कायदे से तो मध्यप्रदेश में सीबीएसई से संबद्ध सारे स्कूलों में ताले डालकर उनके संचालकों/प्रबंधकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी। लेकिन हमेशा से ही लकीर पीटने की आदी रही राजनीतिक और प्रशासनिक मशीनरी, इंदौर में हुई डीपीएस बस दुर्घटना के बाद फिर से उसी कर्मकांड में लग गई है। नए नए कानून कायदों की बात हो रही है और परंपरानुसार कठोर कार्रवाई की चेतावनियां दी जा रही हैं।
मामला चूंकि बच्चों की मौत से जुड़ा है और संवेदनशील है इसलिए सरकार शायद थोड़े दिन स्यापा करके यह जताना चाहती है कि उसे सचमुच बच्चों की चिंता है, वह वास्तव में स्कूलों में बच्चों को लाने ले जाने से जुड़ी समूची परिवहन व्यवस्था को सुधारना चाहती है। ऐसा जताया जा रहा है मानो अब सरकार कानून कायदों की अनदेखी करने वालों पर कहर बनकर टूट ही पड़ेगी।
पर यकीन जानिए ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। आप पूछ सकते हैं कि मैं इतने यकीन के साथ यह बात कैसे कह रहा हूं, तो जनाब मेरा नम्र निवेदन है कि सालों से जो बात कानून कायदे और दिशानिर्देशों के रूप में सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है उसका तो हम पालन करवा नहीं पाए,अब नए कायदे बनाकर कौनसा खंभा गाड़ या उखाड़ लेंगे?
मेरी प्रिय पुस्तक ‘राग दरबारी’ में श्रीलाल शुक्ल जी ने एक जगह लिखा है- ‘’तुमने मास्टर मोतीराम को देखा है कि नहीं? पुराने आदमी हैं,दारोगाजी उनकी बड़ी इज्जत करते हैं। वे दारोगाजी की इज्जत करते है। दोनों की इज्जत प्रिंसिपल साहब करते है। कोई साला काम तो करता नही है, सब एक-दूसरे की इज्जत करते हैं।‘’ सो, डीपीएस मामले में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है, कोई साला पालन तो करवाता नहीं, सब नए नए कानून कायदे लागू करने की बात जरूर करते हैं।
हैरत की बात है कि जब से इंदौर हादसा हुआ है तब से मुख्यमंत्री से लेकर परिवहन और स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री तक, सबके सब स्कूली बसों या बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाले अन्य वाहनों की गति और फिटनेस पर तमाम तरह की बातें कर रहे हैं। लेकिन लगता है प्रशासनिक मशीनरी मुख्यमंत्री तक की ब्रीफिंग भी ठीक से नहीं कर रही है।
मसलन इंदौर में पीडि़त परिवार वालों से मुलाकात कर भोपाल लौटने के बाद मुख्यमंत्री ने स्टेट हैंगर पर ही अफसरों की बैठक ली और कहा कि स्कूली बसों की स्पीड अधिकतम 40 किलोमीटर प्रति घंटा रहेगी। यदि ज्यादा गति पाई जाती है तो बस चालक के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी। उन्होंने कहा कि स्पीड गवर्नर और जीपीएस की क्वालिटी में सुधार के लिये केन्द्रीयकृत डाटा सेन्टर बनाया जाएगा जिसके जरिए बसों की लोकेशन और स्पीड का सही पता लगाया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री ने उस बैठक में यह भी कहा कि सी.बी.एस.ई/आई.सी.एस.ई. अथवा अन्य बोर्ड से संबंधित शालाओं द्वारा यदि स्कूल बसों की सुरक्षा से संबंधित निर्देशों का पालन नहीं किया जाता तो उनकी संबद्धता के लिये राज्य शासन द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र को निरस्त करने की कार्रवाई की जाए।
मंगलवार को ऐसी ही एक बैठक परिवहन मंत्री ने ले ली। उन्होंने भी कहा कि स्कूली वाहनों का सघन चैकिंग अभियान चलाया जाए। स्पीड गवर्नर और जीपीएस गुणवत्तापूर्ण हों। वाहन में बैठने वाले बच्चों की संख्या निर्धारित हो। स्कूल वाहनों की गति 40 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं हो, साथ ही वाहन चालकों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिलवाया जाये।
इस बीच एक खबर यह भी आई कि स्कूल शिक्षा मंत्री ने मुख्यमंत्री को नोटशीट भेजकर इस बात पर उनका अनुमोदन चाहा है कि संबंधित स्कूल के आसपास के पांच किमी के दायरे में रहने वाले बच्चों को ही वहां प्रवेश दिया जाए। अभी बच्चों को कई जगह स्कूल जाने के लिए प्रतिदिन 10 से 30 किमी की दूरी तक तय करनी पड़ रही है। दूरी कम होने से दुर्घटनाएं घटेंगी।
यानी राज्य की सर्वोच्च राजनीतिक सत्ता से लेकर उच्च नौकरशाही तक, सब नए नए सुझाव लेकर नमूदार हो रहे हैं। लेकिन कोई भी 23 फरवरी 2017 को जारी सीबीएसई के उस सर्कुलर को पढ़ने की जहमत नहीं उठा रहा जिसका जिक्र मैंने 8 जनवरी के इसी कॉलम में किया था। उस सर्कुलर में पहले से ही साफ साफ लिखा है कि सभी स्कूल बसों में, गति को 40 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार तक सीमित रखने वाले स्पीड गर्वनर अनिवार्य रूप से लगे होने चाहिए।
यानी आज यदि राजनीतिक नेतृत्व अफसरों को यह निर्देश दे रहा है कि स्कूली बसों की गति 40 किमी से अधिक न हो तो इसका मतलब यह है कि अभी ऐसी बसें 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से कहीं अधिक रफ्तार पर चल रही हैं, जो कि सीबीएसई के साल भर पहले दिए गए दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन है। ऐसे में तो शासन प्रशासन को सीधे सारी बसों पर और स्कूलों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन हम सुझावों का झुनझुना बजा रहे हैं।
खुद सीबीएसई का सर्कुलर कहता है कि उसके द्वारा स्कूल बसों को लेकर जारी गाइडलाइन, स्कूलों की संबद्धता संबंधी नियमों का अभिन्न हिस्सा है और उसका अनिवार्यत: पालन होना चाहिए। पालन न होने पर सीबीएसई से संबद्ध स्कूल का प्रबंधन और संस्थान के प्रमुख सीधे तौर पर जिम्मेदार होंगे और वैसी दशा में स्कूल की संबद्धता रद्द करने जैसी कार्रवाई भी की जा सकती है।
तो भैया, आपको ज्यादा कष्ट पाने की जरूरत नहीं है। आपके शिक्षा विभाग के पास ये सारे सर्कुलर पहले से ही मौजूद होंगे, नहीं हों तो सीबीएसई के रीजनल कार्यालय से मंगवा लें, क्योंकि यह सर्कुलर सारे रीजनल कार्यालयों को भेजा गया है। आप तो बस उसका पालन करवा दो। यदि इतनी ही चिंता है और आप में यदि हिम्मत है तो दो चार डीपीएस टाइप स्कूलों के कर्ताधर्ताओं को अंदर करके दिखाओ। पूरी दुनिया को पता है, वो आपसे हो ना पाएगा। तो फिर ये फालतू गाल बजाने और कानून कायदों को लेकर माथाफोड़ी करने का तमाशा क्यों?