राकेश अचल
कोरोना प्रतिरोधक टीका 45 वर्ष से कम के उम्र को लोगों को न लगाने के पीछे सरकार जिन तर्कों का सहारा ले रही है वे बड़े ही अजीबोगरीब हैं। भारत ने अपनी घरेलू जरूरतों का आकलन किये बिना नाम कमाने के लिए मानवता के आधार पर दुनिया के 78 देशों को अपने यहां बनी वैक्सीन दान में दे दी और अपने ही देश में 45 वर्ष से कम की आबादी को टीका लगाने के लिए सरकार तैयार नहीं है।
दुनिया के साथ ही भारत में कोरोना की दूसरी लहर चल पड़ी है, कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन सरकार के पास समूची आबादी को देने के लिए वैक्सीन नहीं है। सबको वैक्सीन तो दूर की बात है हमारे पास 45 वर्ष की समूची आबादी के लिए भी पूरी वैक्सीन नहीं है। जिन लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है, उन्हें भी अब दूसरी खुराक के लिए पहले से ज्यादा इन्तजार करना पडेगा। अपनी नाकामी छिपाने के लिए सरकारी वैज्ञानिक नए नियमों की घोषणा करने पर विवश है।
आपको बता दें कि भारत ने अब तक 76 देशों को कोरोना वैक्सीन भेजी हैं। कई देशों को वैक्सीन फ्री दी गई है, जबकि कुछ देशों को इसे बेचा गया है। पड़ोसी देशों श्रीलंका, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और सेशेल्स को करीब 56 लाख वैक्सीन फ्री में दी गई हैं। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) कोवीशील्ड और भारत बायोटेक कोवैक्सिन का प्रोडक्शन कर रही हैं। भारत ये पुण्यकार्य न भी करता तो भी भारत के पास अभी इतनी वैक्सीन नहीं है कि 45 वर्ष तक की आबादी को यथा समय दोनों डोज दिए जा सकें।
कोरोना से सर्वाधिक पीड़ित देशों में भारत दूसरे स्थान पर है। पहला नंबर अमेरिका का है। अमेरिका ने अपने यहां 16 वर्ष तक की आबादी को कोरोना वैक्सीन देने का काम शुरू कर दिया है। वहां दूसरे डोज का अंतर भी केवल 28 दिन का है, अमेरिका ने दूसरे डोज के लिए अवधि में कोई घट-बढ़ नहीं की क्योंकि उसके पास वैक्सीन का पर्याप्त भण्डार है।
अमेरिका ने भारत की तरह पुण्य कमाने की जल्दबाजी नहीं की। वहां पहले अपनी जनता का ख्याल रखा गया और बाद में दूसरे देशों की मांग को सुना गया। हमारे यहां उलटा हुआ। हमने पहले पुण्य कमाना चाहा और अपनी जनता को भुला दिया और अब न केवल 45 वर्ष की आबादी को वैक्सीन उपलब्ध करने में हमारी सरकार के पसीने छूट रहे हैं बल्कि सरकार 45 वर्ष से नीचे की उम्र वालों को वैक्सीन देने के लिए तैयार ही नहीं है।
सवाल ये है कि क्या हमारे वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की कोरोना से कोई बात हो गयी है कि वो 45 वर्ष से नीचे की आबादी को अपना शिकार नहीं बनाएगा? कोरोना ने इस तरह का करार किसी भी देश से नहीं किया। अमेरिका से भी नहीं। जाहिर है कि सरकार की नाकामी और अदूरदर्शी फैसले के कारण पेश आ रही नाकामी को छिपाने के लिए ये सब कुतर्क गढ़े जा रहे हैं, अन्यथा कोरोना को लेकर जो अनुशासन दुनिया के दूसरे देशों में है उसे भारत में कैसे बदला जा सकता है?
भारत में कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों में बीच खबर आई कि केंद्र सरकार अब एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन दूसरे देशों को नहीं देगा। सूत्रों के हवाले से रायटर्स ने बताया कि घरेलू टीकाकरण पर फोकस करने के लिए भारत सरकार ने यह फैसला लिया है। देश में एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन का निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोवीशील्ड के नाम से कर रही है।
घरेलू मांग पूरी न कर पाने वाली हमारी सरकार ने वैक्सीन के निर्यात पर कोई रोक नहीं लगाई गई है, लेकिन तय कर लिया है कि दूसरे देशों को वैक्सीन की सप्लाई घरेलू सप्लाई के आकलन के बाद ही की जाएगी। विदेशों में वैक्सीन एक्सपोर्ट डोमेस्टिक प्रोडक्शन पर भी निर्भर करेगा। सरकार की प्राथमिकता देश के लोगों का टीकाकरण है। देश में वैक्सीन प्रोडक्शन की क्षमता बढ़ी है और दो वैक्सीन (कोवीशील्ड और कोवैक्सिन) को इमरजेंसी यूज के लिए अप्रूवल भी दिया गया है। ऐसे में सरकार दो महीने बाद रिव्यू करने के बाद ही देश से बाहर वैक्सीन सप्लाई पर फैसला करेगी।
हाल ही में राजस्थान-पंजाब समेत कई राज्यों ने केंद्र सरकार से भारी मात्रा में वैक्सीन की मांग की थी। फिलहाल देश में रोजाना कई राज्यों में तेजी से मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में आने वाले दिनों में वैक्सीन मांग में और इजाफा हो सकता है। इस समस्या से निपटने की लिए हमारी सरकार ने कोवीशील्ड के दोनों डोज के बीच का अंतर बढ़ाने का फैसला किया है।
नई गाइडलाइन के मुताबिक कोवीशील्ड के दो डोज के बीच का समय पहले से दो हफ्ते ज्यादा रहेगा। अब तक कोवीशील्ड के दोनों डोज के बीच 4 से 6 हफ्ते, यानी 28 से 42 दिन का अंतर रखा जाता था। नए निर्देश के मुताबिक अब यह अंतर 6 से 8 हफ्ते यानी 42 से 56 दिन का होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि ट्रायल्स डेटा के अनुसार अगर 6-8 हफ्ते के अंतर से कोवीशील्ड के दो डोज दिए जाते हैं तो प्रोटेक्शन बढ़ जाता है, पर यह अंतर 8 हफ्ते से अधिक नहीं होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि देश में 16 जनवरी को हेल्थकेयर वर्कर्स को टीका लगाने के साथ कोरोना टीकाकरण की शुरुआत हुई थी। 2 फरवरी से फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी वैक्सीन लगने लगी थी। 13 फरवरी से हेल्थकेयर वर्कर्स को दूसरा डोज दिया जा रहा है। फ्रंटलाइन वर्कर्स को दूसरा डोज देने की शुरुआत 2 मार्च को हुई। देश में कोरोना वैक्सीनेशन का दूसरा फेज 1 मार्च से शुरू हुआ था। इस फेज के तहत 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। इसके साथ ही 45 से 60 की उम्र के ऐसे लोगों को भी वैक्सीन लग रही थी, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। एक अप्रैल से 45 साल और इससे ज्यादा उम्र के सभी लोग कोरोना वैक्सीन लगवा सकेंगे। केंद्र सरकार ने 23 मार्च को इसका फैसला किया था।
ड्यूक यूनिवर्सिटी के ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर द्वारा किये गए एक आकलन के अनुसार वर्ष 2021 के दौरान कोरोना वायरस के जितने टीकों के उत्पादन का लक्ष्य है, यदि उतने टीके बन गए और उनका समान वितरण किया गया तब दुनिया की 70 प्रतिशत आबादी को टीका लगाया जा सकेगाl पर, समस्या यह है कि टीके की आपूर्ति पर अमीर देशों का कब्जा हो गया है और यह गरीब देशों तक पहुंच ही नहीं पा रहा है।
दूसरी तरफ टीका उद्योग एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिस दौर का अनुभव कभी उसने नहीं किया हैl वर्ष 2019 तक टीका उद्योग सभी रोगों को मिलाकर सम्मिलित तौर पर प्रतिवर्ष लगभग 5 अरब टीके का उत्पादन करता था, पर 2021 में केवल कोविड 19 की रोकथाम के लिए 12 अरब टीके का लक्ष्य हैl विशेषज्ञों के अनुसार उत्पादन की परेशानियों और कच्चे माल की किल्लत के कारण इस लक्ष्य को हासिल करना लगभग असंभव है, फिर भी साल के अंत तक 10 अरब से अधिक टीके तो बन ही जाएंगे।
जाहिर है कि हमारी सरकार हर मामले में झूठ बोलकर काम चलाना चाहती है। सरकार का झूठ हर बार पकड़ा जाता है लेकिन सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके लिए न जन स्वास्थ्य प्राथमिकता में है और न ही देश की प्रतिष्ठा। एक झूठी सरकार के चलते आपकी जान का रखवाला ऊपर वाला ही हो सकता है। भारत की 16 वर्ष तक की उम्र वाली आबादी कब तक कोरोना टीके का लाभ ले पाएगी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
जो आबादी टीके से वंचित है वो नीम-हकीमों और तांत्रिकों का सहारा ले सकती है। कायदे से हमारे जन प्रतिनिधियों को चुनावी रैलियां छोड़कर अपने-अपने क्षेत्र में टीकाकरण अभियान में सहयोग करना चाहिए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना के खिलाफ जनजागरण को भी एक तरह की रथयात्रा बना लिया है। इसका कोई असर जनता पर होने वाला नहीं है।(मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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