कमला हैरिस अमेरिका के लिए ‘नया दिवस’ क्यों है?

अजय बोकिल

अमेरिकी राष्ट्रपति के कशमकश भरे चुनाव में बड़बोले डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव हार जाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कमला हैरिस के रूप में एक महिला का उप राष्ट्रपति पद पर चुना जाना। अमेरिकी इतिहास की यह अभूतपूर्व घटना है। हो सकता है कि हम भारतीयों को इसमें कुछ अनोखा न लगे क्योंकि भारत में ऐसे शीर्ष पदों तक पहुंचने में महिलाओं को बहुत ज्यादा समय न लगा, बावजूद इसके कि दुनिया भारत में महिलाओं की सामाजिक हैसियत को अभी भी ‘कमजोर’ श्रेणी में गिनती है। लेकिन यह भी सत्य है कि दुनिया के सबसे प्रगत और अमीर देश माने जाने वाले अमेरिका में देश के इस दूसरे शीर्ष पद तक पहुंचने में वहां महिलाओं को पूरे 244 साल लगे हैं।

यानी कि ढाई सदी में एक महिला, जो गोरी अमेरिकी भी नहीं है, अपने बलबूते पर उप राष्ट्रपति बन रही है। यह कोई मामूली बात नहीं है। आश्चर्य नहीं कि यदि कमला देशवासियों का दिल जीतने में कामयाब रहीं तो कल को वो अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति भी बन सकती हैं। दुनिया के लिए गर्व की बात यह है कि कमला अमेरिका में अफ्रीकी-एशियाई संस्कृति का भी आंशिक प्रतिनिधित्व करती हैं। हालांकि वो खुद को सौ फीसदी अमेरिकी मानती हैं, इसके बावजूद उन्हें अपनी तमिल मां और अपने भारत कनेक्शन पर भी गर्व है।

कमला बचपन में तमिलनाडु में अपने ननिहाल भी आती रही हैं। लिहाजा भारतीय संस्कृति से उनका परिचय है। यह मानना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अमेरिका में ‘हाउ डी मोदी’ यात्रा के दौरान सार्वजनिक रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जिताने जो अपील की गई थी, उसका तोड़ डेमोक्रेटिक पार्टी ने कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी देकर निकाला। नतीजे बताते हैं कि वो कामयाब भी हुआ।

यह सचमुच हैरानी की बात है कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में महिला अधिकारों और समान न्याय को लेकर सदा ‍चिंतित रहने वाले अमेरिका में खुद महिलाओं को बराबरी का हक पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। अमेरिका और भारत दोनों दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। लेकिन जहां भारत में श्रीमती प्रतिभा पाटिल के रूप में पहली महिला राष्ट्रपति आजादी के 60 साल बाद ही बन गईं, वहीं अमेरिका में उसकी आजादी के 244 साल भी आज तक कोई महिला इस पद तक नहीं पहुंच पाई है।

पिछले राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी ने हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति पद के लिए अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन अमेरिकी मतदाताओं ने रिपब्लिकन और अक्खड़ डोनाल्ड ट्रंप को चुना। अमेरिका में ट्रंप को ‘लीक से हटकर’ चलने वाला राष्ट्रपति माना जाता रहा है, लेकिन लीक से हटते-हटते जब उन्होंने लीक को ही मिटा डालने की कोशिश की तो अमेरिकी वोटरों ने उनसे हाथ जोड़ लिए।

अगर सत्ता के शीर्ष पदों पर महिला शक्ति के आसीन होने की बात की जाए तो भारत में पहली महिला गवर्नर सरोजिनी नायडू थीं, जिनकी यूपी की गवर्नर के रूप में नियुक्ति आजादी के तत्काल बाद की गई थी। वहीं अमेरिका में पहली महिला गवर्नर बनने में 149 साल लगे। अमेरिका को ब्रिटेन से आजादी 4 जुलाई 1776 को मिली थी। लेकिन वहां पहली महिला गवर्नर नैली रॉस 1929 में ही बन पाईं। यही नहीं अमेरिका में किसी महिला को सेनेटर (हमारे सांसद के समकक्ष) बनने में भी बरसों लगे। वहां पहली महिला सेनेटर रेबेका फेल्टन थीं, जो इस पद पर 1922 में चुनी जा सकीं।

अमेरिका में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसा पद नहीं होता। जबकि भारत में कार्यकारी दृष्टि से ये सबसे ताकतवर पद होते हैं। हमारे देश में श्रीमती इंदिरा गांधी पहली महिला प्रधानमंत्री आजादी के मात्र 20 साल बाद बन गई थीं, जबकि देश की पहली मुख्यमंत्री श्रीमती सुचेता कृपलानी थीं, जो भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सीएम 1963 में ही बन गई थीं।

अमेरिका में महिलाओं को अपने संवैधानिक अधिकार पाने के लिए भी बहुत लंबा संघर्ष करना पड़ा है। वहां स्त्रियों को मतदान का अधिकार भी देश की आजादी के 144 साल बाद ही मिल सका। 1919 में लागू एक अधिनियम के बाद वहां सभी महिलाओं को वोट देने का हक मिला। हालांकि यह कानून अमेरिका के सभी राज्यों में लागू होने में भी कई साल लगे। इसके पहले अमेरिका में 1897 में एक कानून बना था, जिसके तहत केवल अविवाहित महिलाओं को ही वोट देने का अधिकार था। एक खास बात और। अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी ने ही महिलाओं को ज्यादा आगे बढ़ाया है। पहली महिला सेनेटर, पहली महिला गवर्नर और अब पहिला महिला वाइस प्रेसीडेंट भी डेमोक्रेटिक पार्टी से है।

डेमोक्रेटिक पार्टी को अपेक्षाकृत उदारवादी और सर्वसमावेशी माना जाता है, जबकि रिपब्लिकन पार्टी को रूढि़वादी माना जाता है। हालांकि कुछ रिपब्लिकन्स महिला गवर्नर भी बनी हैं। इसकी तुलना अगर भारत के राजनीतिक दलों से करें तो महिलाओं को पहले कांग्रेस पार्टी ने ही आगे बढ़ाया। पहली महिला राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, गवर्नर और मुख्‍यमंत्री भी कांग्रेस ने दीं। इस मायने में आज देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की बात करें तो भाजपा ने सुषमा स्वराज, उमा भारती, वसुंधरा राजे, आनंदी बेन पटेल को मुख्‍यमंत्री बनाया। देश की पहली महिला विदेश, वित्त और रक्षा मंत्री भाजपा ने ही दी है। कुछ राज्यों में महिला राज्यपालों की नियुक्ति भी भाजपा ने की है।

ये सब बताने का तात्पर्य यह है कि अगर दुनिया भर में ‘सपनों का देश’ समझे जाने वाले अमेरिका में कमला हैरिस के रूप में अगर कोई महिला ‘नंबर टू’ बनी है तो यह अमेरिका के लिए भी महान घटना है। रहा सवाल भारत का, तो बहुत से लोग कमला हैरिस को हिंदू मान सकते हैं। उनका नाम जरूर कमला (लक्ष्मी) है, लेकिन वो अपने पिता के धर्म ईसाइयत को मानती हैं। हालांकि उनका ननिहाल हिंदू ही है। वैसे कमला अपने आप में कई धर्मों का समागम बिंदु हैं। उनके पिता डोनाल्ड हैरिस अफ्रीकी स्‍कॉलर और धर्म से ईसाई थे। उनकी माता श्यामला गोपालन वैज्ञानिक और सिविल राइट एक्टिविस्ट थीं तथा तमिल हिंदू थीं।

शादी के कुछ साल बाद ही कमला के मां-बाप का तलाक हो गया। लेकिन उनकी मां ने दोनों बेटियों के नाम हिंदू ही रखे। कमला के पति डगलस एमहॉफ यहूदी हैं। कमला अपने ननिहाल से अभी भी जुड़ी हैं। इस दृष्टि से अमेरिकी भारतीयों के मन में उनके लिए एक अपनापे का भाव होना स्वाभाविक है। यूं कमला हैरिस एक जानीमानी वकील, लेखिका और मुखर राजनेता हैं। लेकिन भारत के प्रति उनके सौहार्द के बावजूद बतौर डेमोक्रेट वो भारत में वर्तमान भाजपानीत राजग सरकार की कुछ नीतियों से इत्तफाक नहीं रखतीं। खासकर कश्मीर में धारा 370 खत्म करने तथा देश में सीएए कानून लागू करने के मामले में उनके विचार भारत के लिए मु्श्किल खड़ी कर सकते हैं।

हालांकि उनके ये विचार बतौर विपक्षी पार्टी के नेता के रूप में रहे हैं। सत्ता में आने के ‍बाद व्यापक अमेरिकी हितों के मद्देनजर कमला और उनकी पार्टी भारत के प्रति क्या रवैया रखती है, यह देखना होगा। यूं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व डेमोक्रेट राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी इतने रिश्ते बना लिए थे कि वो उन्हें ‘बराक’ कहने लगे थे। फिर रिपब्लिकन राष्ट्रपति ट्रंप से भी वो ‘दे ताली..’ के अंदाज में बतियाते दिखे थे। नव निर्वाचित बाइडन सरकार भारत-अमेरिका की बढ़ती नज‍दीकियों को किस रूप में तवज्जो देगी, इस बारे में अभी शुभ-शुभ ही सोचा जा सकता है।

बहरहाल कमला हैरिस की यह उपलब्धि समूचे महिला समाज और खासकर अमेरिकी महिलाओं के लिए गौरव का विषय होना चाहिए। क्योंकि उन्होंने एक विकसित लेकिन महिलाओं के प्रति आज भी पूर्वाग्रहित समाज में धमाकेदार दस्तक दी है। कमला बहुत अच्छी वक्ता हैं। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपने पहले भाषण में ही यह कहकर समर्थकों का दिल जीत लिया कि आज अमेरिका के लिए एक ‘नया दिवस’ है। उन्होंने कहा ‘‘मैं अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति हूं। लेकिन मैं मानती हूं कि मैं इस देश की आखिरी महिला उपराष्ट्रपति नहीं होऊंगी।‘’

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