राकेश अचल
नक़्क़ाली की हद होती है, होती है नहीं, होती थी। लेकिन इंसानों ने इस हद को भी तोड़ दिया। नक़्क़ाली के मामले में एक जमाने में हम भारत वाले आपने आपको बहुत गौरवान्वित महसूस करते थे, लेकिन हमारे इस दर्प को चीन समेत दुनिया के तमाम छोटे देशों ने बहुत पहले तोड़ दिया था। अब हम असली और नकली दोनों तरह के उत्पाद बनाने के मामले में दुनिया से बहुत पीछे हैं। नक़्क़ाली का विश्व गुरु इस समय चीन है, ताजा खबर है कि चीन ने अब नकली सूरज और चाँद दोनों बना लिए हैं।
चीन के ऊपर नक़्क़ाली करने का दबाव जनसंख्या दबाव के कारण है। ये दबाव हमारे ऊपर भी है किन्तु हम इसे दबाव नहीं बल्कि ईश्वर की देन मानते हैं इसलिए हमने नक़्क़ाली के काम को सुस्त कर दिया है। नक़्क़ाली के मामले में हमारी कोशिशें अब नगण्य हैं। दुनिया में अगर किसी को नकली माल चाहिए तो वो ‘मेड इन इंडिया’ नहीं बल्कि ‘मेड इन कोरिया, मेड इन चाइना’, माँगता है। आखिर नक़्क़ाली में भी तो गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण कारक है। नकली बनाओ तो ऐसा बनाओ कि असली को भी मात दे दे। चीन अब नक़्क़ाली के मामले में सिद्धहस्त हो चुका है।
चीन को जब भगवान का बनाया सूरज कमतर लगने लगा तो उसने फटाफट एक नकली सूरज बना लिया, लेकिन दुनिया ने चीन की इस ईजाद को कोई तवज्जो नहीं दी। चीन दुनिया का ध्यान शायद आकर्षित करना भी नहीं चाहता। अब खबर आयी है कि उसने नकली सूरज का अकेलापन देखकर नकली चाँद भी बना लिया है। अब आप नहीं कह सकते कि-‘ इक चाँद आसमां पे है, इक मेरे पास है।’ अब आपको कहना पडेगा कि-‘इक चाँद आसमान पे है, तीसरा चीन के पास है।‘
सवाल ये है कि चीन को नकली चाँद-सूरज बनाने की सूझी कैसे? उसे तो नकली रोटी बनाना चाहिए थी। इंसान की जरूरत सूरज-चाँद से ज्यादा सूरज-चाँद जैसी गोल-गोल रोटी है। सूरज-चाँद तो पहले से भगवान ने मुफ्त में बनाकर दिया हुआ है ही! लेकिन नहीं चीन ने आत्मनिर्भरता के सिद्धांत पर आगे बढ़कर अपना सूरज-चाँद बना लिया। रोटियां तो चीन की महिलाएं बना ही लेंगी। भगवान के सूरज-चाँद का क्या भरोसा कि कल को फ्यूज हो जाए। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में आपको चीन निर्मित सूरज-चाँद का विज्ञापन फेसबुक पर दिखाई देने लगे। लेकिन सावधान फेसबुक पर कोई भी चीनी माल खरीदने से पहले सौ बार सोच लेना, क्योंकि चीनी माल फेसबुक पर जितना खूबसूरत दिखता है, वैसा होता नहीं है। ये मेरा अपना तजुर्बा है।
बात चल रही थी नकली सूरज और चाँद की। चीन वालों ने खबर दी है कि नकली सूरज के बाद चीन ने ‘नकली चांद’ भी बना लिया है। नकली चांद बनाने के पीछे गुरुत्वाकर्षण से संबंधित एक प्रयोग करना था, जिसमें नकली चांद से ग्रैविटी पूरी तरह खत्म हो जाती है। इसमें चुंबकीय शक्ति की परख की गई, ताकि भविष्य में चुंबकीय शक्ति से चलने वाले यान और यातायात के नए तरीके खोजे और चांद पर इंसानी बस्ती बना सके। नकली सूरज-चाँद बनाये जाने की खबर से आप भले ही हतप्रभ और निराश हों लेकिन असली सूरज-चाँद बेहद खुश हैं। बेचारे जब से बने हैं तब से आज तक कभी छुट्टी पर ही नए गए। अब, जब नकली सूरज-चाँद काम करने लगेंगे तो ये असली वाले भी बारी-बारी से छुट्टी ले सकेंगे।
आप यकीन मानिये कि मैं चीन के इस नए आविष्कार से बहुत खुश हूँ। मेरी खुशी का पारावार नहीं है। दरअसल दुनिया से असली चीजें जिस रफ्तार से गायब हो रही हैं उसे देखते हुए दुनिया में नकली चीजों की मांग तेजी से बढ़ने वाली है। आने वाले दिनों में दुनिया की जनसंख्या वृद्धि में गिरावट से परेशान कुछ देश नकली इनसान की मांग भी कर सकते हैं। और मुमकिन है कि चीन भविष्य में नकली इनसान भी बनाकर ही चैन ले। चीन दुनिया की हर जरूरत को समझता है, उस पर रिसर्च करता है, उसका उत्पादन करता है और फिर उसे बेचता है। भारत जैसे चिरशत्रु से लेकर महाबली अमेरिका तक चीनी उत्पादों के मुरीद हैं।
मुझे चीन जाने का मौक़ा मिला है इसलिए मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि चीनी कुछ भी कर सकते हैं। उनका मुकाबला करना आसान नहीं है। हम झूठ बोलने में विश्वगुरु हो सकते हैं किन्तु असल में नकली सामान बनाने में नहीं। हम बहुरूपिये हो सकते हैं लेकिन बहुउद्देश्यीय सामान का निर्माण नहीं कर सकते। कारण ये है कि हम असली के मुरीद हैं, भले ही असल के नाम पर हम भी सब कुछ नकली ही वापरते हैं। हमें असली घी और दूध के नाम पर आप कुछ भी बेच सकते हैं। खाने-पीने की चीजों से लेकर जीवन रक्षक दवाएं तक हमें असली चाहिए, लेकिन वे हों नकली। असली जैसी दिखाई देती हों बस। हम सूरज-चाँद नकली बनाकर भगवान को चुनौती नहीं दे सकते, क्योंकि उनके नाम पर तो हम वोट मांगते हैं, राजनीति करते हैं। चीन में भगवान के भरोसे न वहां की जनता है और न सरकार।
खबर है कि चीन के वैज्ञानिकों ने अभी एक छोटा प्रयोग किया है। इसके बाद इस साल के अंत तक एक ताकतवर चुंबकीय शक्ति वाला वैक्यूम चैंबर बनाएगा। जिसका व्यास 2 फीट का होगा। ताकि इसमें से गुरुत्वाकर्षण पूरी तरह से खत्म करके मेंढक को हवा में उड़ाया जा सके। हालांकि, मेंढक को ऐसे वैक्यूम चैंबर में पहले भी लटकाया जा चुका है। हमारे यहां अभी मेढकों को तराजू में तौलने की कोशिशें ही कामयाब नहीं हुईं हैं। वे कभी इस पलड़े से उस पलड़े में चले जाते हैं और कभी नीचे जमीन पर आ गिरते हैं। मेढकों की इस कला को सियासी भाषा में दलबदल कहा जाता है। चीन के सामने चूंकि मेढकों कि तरह दलबदल का संकट नहीं है, इसलिए वहां चाहे असली चीजें बनाने की बात हो या नकली, सब आसानी से हो जाता है।
हमारे यहां यूनिवर्सिटी अभी तक केवल नकली पीएचडी देने से आगे नहीं बढ़ पायी हैं, जबकि चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ माइनिंग एंड टेक्नोलॉजी के जियोटेक्निकल इंजीनियर ली रुईलिन ने कहा कि इस वैक्यूम चैंबर को पत्थरों और धूल से भर दिया जाएगा, जैसे चांद की सतह पर होती है। चांद की ऐसी सतह पहली बार धरती पर बनाई जाएगी। इसका छोटा प्रयोग हम कर चुके हैं, जो सफल रहा है। लेकिन अगले प्रयोग में कम गुरुत्वाकर्षण शक्ति लंबे समय तक बनाए रखने के लिए इस प्रयोग को ज्यादा दिन तक चलाने की योजना है।
बहरहाल आप चिंतित न हों, अभी हमारा काम असली सूरज-चाँद से चल रहा है, इसलिए हमारे देश के वैज्ञानिक इस तरह की नकल के फेर में नहीं हैं। लेकिन हमें भी इस दिशा में काम करना चाहिए। आप मेरे इस लेख पर यकीन करें या न करें लेकिन इस असली लेख में जो भी सूचनाएं हैं एकदम असली हैं, विषय जरूर नकली सूरज-चाँद का है।(मध्यमत)
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