राकेश दुबे

भारत जनसंख्या के मामले में सबसे अव्वल है और इसी भारत में हर साल बारह से सोलह मिलियन टन अनाज पर्याप्त भंडारण सुविधा के अभाव में बर्बाद हो जाता है। इतने अनाज से देश के एक तिहाई गरीबों का पेट भरा जा सकता है।

कृषि, उत्पादन, भंडारण और वितरण में सामंजस्य न बैठ पाने ऐसी तस्वीरें सामने का रही है जो विचलित करती है। जैसे- मंडियों व सरकारी गोदामों के बाहर पड़ा बारिश में भीगता अनाज। ग्लोबल वार्मिंग से मौसम के मिजाज में खासा बदलाव आया है। कब बारिश हो जाये कहना मुश्किल है। हालांकि, अब मौसम विभाग को उपग्रहों की मदद से मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना संभव हुआ है। कुछ दिन पहले बता दिया जाता है कि फलां दिन मौसम खराब होगा या बारिश होगी। लेकिन वे तस्वीरें विचलित करती हैं जब मंडियों व सरकारी गोदामों के बाहर पड़ा गेहूं बारिश में भीगता दिखायी देता है।

जाहिर है जिन विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी अनाज भंडारण व संरक्षण की होती है, वे अपनी जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वाह नहीं करते। हाल ही में वे तस्वीरें परेशान करती रहीं जिनमें किसान मंडियों में खरीद के लिये रखे अनाज को असमय बारिश से बचाने का प्रयास करते नजर आये। दरअसल, खरीद प्रक्रिया की जटिलताओं के चलते भी खरीद में विलंब होने से काफी अनाज मंडियों के परिसरों में पिछले दिनों भीगता नजर आया है।

खुले में खराब होता अनाज हर किसी संवेदनशील व्यक्ति को परेशान करता है। कैसे किसान अनाज को अपनी खून-पसीने की मेहनत से सींचता है और तंत्र की काहिली से वह अनाज खराब हो जाता है। उसकी गुणवत्ता खराब होने से किसान को अनाज औने-पौने दाम में बेचने के लिये बाध्य होना पड़ता है। यह विडंबना है कि जिस देश में भूख व कुपोषण के आंकड़े शर्मसार करते हों वहां लाखों टन अनाज संवेदनहीन तंत्र की लापरवाही से यूं ही बर्बाद हो जाता है। हमारी अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण घटक खाद्यान्न का यूं खराब हो जाना एक आपराधिक लापरवाही का ही नतीजा है। जाहिर है देश में अवैज्ञानिक तरीके से अनाज भंडारण के चलते ही ऐसी समस्या उपजती है।

पिछले दिनों खबर आई कि हरियाणा में कहीं किसानों को अपना अनाज बचाने के लिये उसका भंडारण श्मशान घाट के शेड में करना पड़ा। गाहे-बगाहे मीडिया में अन्न की बर्बादी की खबरें विचलित करती हैं। वहीं अनाज भंडारण व संरक्षण से जुड़े विभागों के कर्मचारियों द्वारा भी अनाज को नुकसान पहुंचाने की खबरें आती हैं।

एक अनुमान के अनुसार, देश में हर साल बारह से सोलह मिलियन टन अनाज पर्याप्त भंडारण सुविधा के अभाव में बर्बाद हो जाता है। इतना अनाज देश के एक तिहाई गरीबों को खिलाने के लिये पर्याप्त होता, लेकिन दशकों से चले आ रहे संकट के बावजूद वैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ भंडारण की दिशा में गंभीर प्रयास होते नजर नहीं आये। इसके लिये जरूरत के मुताबिक निवेश भी नहीं किया गया। होना तो यह चाहिए था कि फसल की कटाई के बाद नुकसान को कम करने के लिये नयी तकनीक के इस्तेमाल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती। जिससे लाखों टन अनाज को बर्बाद होने से बचाया जा सकता।

कोरोना महामारी तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पूरे विश्व में पैदा हुए खाद्यान्न संकट के मद्देनजर अनाज के महत्व को समझा जाना चाहिए। दरअसल, अनाज के उत्पादन से लेकर उपभोग तक की आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक चरण में यह नुकसान होता है। इसके अलावा खाद्यान्न की मात्रा के साथ ही गुणात्मकता के लिये सुरक्षित भंडारण की सुविधा बेहद जरूरी है। एक अध्ययन के मुताबिक अनाज की कटाई, थ्रेशिंग, परिवहन व भंडारण के दौरान भारी मात्रा में अनाज बर्बाद हो जाता है। प्रतिकूल मौसम में आये दिन होने वाली बारिश व ओलावृष्टि से हम अनाज को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं कर पाये हैं।

वहीं दूसरी ओर हर साल किसान अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन कर रहे हैं। आज स्टील का ढांचा बनाकर उसे प्लास्टिक आदि की चादरों से ढककर अनाज भंडारण की अस्थायी व्यवस्था की जाती है, लेकिन छोटे किसान के लिये यह व्यावहारिक नहीं है। हालांकि ग्राम पंचायत स्तर पर प्रौद्योगिकी संचालित सुविधाएं स्थापित करने के सामूहिक प्रयास कारगर हो सकते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि ग्रामीण स्तर पर गोदामों के लिये एक राष्ट्रीय ग्रिड बनाया जाये।

राष्ट्रीय अनाज बोर्ड की स्थापना इस दिशा में उपयोगी कदम हो सकता है। साथ ही किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर जागरूक करना होगा कि अनाज के भंडारण व प्रभावी कीट-प्रबंधन के लिये कैसे वैज्ञानिक तौर-तरीके अपनाये जाने चाहिए। साथ ही खाद्य संरक्षण से जुड़े कर्मियों को गुणवत्ता के रखरखाव के लिये प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।(मध्यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।-संपादक

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