ऐसा लगता है कि चार दिन पहले जो बात ‘डर्टी पोलिटिक्स‘ से शुरू हुई थी वह डर्टी मीडिया (वही जिसे आप सोशल मीडिया कहते हैं) में उतर आई है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के नागपुर भाषण को लेकर उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने गुस्से या खीज में जो टिप्पणी की थी वह आज के भारतीय मीडिया की जहरीली सचाई है।
शर्मिष्ठा ने अपने पिता को चेताया था कि आप नागुपर में जाकर क्या बोलते हैं, उसका महत्व नहीं रह जाएगा। कुछ समय बाद लोग आपके बोले हुए को नहीं आपकी नागपुर यात्रा के विजुअल्स को याद रखेंगे। जिन पर तरह तरह के कमेंट चस्पा कर लोगों के बीच चलाए जाएंगे।
जब हमने पत्रकारिता शुरू की थी तब लिखे हुए शब्द की धमक और गमक दोनों थी। वह समय अखबारों में छपी खबरों या सूचनाओं को ब्रह्मवाक्य की तरह लेने का था। समय बदला और देखते ही देखते विजुअल मीडिया चारों तरफ छा गया।
जब हम छपे हुए शब्दों की दुनिया में काम करते थे, तब भी कहा जाता था कि सुनीसुनाई बातों पर भरोसा मत करो। जब तक अपनी आंखों से न देख लो, या तथ्य की सचाई को परख न लो, उसे खबर मत बनाओ। यानी जो आंखों से देखा जाए वही सच। लेकिन यह धारणा भी अब टूट चुकी है। सुनने में खौफनाक लग सकता है लेकिन सच यही है कि अब आंखों से दिखने वाली चीज भी सच नहीं रही।
अब सूचनाएं या खबरें नहीं बल्कि उनके नाम पर फैलाया जाने वाला इंद्रजाल है। अब मीडिया की दुनिया में पत्रकार नहीं ऐयार काम करते हैं। वे कब, कहां, कौनसा भेस धर कर प्रकट हो जाएं और देखते ही देखते न जाने कहां गायब हो जाएं कुछ नहीं कहा जा सकता। पहले खबरें विश्वास की बुनियाद पर खड़ी होती थीं, अब अफवाहों के पिलर पर उनके महल बनते हैं।
अभी अभी मध्यप्रदेश में एक किस्सा हुआ। वाट्सएप पर एक खबर चली कि राजधानी भोपाल के सुभाष नगर इलाके में बन रहे ओवर ब्रिज के एक पिलर में बड़ी दरार आ गई है और यदि तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
यह खबर देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और ऐसी खबरनुमा अफवाहों को राजनीतिक स्कोर के लिए इस्तेमाल करने वाले नेताओं ने इसे तुरंत लपका। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजयसिंह ने सोशल मीडिया से आया यह ललचाने वाला कैच लपकते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को लपेट लिया।
शिवराज भी कहां चूकने वाले थे। उन्होंने पलटवार करते हुए ट्वीट किया- ‘’पता नहीं इनको ऐसा क्यों लगा कि मध्यप्रदेश में आज भी उनके ज़माने जैसी धाँधलियाँ होती होंगी! यह वह हैं जो ज़मीन पर तो छोड़िए, अपने ट्विटर हैंडल पर भी पुल ठीक से नहीं बना पाए।‘’
दरअसल सोशल मीडिया पर खबर के साथ दरार वाले जिस पिलर का फोटो चल रहा था वह भोपाल का था ही नहीं। शिवराज के इस ट्वीट के बाद दिग्विजय ने गलत जानकारी के लिए खेद व्यक्त करते हुए स्वीकार किया कि उन्होंने तथ्यों को जांचा नहीं था।
मुझे यह प्रसंग बड़ा दिलचस्प लगा, क्योंकि पुल के पिलर में दरार आने का यह संदेश मेरे पास भी कुछ वाट्सएप ग्रुप के जरिए रविवार को दोपहर में आया था। चूंकि उसके साथ कोई फोटो नहीं था इसलिए मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन भविष्य में संदर्भ के रूप में यह सूचना काम आएगी यह सोचकर उसे सेव कर लिया।
रविवार रात तक दिग्विजयसिंह और शिवराजसिंह में जो ट्विटर वॉर चला। उसके बाद मैंने इस संदेश की पड़ताल शुरू की। मुझे यह संदेश युवा पत्रकार राजू कुमार के मार्फत मिला था जिसमें संदेश के नीचे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की महिला नेता संध्या शैली का नाम और फोन नंबर था।
मैंने इस बारे में संध्या शैली से बात की और सीधे सवाल किया कि गलत संदेश भेजने के लिए दिग्विजयसिंह ने माफी मांगी है, क्या आप भी माफी मांगेंगी। संध्या जी ने कहा-‘’दरअसल वो संदेश मेरे पास भी कहीं से आया था और चूंकि यह हमारे ऑफिस के पास बन रहे पुल का ही मामला था इसलिए मैंने उसे आगे फॉरवर्ड कर दिया।‘’
लेकिन मैंने अपना सवाल दोहरा दिया कि क्या आप भी इसके लिए खेद व्यक्त करेंगी? उन्होंने कहा-‘’हां, यह गलती मुझसे हुई है और बिना चैक किए मुझे यह संदेश फॉरवर्ड नहीं करना चाहिए था। आगे से मैं इसका ध्यान रखूंगी।‘’
अब मेरा अगला टारगेट थे पत्रकार साथी राजू कुमार। मैंने उनसे भी वही सवाल किया कि क्या आप इस संदेश को विभिन्न वाट्सएप ग्रुप में चलाने के लिए खेद व्यक्त करेंगे? राजू ने कहा- ‘’चूंकि मामला जनहित से जुड़ा था इसलिए मैंने उसे फॉरवर्ड किया। लेकिन हां, हमें ऐसी सूचनाओं को चैक करना चाहिए।‘’
इस मामले में राजू ने एक सावधानी जरूर बरती कि, फॉरवर्ड करने के साथ ही, जिसके जरिये वह संदेश उन्हें मिला था उसका, यानी संध्या शैली का नाम और नंबर अपनी ओर से नीचे लिख दिया। ताकि और कोई जानकारी ली जानी हो तो संध्या शैली से संपर्क किया जाए।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती, राजू ने बताया कि मामले पर बवाल होने के बाद उन्होंने उस पुल के बारे में इंटरनेट पर और पता किया तो पाया कि यही फोटो दो साल पहले पाकिस्तान के आदिल रजा ने ट्वीट किया था और इसे रावलपिंडी का मेट्रो बस पुल बताया गया था। यही फोटो हैदराबाद मेट्रो के पुल के संदर्भ के साथ भी सोशल मीडिया पर चला था। राजू की खोजबीन के बाद आखिर तक यह तय नहीं हो पाया कि यह जो क्षतिग्रस्त पिलर दिखाया जा रहा है वह है कहां का।
यह पूरा किस्सा बताता है कि जो सूचनाएं हमें भेजी जा रही हैं उनकी जांच-परख करना कितना जरूरी है। दुर्भाग्य से ऐसी हजारों-लाखों खबरनुमा अफवाहें रोज सोशल मीडिया पर पटकी जा रही हैं जिनका कोई धनीधोरी नहीं है। ऐसी ही खबरों पर बड़ी-बड़ी बहसें चल रही हैं और राजनीतिक दांवपेंच खेले जा रहे हैं।
इस घटना का सार यही है कि खबरों या सूचनाओं को विश्वसनीय बनाए रखना है तो हमें हर खबर या सूचना पर पहले अविश्वास करना सीखना होगा। आंख मूंदकर न तो किसी खबर पर भरोसा करें और न ही उसे फारवर्ड करें। आज का मीडिया जिस माजने का हो गया है उसमें तो यह कहने में भी खतरा है कि जो दिखता है वह सच होता है…