूप में आज दुनिया में अपना अस्तित्‍व रखता है।‘’

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का जिक्र करते हुए शाह ने कहा कि उनकी ओर से असमय सीज फायर की घोषणा के कारण ही पाक अधिकृत कश्‍मीर का जन्म हुआ। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना उनकी बहुत बड़ी गलती थी, हिमालय से भी बड़ी गलती। नेहरू ने दूसरी गलती तब कि जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में मामले को संदर्भित करने के लिए गलत चार्टर का चयन कर लिया।

देश और दुनिया में जब कश्‍मीर का मुद्दा गरमाया हुआ है ऐसे समय में गृह मंत्री का यह बयान कई मायने रखता है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा संपन्‍न हुई है। इस यात्रा के दौरान ‘हाउडी मोदी’ और संयुक्‍त राष्‍ट्र में उनके भाषण पर अलग अलग एंगल से बहस अभी जारी है। ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की मौजूदगी, उसी कार्यक्रम में मोदी के द्वारा दिया गया ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा, दोनों नेताओं की संयुक्‍त प्रेस कान्‍फ्रेंस में भारत पाक संबंधों के संदर्भ में ‘इस्‍लामी आतंकवाद’ को लेकर ट्रंप का यह कहना कि मोदी सब निपट लेंगे, ये सारी बातें अलग अलग तर्कों और विश्‍लेषणों के साथ हवा में तैर रही हैं।

इस समय जब अनुच्‍छेद 370 को खत्‍म किए जाने के बाद जम्‍मू-कश्‍मीर में जारी प्रतिबंधों की मियाद को लगभग दो माह होने जा रहे हैं। देश के भीतर और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सरकार पर लगातार यह दबाव बन रहा है कि कश्‍मीर में हालात सामान्‍य किए जाएं। ऐसे समय जब खुद सरकार कह चुकी है कि जम्‍मू कश्‍मीर में जल्‍दी ही पंचायतों के चुनाव कराए जाएंगे और ऐसी परिस्थितियों में जब किसी को अनुमान नहीं है कि घाटी में पाबंदियों को खत्‍म करने के बाद क्‍या हालात बनेंगे, गृह मंत्री का यह कहना कि कश्‍मीर का सच्‍चा इतिहास लिखा जाना चाहिए आखिर क्‍या संकेत देता है?

दरअसल यह इतिहास के पुनर्लेखन का नहीं बल्कि इतिहास बदलने का मामला है। भौगोलिक रूप से जम्‍मू-कश्‍मीर-लद्दाख की नई जनमपत्री तैयार करने के बाद उन किताबों के पन्‍नों को भी बदल देने का प्रयास है जिन्‍हें पढ़ाकर और जिन्‍हें पढ़कर आजाद भारत की पीढ़ी बड़ी हुई है। निश्चित रूप से यह काम आसान नहीं होगा। जिन लोगों के दिल-दिमाग पर अभी तक बताई गई बातें शिलालेख की तरह खुदी हुई हैं उन्‍हें खुरच पाना अव्‍वल तो इतनी जल्‍दी संभव होना मुश्किल है और यदि हो भी गया तो यह कहना और मुश्किल है कि उस खुरच के निशान कितने दिनों तक रहेंगे।

दरअसल इतिहास को लेकर भारत में हमेशा से विवाद रहा है। मुख्‍य रूप से ऐतिहासिक तथ्‍यों को लेकर देश में दो धाराएं चलती आई हैं। एक दक्षिणपंथी और दूसरी वामपंथी। भारत पर करीब छह दशक तक राज करने वाली कांग्रेस मोटे तौर पर वामपंथी धारा के साथ ही रही है और यही कारण रहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्‍ता में आने के बाद जिन बातों पर प्राथमिकता से काम करने की शुरुआत की उनमें इतिहास का पुनर्लेखन भी शामिल है।

गृह मंत्री के बयान को लेकर भी दोनों धड़ों में एक बार फिर टकराव और विवाद की स्थिति बन सकती है। मोदी सरकार बनने के चंद माह बाद ही दिसंबर 2018 में वामपंथी इतिहासकारों के वर्चस्‍व वाली ‘इंडियन हिस्‍ट्री कांग्रेस’ ने अपने प्‍लेटिनम जुबली सत्र में एक प्रस्‍ताव पारित कर प्रधानमंत्री सहित अन्‍य नेताओं से कहा था कि ‘’वे स्थापित ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत बयान न दें।‘’ उनका कहना था कि ऐसी हल्की एवं गैर जिम्मेदाराना टिप्पणियों से भारत की छवि धूमिल होती है। वे इस बात से विचलित हैं कि कुछ ‘प्रभावशाली क्षेत्रों’ से यह आवाज उठायी जा रही है कि प्राचीन मिथकों एवं अटकलों से भरे तिथिक्रमों के आधार पर भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन करने की जरूरत है।

जाहिर है गृहमंत्री का ताजा बयान भी गैर दक्षिणपंथी इतिहासकारों और इंडियन हिस्‍ट्री कांग्रेस जैसी संस्‍थाओं द्वारा अपने इसी रुख के परिप्रेक्ष्‍य में देखा जाएगा। लेकिन दूसरी ओर यह भी तय है कि सरकार ने तमाम विरोधों और अवरोधों के बावजूद जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 को खत्‍म करने की जैसी दृढ़ता दिखाई है वैसी ही दृढ़ता इतिहास को लेकर भी दिखाई देगी। यानी आने वाले दिनों में टकराव सिर्फ जमीन पर ही नहीं किताबों में और किताबों पर भी दिखाई देगा।

यह कहना मुश्किल है कि ‘सच्‍चा इतिहास’ क्‍या होता है और उसकी परिभाषा क्‍या है। इतिहास सच्‍चा होता है इस पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं और इस बात पर भी, कि इतिहास की वह ‘सच्‍चाई’ आखिर किसकी सच्‍चाई है। भारत जैसे समाज में जहां इतिहास और मिथक आपस में गले मिलते हुए चलते आए हैं या कि जो सीने से जुड़े हुए बच्‍चों की तरह एक साथ ही पैदा हुए हैं, उन्‍हें सचमुच में अलग कर पाना संभव हो पाएगा या नहीं, कहना मुश्किल है।

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