कांग्रेस हो या भाजपा, कोष तो अग्रवाल ही संभालेंगे

रवि भोई

मरवाही उपचुनाव का बिगुल बज गया है। तीन नवंबर को मतदान होगा। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने यहाँ से अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है। कांग्रेस और भाजपा ने अभी प्रत्याशी तय नहीं किए हैं। अजीत जोगी के निधन से रिक्त हुई इस आदिवासी सीट पर मुकाबला अभी त्रिकोणीय दिख रहा है। कांग्रेस-भाजपा और छजका ने चुनाव तारीख की घोषणा से पहले ताल ठोंकना शुरू कर दिया था। मैदान कौन मारता है, यह तो 10 नवंबर को पता चलेगा, लेकिन फिलहाल तो सहानुभूति की लहर पैदा करने और विकास का ट्रंप कार्ड खेलने की प्रतिस्पर्धा दिखाई पड़ रही है।
कहते हैं अमित जोगी अपने पिता स्व. अजीत जोगी की मृत्यु शैय्या पर पड़ी तस्वीर और उनकी कविता के साथ अपने दुधमुँहे बच्चे को स्व. अजीत जोगी का अवतार बताकर मतदाताओं से घर-घर जाकर आशीर्वाद मांग रहे हैं। अमित को इस इमोशनल कार्ड पर सवार होकर जंग लड़ने से पहले जाति प्रमाण पत्र के पेंच से बाहर निकलना होगा। अभी तो हर किसी के मन में आशंका है कि रिटर्निंग आफिसर जाति प्रमाण पत्र को विवाद का मुद्दा मानकर कहीं अमित का नामांकन न रद्द कर दे, क्योंकि कांग्रेस में रहते जोगी परिवार और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल में जिस तरह राजनीतिक कटुता देखने को मिली थी, उससे लोग चुनाव मैदान में जाने तक को अमित की राह को कांटों भरा मान रहे हैं।
मरवाही की जीत या हार से कांग्रेस-भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। न तो कांग्रेस सत्ता से बाहर होने वाली और न ही भाजपा सत्ता में आने वाली है, पर अमित जोगी का राजनीतिक भविष्य इस चुनाव के नतीजे पर निर्भर करेगा। वहीँ कांग्रेस यह चुनाव जीतकर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत होने और जोगी का हौवा खत्म होने का संदेश देना चाहती है। इस कारण वह मरवाही जीत के लिए जी-जान से जुट गई है और चाणक्य की नीति साम-दाम-दंड-भेद के तहत काम करने में लग गई है। भाजपा अभी तो दो की लड़ाई में तीसरे को फायदे की रणनीति पर चलती दिख रही है।

भाजपा की नई टीम ‘नई बोतल में पुरानी शराब’?
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने किसी तरह तीन महीने बाद अपनी टीम बनाई, लेकिन टीम बनते ही सिर फुटौव्वल भी शुरू हो गया। 15 साल तक सरकार में रहे लोगों और लगातार हारने वालों को संगठन में महत्वपूर्ण पद देने से पार्टी के कुछ नेता और कार्यकर्ता खफा बताए जाते हैं। स्थानीय पिछड़ा वर्ग के नेता की जगह उत्तरप्रदेश के मूल निवासी को पिछड़े वर्ग के कोटे से पद देने के आरोप भी जड़े जा रहे हैं। कहते हैं एक कांग्रेस नेता के व्यावसायिक पार्टनर को संगठन में पद देने पर बवाल मचा है। बदलाव के नाम पर पुराने चेहरे और पिछली कार्यकारिणी के कुछ पदाधिकारियों को ही संगठन में नवाजे जाने से जमीनी नेता-कार्यकर्त्ता लाल-पीले हो रहे हैं।
नाराज लोग सोशल मीडिया के जरिये भड़ास भी निकालने लगे हैं। कुछ नेता-कार्यकता कह रहे हैं- साय की टीम तो ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ जैसी है। इस टीम में कांग्रेस की सरकार से लड़ने की धार ही दिखाई नहीं दे रही है। दाग-धब्बे वालों पर कांग्रेसी उल्टा वार करेंगे। अब देखते हैं डॉ. रमन सिंह और सौदान सिंह किस तरह भाजपा की टीम को मार्गदर्शन देते हैं।

कोष का जिम्मा अग्रवाल नेताओं को
धन संग्रहण का काम आसान नहीं होता। बिना धन के न संस्था चलती है और न ही राजनीतिक दल चलते हैं। इस कारण राजनीतिक दल हों या फिर कोई संस्था, सभी को कोष जुटाने और सँभालने का काम विश्वसनीय और हुनरमंद लोगों को ही सौंपना पड़ता है। अब छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस की बात करें या फिर छत्तीसगढ़ भाजपा की, दोनों ही दल के कोषाध्यक्ष को कर्मठ और कोष जुटाने में माहिर कहा जाता है। सबसे गौर करने वाली बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल हैं और छत्तीसगढ़ भाजपा के कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल। रामगोपाल अग्रवाल कई साल से छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कोषाध्यक्ष हैं और गौरीशंकर अग्रवाल पहले भी कई साल तक प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। अब उन्हें फिर जिम्मेदारी मिली है। गौरीशंकर अग्रवाल और रामगोपाल अग्रवाल रिश्तेदार भी हैं।

नए मुख्य सचिव के लिए कयासबाजी
केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार के संबंधों को देखते हुए लोग कहने लगे हैं कि अगले महीने रिटायर हो रहे मुख्य सचिव आरपी मंडल को सेवावृद्धि मिल पाने की आस कम नजर आ रही है। ऐसे में लोग कयास लगाने लगे हैं कि क्या 1987 बैच के आईएएस बीवीआर सुब्रह्मण्यम छत्तीसगढ़ लौटेंगे या फिर 1989 बैच के आईएएस अधिकारी अमिताभ जैन मुख्य सचिव बनेंगे। सुब्रह्मण्यम जून 2018 से जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव हैं और सितंबर 2022 में रिटायर होंगे। सुब्रह्मण्यम डॉ. मनमोहन सिंह के राज में पीएमओ में रह चुके हैं।
रिटायर सीनियर अफसरों का एक तबका छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव के लिए सुब्रह्मण्यम की वकालत कर रहा है, लेकिन कुछ लोग मानकर चल रहे हैं कि सुब्रह्मण्यम अब छत्तीसगढ़ नहीं लौटेंगे। सुब्रह्मण्यम के नहीं लौटने की स्थिति में अमिताभ जैन का मुख्य सचिव बनना लगभग तय माना जा रहा है। 1987 बैच के आईएएस सीके खेतान को मुख्य सचिव की रेस से बाहर बताया जा रहा है। कहा जा रहा है सेवावृद्धि न मिलने पर भूपेश सरकार आरपी मंडल का कहीं न कहीं पुनर्वास कर देगी। रिटायरमेंट के बाद उनकी सेवाएं किस तरह ली जाएँगी, यह पूरी तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निर्भर करेगा।

संभ्रांत लोगों का नया चरित्र
राजधानी के क्वींस क्लब की घटना धन और रसूख के अजीर्ण के साथ सामाजिक पतन का नमूना है। लॉकडाउन के दौरान जहां एक तरफ प्रशासन छोटे-छोटे दुकानदारों के शटर खुले दिखने पर फाइन वसूल रहा था, वहीँ रईसजादों के क्वींस क्लब पर उसकी निगाह ही नहीं जा रही थी। गोलीबारी की घटना न होती तो शायद ही रसूखदारों की करतूत बाहर आती। समाज के संभ्रांत लोग प्रशासन के सख्त लॉकडाउन में जन्मदिन की पार्टी मनाकर क्या संदेश देना चाहते थे, यह तो वे ही बता सकते हैं।
लॉकडाउन में एक व्यक्ति शराबखोरी के लिए भिलाई से रायपुर आ गया। होटलों से क्लब में खाना भी पहुँच गया। अब तक इस मामले में सत्ता की नजदीकी कुछ महिलाएं और दूसरी लड़कियां गिरफ्तार हुई हैं। एक बिल्डर और एक मीडिया मालिक का नाम भी सामने आया है। कहते हैं इस घटना में राज्य के एक मंत्री पुत्र की संलिप्तता भी सामने आ रहा है। चर्चा है कि इस कांड में फंसे एक रसूखदार चैक काटने रात में अपने दफ्तर जाते हैं, जिससे तकादा करने वाले उनसे न मिल सके, वहीँ अन्य एक रसूखदार का नशे के कारोबार से पुराना रिश्ता होने की खबर है।

सीख देने वाले ही भूले ‘सीख’
आजकल एक स्लोगन चल रहा है- मास्क ही वैक्सीन है। पर 29 सितंबर को केंद्र सरकार के किसान बिल के खिलाफ कांग्रेस के राजीव भवन से राजभवन तक पैदल मार्च में पार्टी के कई नेता और विधायक बिना मास्क के ही चल रहे थे। इस मार्च में कई कोरोना वारियर्स भी शामिल थे, जो कोरोना के खतरे को जानते हुए भी सामाजिक दूरी की धज्जियां उड़ाते दिखे। करीब पौने तीन करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक लाख और मौतों का आंकड़ा हजार को क्रास कर गया है, ऐसे में आम जनता को मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाये रखने की सीख देने वाले मंत्री-विधायक ही नियमों की धज्जियां उड़ाते दिखे। लोग कहने लगे हैं कि ऐसे में कोरोना पर कैसे लगाम लगेगा? प्रजातंत्र में विरोध की राजनीति का सबको अवसर है, पर कर्णधारों को समय और परस्थिति का तो ख्याल रखना होगा।

पुलिस अफसरों में खटपट
लगता है पुलिस और झगड़े में चोली-दामन का साथ है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सार्वजनिक चेतावनी के बाद भी पुलिस महकमे में आला अफसरों के बीच झगड़ा थमा नहीं है। आजकल राज्य के दो आला अफसरों में उठापटक की खबर है। लड़ाई कुर्सी को लेकर बताई जा रही है। कहते हैं सरकार से जुड़े कुछ लोग इस लड़ाई को हवा दे रहे हैं। देखते हैं आने वाले दिनों में कुर्सी की लड़ाई क्या रंग लाती है? पुलिस महकमे की एक समस्या यह भी है कि सीनियर अफसर लूप लाइन में और जूनियर अफसर मुख्य धारा में चल रहे हैं।

विधायक की छपटाहट
कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक राज्य में मंत्री बनने के लिए पूरी तरह से जोर-आजमाइश में लगे हैं। सामान्य वर्ग के यह विधायक हाईकमान के पास भी अपनी क्षमता और योग्यता का बखान कर आए हैं। यह विधायक जोगी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। कहते हैं हाईकमान ने जब मुख्यमंत्री से विधायक के बारे सिफारिश की तो मुख्यमंत्री ने उनके पिछले कार्यकाल का कच्‍चा-चिट्ठा रख दिया और उनका परफॉर्मेंस भी बता दिया। अब ऐसे में हाईकमान ने भी चुप्पी साध ली। उधर विधायक महोदय मंत्री बनने को कसमसा रहे हैं, पर दाल गलती नजर नहीं आ रही है।

(लेखक छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)

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