अजय बोकिल
आज भारत सहित पूरी दुनिया जानलेवा कोरोना महामारी से जूझ रही हो, लेकिन अपना मध्यप्रदेश ‘राजनीतिक कोरोना वायरस’ से निपटने में लगा है। यहां बीते एक पखवाड़े से सत्ता की छीना-झपटी का खेल जिस स्तर पर जाकर खेला जा रहा है, उससे तो असली कोरोना वायरस भी घबरा जाए। राज सिंहासन बचाने और हथियाने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा में जबर्दस्त रस्साकशी जारी है। दांव पर दांव चले जा रहे हैं। यानी तुम डाल-डाल तो हम पात-पात। सरकार को बचाने और सरकार गिराने के लिए भी सुरक्षा मांगी जा रही है। मजे की बात यह है कि राज्य सरकार की सुरक्षा पर किसी को भी भरोसा नहीं है। इसीलिए खुद सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर भेजा तो विपक्षी भाजपा ने केन्द्रीय सुरक्षा बल मिलने तक सिंधिया समर्थक विधायकों को बेंगलुरू से वापस लाने का प्लान रद्द कर दिया है।
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा ने उसके (सिंधिया समर्थक) 22 विधायकों का ‘अपहरण’ कर लिया है। इस बीच राज्यपाल ने सिंधिया समर्थक 6 मंत्रियों को सरकार से बर्खास्त कर दिया है। इनकी विधानसभा सदस्यता भी खतरे में है। इतना तय है कि प्रदेश में जारी राजनीतिक कोरोना का प्रकोप अभी लंबा चलेगा। परस्पर अविश्वास और आशंका के इन हालात में जब मीडिया ने प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से राज्य में कोरोना से बचाव के उपायों से जुड़ा सवाल किया तो उनका तंज भरा तल्ख जवाब था कि कोरोना वायरस तो यहां राजनीति में है, पहले इसे हटाना होगा। बाद में (असली) कोरोना वायरस को देखा जाएगा।
बेशक कोरोना वायरस को लेकर आज पूरी दुनिया में गंभीर चिंता और दहशत है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। पूरे विश्व में कोरोना से मौतों और पीडि़तों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। भारत में भी कोरोना से पहली मौत रिपोर्ट हुई है। सरकार ने कोरोना की रोकथाम के लिए कई कदम उठाए हैं, चेतावनियां दी है। मप्र सहित देश के कई राज्यों में स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। सार्वजनिक समारोहों को रद्द कर दिया गया है। कोशिश यही कि लोग सीधे संपर्क में न आएं। उफ् ऐसी बेरंग रंगपंचमी शायद पहली बार आई है। सिर्फ निगाहों से दिल मिलाने का वक्त आ गया है। कोरोना भय के कारण ही सही दुनिया में कई लोग अब हाथ मिलाने की जगह ‘नमस्ते’ करने लगे हैं। कोरोना ने मानो दुनिया की धड़कन पर ही ताले डाल दिए हैं।
दहशत के इस माहौल में भी सियासी आरोपों का दौर जारी है। ईरान ने कोरोना के लिए अमेरिकी आंतकवाद को जिम्मेदार ठहराया है तो जिस चीन में पहली बार वायरस पाया गया, उसने भी अमेरिकी थल सेना को कोरोना फैलाने का जिम्मेदार बताया है। भारत में तो ममता बैनर्जी प्रधानमंत्री मोदी पर कोरोना की आड़ में दिल्ली के दंगों को छुपाने जैसा आरोप पहले ही लगा चुकी हैं। उधर अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मीडिया में इस मुद्दे पर भी ठन गई है। चीन अभी भी इस शुबहे को साफ नहीं कर रहा कि कोरोना का जन्म कहीं उसकी जैविक हथियारों की फैक्ट्री की पैदाइश तो नहीं? उल्टे उसने अपनी सेंसरशिप को और कड़ा कर दिया है।
माना जा रहा है कि कोरोना वायरस अब नए वैश्विक आंतकवाद की शक्ल लेता जा रहा है। जानकारों ने इसे ‘जैविक आंतकवाद’ का नाम दिया है। वेबसाइट ‘द हिल’ में छपी अमेरिकी कारपोरेट स्ट्रेटेजिस्ट ग्रेडी मीन्स की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना ने भावी ‘जैविक आंतकवाद’ का रोडमैप तैयार कर दिया है। क्योंकि इससे होने वाला नुकसान बहुत तीव्र और असाधारण है। इस हानि का दुनिया के कई युद्धपिपासु देशों के सैन्य योजनाकार गंभीरता से अध्ययन कर रहे हैं। इस बात की संभावनाएं टटोली जा रही हैं कि शत्रु पर वार और भयंकर हानि पहुंचाने के लिए कोरोना वायरस का इस्तेमाल कैसे और किस हद तक किया जा सकता है। इससे भी बड़ा खतरा यह है कि अगर यह ‘जैव हथियार’ आंतकियों के हाथ लग गया तो क्या होगा?
मजाक में ही सही, लोग इसे ‘गरीबों का एटम बम’ कहने लगे हैं। एटम बम इसलिए क्योंकि यह मनुष्य की जान ही नहीं लेता, हमारी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था को भी ध्वस्त करने की ताकत रखता है। कोरोना बेहद खतरनाक इसलिए भी है क्योंकि इसकी कोई कारगर दवा अभी तक सामने नहीं आई है। हालांकि इसकी दवा खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं। कोरोना वायरस पलता भले प्राणियों में हो, लेकिन संसर्ग में आते ही वह मनुष्य की श्वसन प्रणाली पर हमला करता है। यह इतना चालाक है कि इस पर कोई एंटीबायोटिक लगाम नहीं लगा पाती और वायरस अपना शिकार कर लेता है।
बहरहाल यहां मुद्दा मध्यप्रदेश के ‘पॉलिटिकल कोरोना’ का है। सवाल यह है कि जब राज्य सरकार खुद कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए ऐहतियाती कदम उठा रही हो, तब मुख्यमंत्री कमलनाथ को यह क्यों कहना पड़ा कि मप्र की असली समस्या तो ‘राजनीतिक कोरोना’ है। पहले इससे निपट लें। बाद में असली कोरोना से दो-दो हाथ करेंगे। जब कमलनाथ ने मप्र के राजनीतिक संकट की तुलना कोरोना संकट से की तो इसके पीछे उनकी कुछ सोच और रणनीति रही होगी। बारीकी से समझें तो मप्र के संदर्भ में जैविक कोरोना वायरस और राजनीतिक कोरोना वायरस में कुछ समानताएं तो हैं। मसलन जैविक कोरोना वायरस दिखने में मुकुट की तरह लगता है, लेकिन भीतर से खोखला होता है। मप्र में राजदंड की हालत भी कुछ ऐसी ही है। उसका इकबाल डावांडोल हो रहा है। जैविक कोरोना वायरस अकेले नहीं चलता। वह समूह में रहता है। समूह में अटैक करता है। मप्र में भी विधायक झुंडों में जी रहे हैं। रिसॉर्टों में रह रहे हैं। क्योंकि वे अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं है।
जैविक कोरोना का भी कोई इलाज नहीं है और मप्र के ‘राजनीतिक कोरोना’ का भी कोई सॉल्यूशन जल्द निकलने के आसार नहीं है। जैविक कोरोना मनुष्य के श्वसन तंत्र पर अटैक करता है। राजनीतिक कोरोना के चलते सत्ताकांक्षी दोनों दलों की सांसें ऊपर-नीचे हो रही हैं। जैविक कोरोना इंसानों के बीच दूरियां बढ़ाता है। मप्र में राजनीतिक कोरोना ने कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी दूरियां और विद्वेष इतना बढ़ा दिया है कि कब मुंह की जगह हाथ-पैर चलने लगें, कहा नहीं जा सकता। जैविक कोरोना भी भले-बुरे का भेद नहीं करता। मप्र का राजनीतिक कोरोना भी नीति-अनीति से परे अपना तांडव कर रहा है। यूं सत्ता की नैतिकता केवल येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने और उसे थामे रहने की होती है। जैविक कोरोना की तरह वो भी किसी मर्यादा अथवा सीमा रेखाओं को नहीं मानती। मप्र के राजनीतिक संकट का अंतिम निदान क्या होगा, राज्य की जनता को यह ‘आतंक’ कब तक झेलना पड़ेगा और इस ‘राजनीतिक कोरोना’ से किसकी सियासी जान जाएगी, इसे दिल थाम कर देखना होगा।