भ्रष्टाचार के शिकार हैं तो जान देने को तैयार रहिए

27 अप्रैल को सेंटर फॉर मीडिया स्‍टडीज (सीएमएस) ने देश में भ्रष्‍टाचार को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है उसमें एक जगह मध्‍यप्रदेश का जिक्र बड़े ही हैरानी भरे अंदाज में किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि ‘’अकेला मध्‍यप्रदेश ही ऐसा राज्‍य पाया गया जहां 67 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भ्रष्‍टाचार की स्थिति जैसी थी वैसी ही है।‘’ सीएमएस के पिछले सर्वे के बाद से ताजा सर्वे के बीच के एक साल में स्थिति जरा भी नहीं बदली।

आप पूछ सकते हैं कि यदि स्थिति जैसी थी, वैसी ही है तो इसे क्‍या माना जाए? राज्‍य में भ्रष्‍टाचार कम हुआ या ज्‍यादा? तो इसका जवाब रिपोर्ट के छठवें पन्‍ने पर दिया गया एक चार्ट खुद ही दे देता है। यह चार्ट कहता है कि राज्‍य में भ्रष्‍टाचार कम हुआ है ऐसा मानने वालों की संख्‍या सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। और जिन बीस राज्‍यों में सीएमएस ने सर्वे किया है उनमें भ्रष्‍टाचार में कमी आने की बात स्‍वीकार करने वालों का सबसे कम प्रतिशत पाने का सौभाग्‍य मध्‍यप्रदेश को मिला है। ‘राहत’ की बात केवल इतनी है कि इस मामले में उसे आंध्रप्रदेश का भी साथ मिल गया है। वहां भी भ्रष्‍टाचार में कमी होने की बात सिर्फ इतने ही लोगों ने मंजूर की है।

अब आपका सवाल होगा कि यथास्थिति और कमी की बात तो मैंने बता दी, प्रदेश में भ्रष्‍टाचार बढ़ा कितना है? तो वह भी सुन लीजिए! रिपोर्ट के मुताबिक मध्‍यप्रदेश के 29 फीसदी लोग मानते हैं कि राज्‍य में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार में बढ़ोतरी हुई है। यानी 67 प्रतिशत कहते हैं भ्रष्‍टाचार ज्‍यों का त्‍यों है, 29 फीसदी कहते हैं यह और बढ़ गया है और 4 फीसदी कहते हैं इसमें कमी आई है… मैं इस पर कुछ नहीं कहता, प्रदेश की स्थिति का आकलन करने का जिम्‍मा आप पर ही छोड़ देता हूं।

लेकिन आपके आकलन में मदद हो सके, इसलिए आपको दो तीन किस्‍से जरूर सुनाना चाहूंगा। इनमें पहला किस्‍सा तो अभी अभी यह रिपोर्ट जारी होने से दो दिन पहले का ही है। प्रदेश के मीडिया में जो खबरें छपी हैं उनके मुताबिक ग्वालियर में मध्य क्षेत्र बिजली कंपनी के ठेकेदार रवीन्द्र सिंह जादौन को, अपने काम की बकाया राशि पांच लाख रुपए मांगते मांगते जब 9 साल हो गए, तो हार कर उन्‍होंने 26 अप्रैल को कंपनी के चीफ जनरल मैनेजर दफ्तर में पहुंचकर जहर खाकर जान दे दी।

जादौन ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि उन्‍होंने 9 साल पहले कंपनी के लिए मीटर व केबल लगाने का काम किया था। अपनी राशि दिलवाने के लिए सीएम तक से शिकायत की, लेकिन कोई हल नहीं निकला। पेमेंट के लिए दफ्तर में पदस्थ बाबू ने 25 फीसदी कमीशन मांगा था, लेकिन जादौन ‘प्रचलित परंपरा’ के हिसाब से 10 प्रतिशत से ज्यादा देने को राजी नहीं हुए। बस इसीलिए उनका भुगतान नहीं किया गया।

जादौन ने लिखा है कि उनकी बीमार पत्नी को घर चलाने के लिए एक फैक्ट्री में मजदूरी करनी पड़ी। घर की हालत को देखते हुए उन्‍होंने गरीबी रेखा का राशन कार्ड बनवाने के लिए फार्म भरा। लेकिन दो हजार रुपए रिश्वत न देने के कारण वह फार्म भी निरस्त कर दिया गया।

चूंकि इस मामले में बिजली कंपनी का कहना है कि उन पर जादौन की कोई भी राशि बकाया नहीं थी और पुलिस भी इस मामले की जांच कर रही है, इसलिए मैं घटना और मीडिया में छपी जानकारी का प्रमाणीकरण तो नहीं कर सकता, लेकिन एक सवाल जरूर मन में उठता है कि क्‍या कोई आदमी यूं ही नौ साल तक किसी दफ्तर के चक्‍कर लगाते हुए, एक दिन जहर खाकर अपनी जान दे देगा?

फिर मुझे याद आया सागर का किस्‍सा जहां एक ठेकेदार से भुगतान के एवज में 25 फीसदी हिस्‍सा मांगने का ऑडियो वायरल होने के बाद खुद सरकार ने अपने ही पार्टी के महापौर अभय दरे के सारे वित्‍तीय और प्रशासनिक अधिकार छीन रखे हैं।

इन दोनों घटनाओं में एक दिलचस्‍प आंकड़ा कॉमन है। दोनों जगह देने वाले ने परंपरागत रूप से 10 प्रतिशत देने की बात कही और मांगने वाले ने 25 फीसदी की मांग की। अब इसे जरा सीएमएस की रिपोर्ट से जोड़कर देखें। ये जो 10 फीसदी देने को तैयार लोग हैं, ये ही शायद वे 67 फीसदी हैं जो कह रहे हैं कि हालात जैसे थे वैसे ही हैं। यानी प्रदेश में होने वाले लेनदेन में दस फीसदी का भ्रष्‍टाचार तो लोग मानकर ही चलते हैं और उसकी ‘व्‍यवस्‍था‘ भी करके रखते हैं। और रिपोर्ट के 29 फीसदी वे लोग जो राज्‍य में भ्रष्‍टाचार बढ़ने की बात कह रहे हैं, ये शायद वे भुक्‍तभोगी हैं जिनसे 10 के बजाय 25 फीसदी रिश्‍वत मांगी गई।

अब जरा इस भ्रष्‍टाचार का दायरा देखिए… इस साल से तो सरकार ने बंद कर दिया, लेकिन पिछले साल तक राज्‍य का बजट योजना और गैर योजना मदों में बंटा रहता था। पिछले साल का आयोजना (प्‍लान) बजट 74401.69 करोड़ रुपए का था। यानी मोटे तौर पर देखें तो प्रचलित रस्‍मो रिवाज के अनुसार इसका 10 फीसदी अर्थात 7440 करोड़ तो भ्रष्‍टाचार की भेंट चढ़ता ही है। मतलब हमने बीमारू का टैग निकाल कर कैंसर को गले लगा लिया है।

अपनी बात भी मैं एक किस्‍से से ही खत्‍म करूंगा। जिस दिन सीएमएस की रिपोर्ट आई उसी दिन ग्‍वालियर के ही भाजपा के एक पुराने नेता राज चड्ढा ने फेसबुक पर कमेंट किया। जरा इसे पढि़ए…, क्‍या आपको लगता है कि इस ‘कमेंट’ पर कुछ ‘कमेंट’ करने की जरूरत है-

‘’मुख्‍यमंत्री जी, प्रदेश में भ्रष्‍टाचार चरम पर है, अस्‍पतालों की दुर्दशा असहनीय है। सुधार करिये या हम जैसे लाखों कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर कर दीजिए, जिन्‍होंने पंडित दीनदयाल जी के सपनों को पूरा करने के लिए पार्टी में अपना जीवन खपा दिया।

– राज चड्ढा, कार्यकर्ता भाजपा, वर्ष 1962 से’’

पुनश्‍च- जब यह कॉलम छपने जा रहा था तभी खबर आई है कि राज चड्ढा भाजपा की प्राथमिक सदस्‍यता से निलंबित कर दिए गए हैं।

 

 

 

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