शशिकांत त्रिवेदी
भारत पर 2019 में जीडीपी का 69 (146.886 ट्रिलियन यानि 146 लाख करोड़ रुपये) फीसदी कर्जा था। ये विकिपीडिया पर आप देख सकते हैं। अब यह लगभग 91 फीसदी हो चुका है। मतलब 180 लाख करोड़ रुपये। अभी पांच दिन चली मीटिंग में करीब पंद्रह राज्यों ने कहा कि उनके पास वेतन देने ले लिए पैसे नहीं हैं। कई लोग इन बातों को नहीं समझ पाते।
दरअसल एक कानून है जिसके मुताबिक कोई भी राज्य अपने सकल घरेलू उत्पाद का 3 फीसदी कर्ज ले सकता है। जैसे मध्यप्रदेश की जीडीपी नौ लाख करोड़ रुपये की है तो वह इसका 3 फीसदी यानी 27000 करोड़ रुपये का कर्ज बाजार से उठा सकता है। अभी के संकट में दो फीसदी से ढाई फीसदी तक यह सीमा बढ़ा दी गई थी। मतलब मध्यप्रदेश जैसा राज्य लगभग 50000 करोड़ रुपये कर्ज ले सकता है। लेकिन उसे कम से कम 6 फीसदी ब्याज पर वापस चुकाना भी पड़ता है। यानी 3000 करोड़ तो सिर्फ ब्याज।
मध्यप्रदेश जैसे राज्य ये कर्ज पहले ही ले चुके हैं और सीमा भी पार कर चुके हैं। क्योंकि इनका महीने का खर्च 18000 करोड़ रुपये है। और कमाई आजकल क्या है किसी को नहीं मालूम। जाहिर है 5000 करोड़ रुपये से कम है इसलिए वेतन का संकट है। बाकी 13000 करोड़ अगर नहीं आएंगे तो सरकारी काम करने वाले ठेकेदारों के, उद्योगों के बिलों का भुगतान नहीं होगा, उनका भुगतान नहीं होगा तो वे अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालेंगे, अगर वे लोगों को नौकरी से निकालेंगे तो बाजार में मांग में कमी आएगी, क्योंकि लोग पैसे की बचत करेंगे और खर्च बिल्कुल ज़रूरी चीजों पर करेंगे।
अगर मांग में कमी आएगी तो उद्योग और पैसा क्यों लगाएंगे, वे अगर पैसा नहीं लगाएंगे तो बैंकों से कर्ज नहीं लेंगे, अगर वे कर्ज नहीं लेंगे तो बैंक अतिरिक्त पैसे को रिजर्व बैंक में रखेंगे अगर वे रिजर्व बैंक में रखेंगे तो उन्हें बिना कमाई के उस पर ब्याज देना पड़ेगा। उन्हें बाजार से, उद्योगों से, ब्याज मिलेगा नहीं और उलटे जमाओं पर यदि ब्याज देना पड़ेगा तो बैंक बैठ जाएंगें, बैंक बैठ गए तो राज्यों को कर्ज कहाँ से मिलेगा, फिर मुझे नहीं मालूम कृपा कहाँ से आएगी।
अभी पांच दिन चली बैठक में आदरणीय आंटी ने राज्यों से कहा है कि हम यानी केंद्र राज्यों को पैसा नहीं दे सकता। जबकि जीएसटी लाते वक्त यह संवैधानिक वादा किया गया था कि राज्यों को यदि टैक्स इकट्ठा करने में घाटा 14 फीसदी से ऊपर जाता है तो भरपाई केंद्र करेगा। अव्वल तो ये शर्त लिखी किस बुद्धिमान ने? अगर राज्यों को पिछले साल के मुकाबले 14 फीसदी बढ़ाकर टारगेट दिया गया है और अधिकारी को मालूम है कि इससे कम आने पर केंद्र देगा तो वो काम क्यों करेंगे?
जैसे किसी अखबार में संपादक कहे कि रिपोर्टर को सिर्फ 14 खबरें लिखनी है अगर कम हुई तो वो खुद लिख लेगा। तो रिपोर्टर क्यों काम करेगा? हुआ भी यही, जीएसटी आने के बाद, राज्य में कर जैसी कोई प्रणाली की ज़रूरत ही नहीं है। इसीलिए मध्यप्रदेश जैसे राज्य में जब कमलनाथ सरकार आई तो उसने अधिकारियों के लिए 27 फीसदी टैक्स बढ़ाने का अनुमान रखा क्योंकि उन्हें मालूम था, आना तो है नहीं और जो भी कमी होगी वो केंद्र सरकार देगी।
अब जब केंद्र सरकार ने मना कर दिया है तो सैलेरी देने के लाले पड़ने लगे हैं। महंगाई भत्ता और वार्षिक वेतन वृद्धि रुकी पड़ी है। साहब सड़कों के लिए 15000 करोड़ का कर्ज लेने वाले हैं पर देगा कौन? दे भी दिया तो वापस कैसे लौटाया जाएगा? राज्यों को 235000 करोड़ रुपये चाहिए, केंद्र ने 65000 करोड़ आरबीआई से उधार लेने के लिए कहा है। लेकिन क्या ये उधारी वेतन देने के लिए है? या वे पूरा पैसा बैंको से ले सकते हैं, उन बैंको से जो पहले ही बढ़े हुए एनपीए से जूझ रहे हैं। फिर जब उन्हें ये मालूम है कि ये पैसा राज्य सैलरी देने में खर्च करने वाले हैं तो क्या ये पैसा उन्हें देना चाहिए। मतलब इसकी टोपी उसके सर?
इसीलिये रिजर्व बैंक के गवर्नर ने चिंता जताई कि बैंकों ने अपनी बैलेंस शीट ठीक नहीं की तो जो पूंजी है वह भी गायब हो जाएगी, मतलब साफ़ है कि जिस पैसे के लौटने की उम्मीद न हो वो बिल्कुल न बाँटो। अब बैंक करें तो क्या करें? फिर अगर सब कुछ बंद है; जैसे रेल, बस, कोर्ट, स्कूल, रेस्त्रां, सिनेमा, कॉलेज और दफ्तर, तो लोगों के पास पैसा कब तक रहेगा? बचत कब तक रहेगी और मान लीजिए सभी के पास सोना है और सभी बेचने पर उतारू हो गए तो लेगा कौन, जैसे आजकल मकान नहीं बिक रहे।
ये पहली बार है कि मांग से ज़्यादा आपूर्ति है और चीजों के दाम आसमान पर हैं। उस पर भविष्यवाणियां ये हो रही हैं कि कोरोना का दूसरा भयानक दौर अभी आने वाला है। फिर भी ये ओरोना-कोरोना, इकोनॉमी-फेकोनॉमी सारी समस्यांए हम सबके प्रिय और चहेते कलाकार माननीय, पूज्य, स्वर्गीय श्री सुशांत जी के जीवन व्यक्तित्व से बेहद छोटी हैं। इन समस्याओं का उनके व्यक्तित्व के सामने कोई वजूद नहीं हैं। जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, हमारा देश भले कंगाल हो जाए, हम सबको उनकी महान आत्मा के लिए हर त्याग के लिए तैयार रहना चाहिए। नौकरी और बैंक अकाउंट के लिए भी। तभी भारत का भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा।