राकेश दुबे
भारत में राजनीति जो न कराए कम है। देश की चिंता छोड़ सारे बड़े-छोटे दल कुर्सी के चिंतन में लगे हुए हैं। कुछ ऐसे-वैसे और जाने कैसे-कैसे सुझाव सामने आ रहे हैं। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ही लीजिये, उन्होंने एक ताज़ा शगूफा छोड़ा है। केजरीवाल ने भारतीय नोटों पर लक्ष्मी-गणेश के चित्र लगाने की मांग करके एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर यह बात रखी। उनकी दलील है देश में समृद्धि लाने के लिये जरूरी है कि करेंसी के जरिये देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिले।
असल बात यह है कि केजरीवाल के इस हिंदुत्व प्रेम का निशाना गुजरात है, जहां वे पूरे दमखम के साथ विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। कहीं न कहीं वे उस छवि को मिटाने की कोशिश में हैं, जिसमें ‘आप’ को हिंदुत्व विरोधी बताने में भाजपा अब तक लगी रही है। दरअसल, पिछले दिनों दिल्ली के एक मंत्री द्वारा एक समारोह में कुछ प्रतिज्ञाएं दोहराने को लेकर खासा विवाद हुआ था, जिसमें बौद्धों के एक कार्यक्रम में कथित तौर पर हिंदू देवी-देवताओं की पूजा न करने की शपथ ली गई। जिसको लेकर भाजपा ने केजरीवाल को निशाने पर लिया और उस मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
इन दिनों केजरीवाल खुद को बड़ा हिंदू साबित करने पर तुले हैं। वे जानते हैं कि गुजरात भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे की प्रयोगशाला रही है। तभी केजरीवाल ने गुजरात दौरे के दौरान खुद को कभी हनुमान का कट्टर भक्त बताया, कभी कहा कि मेरा जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ है। भगवान ने मुझे कंस की औलादों व आसुरी शक्तियों के दमन के लिये भेजा है। कभी विशेष वेशभूषा में सोमनाथ मंदिर तथा द्वारकाधीश मंदिर में जाना व कभी गाय को एजेंडे पर लाना, उनकी इसी रणनीति का हिस्सा रहा है।
याद कीजिये, केजरीवाल का जो हिंदू कार्ड गुजरात में नजर आ रहा है वैसा दिल्ली व पंजाब के चुनावों में नजर नहीं आया। वे न तो दलित की बात कर रहे हैं और न ही अल्पसंख्यकों की। कहीं न कहीं वे गुजरात में हिंदू कार्ड के जरिये भाजपा के हिंदू कार्ड से मुकाबला करते दिख रहे हैं।
वैसे इन दिनों केजरीवाल की राजनीति में इतना भर बदलाव आया है कि अन्ना आंदोलन के दौरान भारत माता की तस्वीर लगाने वाले केजरीवाल अब धार्मिक प्रतीकों की राजनीति करने लगे हैं। अब उनके एजेंडे में अयोध्या भी है और बनारस भी। एक समय था कि वे अयोध्या में विवादित स्थल पर अस्पताल बनाने की वकालत करते थे। कहा करते थे कि मैं आईआईटी खड़गपुर की देन हूं। यदि तब मंदिर ही बने होते तो मैं इंजीनियर नहीं बन पाता, लेकिन अब उनके सुर बदल चुके हैं।
यह अलग बात है कि केजरीवाल भाजपा के उस हिंदुत्व मॉडल का शायद ही मुकाबला कर सकें जो संघ संरक्षित है। यूँ तो केजरीवाल राजनीति के चतुर सुजान हैं। वे मौके अनुसार राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, भ्रष्टाचार और हिंदुत्व कार्ड खेलते रहते हैं। वहीं अब तो करेंसी विवाद में अब कांग्रेस भी कूद गई है और ‘आप’ को भाजपा की बी-टीम बता रही है।
बहरहाल, केजरीवाल की ताजा मांग भारतीय राजनीति में मुद्दों की तार्किकता पर सवाल खड़ी करती है। जनता के जरूरी सवालों से मुंह चुराकर आस्था के प्रतीकों की राजनीति एक प्रतिगामी कदम ही है। यह अतार्किक लगता है कि नोटों पर धार्मिक चित्र छापने से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। ये दलीलें न तो संविधान की भावना के अनुरूप हैं और न ही प्रगतिशील लोकतंत्र के लिये लाभकारी ही है।
शायद केजरीवाल भूल गये हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और धर्म विशेष के प्रति किसी तरह का झुकाव अनुचित ही है। बहुत संभव है कि कल दूसरे धर्म के लोग अपने धार्मिक प्रतीकों को करेंसी पर दर्ज कराने की मांग करने लगें। कोई भी मांग संविधान की भावना के अनुरूप होने के साथ तार्किक भी होनी चाहिए।
(मध्यमत)
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