महिला पीएम है तो क्‍या उसकी निजता लांछित होगी?

के. विक्रम राव

उन्मुक्त यौन-रिश्तों और स्वच्छंद विचारों के लिये जाने जाते यूरोप महाद्वीप में एक खबर गत सप्ताह से घूम रही है। फिनलैंड की युवा, रूपवती, सोशलिस्ट प्रधानमंत्री साना मिरेला मरीन का एक वीडियो वायरल हुआ है। वे एक निजी मकान में नाच गाना कर रही हैं। यह छत्तीस वर्ष की राजनेत्री, चार वर्ष की बेटी की मां, इस मनोरंजन से दफ्तरी थकान दूर कर रही थीं। स्वाभविक है उनके सियासी शत्रुओं ने मुहिम चला दी कि उनका व्यवहार श्लील और सभ्य नहीं है। अतः वे पद छोड़ें।

भारत के पश्चगामी समाज में तो ऐसी आलोचना मुमकिन है। अपेक्षित है। अब यूरोप में भी? खुद सना ने साहस भरकर दावा किया कि उन्होंने मित्रों के साथ मदिरा पान किया। मगर मादक द्रव्य का सेवन कतई नहीं किया। जांच भी करा चुकी हैं। फिर सोशलिस्ट जन तो आगेदेखू होते हैं। दकियानूसियत के दुश्मन हैं। नरनारी के संबंधों को जकड़न से मुक्त कराना चाहते हैं। साना ने कहा उनके साथी न उच्छृंखल थे, न उतेजक। पार्टी में हर्षित रहे और रसमय थे। आनंदित थे।

राजधानी हेलसिंकी के छात्र मिन्टू किलाइनेन ने सना की आलोचना करने वालों की भर्त्सना करते हुए कहा कि यह पुरुषवादी प्रवृत्ति है। क्या नारी सुख को नहीं खोज सकती? आखिर जीवन का लक्ष्य ही है सुख। समीपस्थ पोलैण्ड के प्रधानमंत्री मातेज्स मोराविस्की ने उपहास किया कि ‘‘दो घूंट वोदका पी लिया तो कौन सा बड़ा कहर बरपा है? बस आह भर ली तो बदनाम कर दिया क्योंकि वह नारी है?‘‘

यूं तो ब्रिटिश कवयित्री लेतिशिया एलिजाबेथ लेंडर की काव्यमय पंक्ति है कि उच्च पदवालों के लिये संयम ही एक सुनहरा नियम होता है। इसीलिये भारतीय अति को वर्जनीय मानते हैं। यूं भी विश्व की सबसे युवा प्रधानमंत्री साना के समर्थन में यूरोप के युवाजनों ने कमर कस ली है। चूंकि साना तलाकशुदा हैं, अतः ऐसा दूषित नजरिया?

साना के पांच दलों की संयुक्त सरकार में 19 में से 12 मंत्री महिला हैं। महिला राजनेता को असह्य मानने वाले लिंगभेदी पुरुषों ने फिनलैंड की एक फैशन पत्रिका ‘ट्रेण्ड‘ के हवाले से (अक्टूबर 2020 में) कहा गया था कि प्रधानमंत्री साना केवल ब्लेजर कोट पहनती हैं। नीचे कोई वस्त्र नहीं। ब्रा भी नहीं। पैंट पहनती है। इस पर महिला संगठनों ने मजाक उड़ाया कि वे क्या पहने इसका निर्धारण भी क्‍या अब पुरुष ही करेंगे?

इस संदर्भ में रोम, जो मुक्त-यौन के लिये मशहूर है, में इटली की राजधानी के न्यायाधीश ने एक बलात्कारी को निर्दोष छोड़ दिया था। जज के आकलन में युवती जीन्स पहने थी। उनकी राय में कसे जींस पहने लड़की का बलात्कार असंभव है। फिर भारत में क्या? यहां तो महिला भारी भरकम लबादा ओढ़े रहती है।

फिलहाल साना के पति मार्कस रैकोनिन इन सब अफवाहों को खारिज करते हैं। दूरसंचार विभाग के कर्मी मार्कस अपनी पत्नी को हमसफर कहते हैं। निचले पायदानवाली नहीं। उन्हें तो आश्चर्य होता है कि पत्नी साना पर दोष रोपित हुए क्योंकि वह शाकाहारी हैं, केवल मां द्वारा पोषित हुयी हैं। उनकी माता का तलाक हो गया था। प्रधानमंत्री साना नैतिक इतनी कि अपने नाश्ते के बिल का भुगतान स्वयं करती हैं। जबकि राजकोष से नियमानुसार व्यय कर सकती हैं।

साना के समर्थकों को संदेह है कि चूंकि वे दिसंबर में यूरोपीय संसद की अध्यक्ष चुनी जा सकती हैं इसलिए उनके रास्‍ते में रुकावट डालने के इरादे से रात की पार्टी और मादक द्रव्य के सेवन की साजिश रची गयी है। यूं भी पड़ोसी युद्धग्रस्त यूक्रेन के साथ साना चट्टान की भांति खड़ी हैं। अतः रूसी गुप्तचारों द्वारा दुष्प्रचार आशंकित है। फिनलैण्ड भूभाग और आबादी में कानपुर से भी छोटा है। वहां चिकित्सा और आवास फ्री है।

यह लघु राष्ट्र हमारे पड़ोसी भूटान की भांति आनन्द का संसार माना जाता है। इस बात की ताईद आईएफडब्ल्यूजे के वे 250 प्रतिनिधि भी करेंगे जो इस हिमालयी देश की यात्रा पर 2011 में गये थे। ऐसे में मुझे याद आया कि अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठन, जिससे हमारा आईएफडब्ल्यूजे संबद्ध रहा, के अध्यक्ष कार्ल नार्दनस्ट्रेंड फिनलैंड के ही थे।  वे अपने राष्ट्र की नारी स्वतंत्रता की गाथा हमें सुनाते थे।

नार्दनस्‍ट्रेंड ने हमारे आईएफडब्ल्यूजे के अयोध्या सम्मेलन को संबोधित करते हुए महिला पत्रकारों को नयी चुनौतियों का सामना करने हेतु प्रशिक्षित तथा तत्पर रहने की अपील की थी। अयोध्या (तब फैजाबाद: 25 जून 1984) में हुये हमारे राष्ट्रीय अधिवेशन में ‘जनसंदेश टाइम्स‘ के संपादक सुभाष राय एक तरुण प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे। जनमोर्चा के संपादक ठाकुर शीतला सिंह स्वागत समिति के अध्यक्ष थे तथा यूपी यूनियन के अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी आयोजक थे।

इसीलिये हमें दुख होता है कि उदार, विशाल हृदयवाले फिनलैंड की निपुण महिला प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसे बेबुनियाद अफवाह और लांछन लगाए गए जिनको लेकर कोई भी नारी अपना बचाव सरलता से नहीं कर सकती है। अर्थात समाज अभी भी पुरुषों द्वारा संचालित होता है। मूल्य और मानक वे ही तय करते हैं। इसीलिये लोहिया याद आते है कि भारतीय नारी का आदर्श पांचाली हो, न कि सावित्री। वह पूर्णतया आग्रही, स्वतंत्रता प्रेमी, स्वावलंबी हो।
(मध्यमत)
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