अजय बोकिल
देश में जारी कोरोना संकट के बीच आंध्र प्रदेश के तटवर्ती शहर विशाखापटट्नम और छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में जहरीली गैसों के लीक होने से करीब एक दर्जन लोगों की मौत और कई लोगों के गंभीर होने की घटना ने फिर इस बात को रेखांकित किया है कि 36 साल पहले हुए भोपाल गैस कांड के भयावह हादसे से कोई सबक नहीं लिया गया है। भोपाल गैस कांड विश्व की अब तक की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी थी, जिसमें हजारों लोगों को एक रात में अपनी जानें गंवानी पड़ी थीं। लाखों लोग आज तक उस त्रासदी के दुष्परिणाम भुगत रहे हैं।
विशाखापट्टनम हादसे में जो बात सामने सामने आई है, उसके मुताबिक शहर के गोपालपट्टनम औद्योगिक इलाके में स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी एलजी पोलिमर्स लि. के कारखाने से स्टायरीन नामक खतरनाक गैस लीक हुई, जिसे सूंघने से 6 और गैस से बचने के लिए भागते समय तीन लोगों ने अपने जानें गंवाईं। पुलिस और प्रशासन ने पूरे इलाके को खाली करा लिया है। कई अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें से 20 की हालत गंभीर बताई जा रही है। कुछ जानवर भी मरे हैं। कई लोगों को घरों के दरवाजे तोड़कर बाहर निकालना पड़ा।
इस केमिकल प्लांट के तीन किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। हादसे की सूचना मिलते ही राज्य सरकार और केन्द्र सरकार भी हरकत में आई। राज्य के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने मृतकों के परिजनो को 1-1 करोड़ के मुआवजे का ऐलान किया है। उधर छग के रायगढ़ में एक पेपर मिल में क्लोरीन गैस पाइप फटने से कारण 7 मजदूर झुलस गए। उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भरती कराया गया है।
विशाखापट्टम में जो हुआ, वह एकतरह से भोपाल गैस कांड की पुनरावृत्ति ही थी। विशाखापट्टनम में कोरोना की दहशत में घरों में कैद लोग गुरुवार सुबह जैसे ही सोकर उठे तो देखा कि कारखाने के आसपास कई लोग कई जगहों पर बेहोश पड़े हैं। सड़क किनारे मृत मवेशी भी नजर आए। घबराए लोग बच्चों को कंधे पर रखकर अस्पतालों की ओर भागे। लोगों के मुताबिक उन्हें रात तीन बजे से ही सांस लेने में तकलीफ, भयानक खुजली और आंखों में जलन होने लगी थी। डर के मारे भागे तो जहरीली हवा और फेफड़ों में चली गई।
भोपाल में भी 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात कुछ ऐसा ही हुआ था। तब बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्लांट से जहरीली मिथाइल आइसो साइनेट (एमआईसी) गैस रिसी थी। जबकि एलजी के कारखाने से निकलने वाली गैस स्टायरीन है। स्टायरीन से पोलीस्टाइरीन बनाया जाता है। एमआईसी और स्टायरीन दोनों कार्बनिक गैसे हैं, जिनका इस्तेमाल रबर, रेजिन व अन्य उत्पाद तैयार करने में होता है। दोनों ही गैसे जानलेवा हैं। स्टायरीन से कैंसर होने का खतरा है, जबकि एमआयसी तो और ज्यादा खतरनाक है। इसका दुष्प्रभाव तो पीढि़यों तक चलता है, जो हम भोपाल में देख रहे हैं। दोनों गैसें मानव जींस पर भी विपरीत असर डालती हैं।
बताया जाता है कि एलजी पोलिमर्स कारखाने में 1800 टन स्टाइरीन स्टोर की गई थी। यह गैस कैसे और क्यों लीक हुई, यह अभी जांच का विषय है। कहा जा रहा है कि तापमान में बदलाव के कारण गैस लीक हुई। लेकिन इतना तय है कि कहीं न नहीं घोर लापरवाही हुई है। ऐसी लापरवाही, जिसके लिए इंसानी जान की कोई कीमत नहीं है। क्योंकि अगर तापमान बढ़ने से गैस लीक होने का अंदेशा था तो उसे रोकने के उपाय क्यों नहीं किए गए थे? आंध्र में तो इस मुददे पर राजनीति भी शुरू हो गई। वहां पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार से विशाखापट्टनम जाने की अनुमति मांगी है।
यहां अहम सवाल यह है कि क्या एलजी पोलिमर्स कारखाने में जिन पोलीस्टायरीन जैसे रसायनों का उत्पादन हो रहा था, उनकी उत्पादन वृद्धि के लिए बाकायदा अनुमति ली गई थी या नहीं? यदि नहीं तो कारखाने में यह प्रॉडक्शन कैसे जारी था? ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट बताती है कि एलजी पोलिमर्स ने कारखाने के विस्तार और उत्पादन वृद्धि परियोजना के लिए दो साल पहले राज्य व केन्द्र सरकार से अनुमति मांगी थी, जो अभी तक नहीं दी गई है। यह अनुमतियां राज्य स्तरीय मूल्यांकन विशेषज्ञ समिति देती है। यह मामला अभी लंबित है। इसके अलावा केन्द्रीय पर्यावरण विभाग से भी मंजूरी लेनी पड़ती है। लेकिन यह मंजूरी भी नहीं मिली है। इसके बाद भी कारखाने में घातक रसायनों का उत्पादन कैसे जारी था?
सवाल कई हैं। बहुत सी बातों के खुलासे आगे होंगे। सरकारी तंत्र की लेतलालियां, भ्रष्टाचार तथा बड़ी कंपनियों का अपना तंत्र सिस्टम की परवाह नहीं करता। इसलिए कंपनी में क्या और कितना उत्पादन अवैध तरीके से हो रहा था, यह जांच में पता चलेगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात जो सामने आई है, वो ये कि एलजी के इस कारखाने में बीते डेढ़ माह से लॉक डाउन के चलते उत्पादन बंद था। दो दिन पहले ही कारखाना फिर खोला गया था और ये हादसा हो गया।
इसका मतलब यह है कि ऐसे तमाम कारखाने जो लॉक डाउन में लंबे समय से बंद रहे हैं, उन्हें फिर से चालू करते समय बेहद सावधानी की जरूरत है, जो इस कारखाने में शायद नहीं बरती गई। सरकार ठप हो चुकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए लॉक डाउन में भी कई कारखाने चालू करने की अनुमति दे रही है। लेकिन बड़े कारखानों को फिर से चालू करते समय अत्यंत जरूरी सावधानियां बरती जा रही हैं या नहीं यह कौन देखेगा? इसमें कोताही की गई तो कोरोना से बचे लोगों को ऐसी औद्योगिक त्रासदियां निगल जाएंगी। और ऐसा हुआ तो लॉक डाउन का उद्देश्य ही पराजित हो जाएगा।
विशाखापट्टनम के इस हादसे की तुलना भी बार बार भोपाल गैस कांड से की जाती रहेगी। क्योंकि भले ही यह हादसा तुलनात्मक रूप से छोटे पैमाने पर क्यों न हो, लेकिन इसके पीछे भी प्रवृत्तियां वही हैं। भोपाल गैस कांड के समय कहा गया था कि यह अपने तरह का पहला भयंकर औद्योगिक हादसा है। लेकिन विशाखापट्टनम के मामले में ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि भोपाल का उदाहरण सबके सामने हैं। लेकिन इतिहास से कोई सीख लेना नहीं चाहता।
सत्ता के खेल में उन आम लोगों की कराहें गुम हो जाती हैं, जिन्हें इन हादसों में अपनी जानें गंवानी पड़ती हैं। केवल हादसों के बाद दो-दो आंसू बहाए जाते हैं। खुद भोपाल में भी नई पीढ़ी के लिए भोपाल गैस कांड अतीत में हुआ एक भयावह हादसा भर रह गया है। इसका अर्थ यह नहीं कि उस हादसे की याद में सदियों तक आंसू ही बहाए जाएं, लेकिन यह सवाल तो हमेशा किया जाता रहेगा कि देश और प्रदेश में भोपाल गैस कांड दोहराया न जाए इसके लिए क्या किया गया अथवा किया जा रहा है?
ऐसे बड़े औद्योगिक हादसों में मरने वालों की संख्या से ज्यादा अहम मुददा यह है कि मनुष्यों की जिंदगियां इस तरह लापरवाहियों के हाथों में गिरवी कैसे रखी जा सकती हैं? केवल मुआवजा बांट देने और सांत्वना देने से सरकार और समाज की भी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। बल्कि यहां से शुरू होती है। लॉक डाउन समय का यह एक बड़ा सबक है।
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टीम मध्यमत