लाल, पीली और हरी झंडियों की ओर कब तक ताकेंगे

मध्‍यप्रदेश में सत्‍तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का सांगठनिक नेतृत्‍व जिस तरह से व्‍यवहार करता है, उसे देखते हुए कभी-कभी मुझे शक होने लगता है कि राज्‍य में सत्‍ता ही संगठन को चला रही है, संगठन का अपना अलग वजूद शायद है ही नहीं। लेकिन बीच-बीच में कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं, जो यह शक करने पर मजूबर करती हैं कि कहीं वास्‍तव में संगठन को अपना वजूद होने का अहसास तो नहीं हो गया?  और जब यह दूसरा शक सामने होता है तो वह पहले वाले शक को लेकर शक पैदा करने लगता है कि कहीं सत्‍ता ने संगठन पर अपनी पकड़ ढीली तो नहीं कर दी?

आप भी शक शकार की इस पहेली से चकरा गए ना… आप ही की तरह मैं भी चकराया हुआ हूं। और इस चक्‍कर का केंद्र बिंदु प्रदेश का चर्चित जिला मुख्‍यालय सागर है। किस्‍सा यह है कि एक ठेकेदार से, उसके काम का भुगतान करने के एवज में, कमीशन मांगने के आरोप में सरकार ने सागर के महापौर अभय दरे के सारे वित्‍तीय और प्रशासनिक अधिकार छीन लिए हैं।

सरकार ने यह कार्रवाई 21 फरवरी को सोशल मीडिया पर वायरल हुए महापौर अभय दरे के 11 मिनिट 39 सेकंड के एक ऑडियो क्लिप के सामने आने के बाद की है। इस ऑडियो क्लिप में महापौर, ठेकेदार संतोष प्रजापति को होने वाले 10 लाख रुपए के भुगतान पर 25 फीसदी कमीशन लेने की बात कह रहे हैं। ठेकेदार ने कुछ माह पहले स्वच्छता अभियान और स्मार्ट सिटी योजना के तहत स्वच्छ सागर अभियान में एक नाला साफ करवाने के लिए जेसीबी मशीन लगाई थी। भुगतान इसी काम का था।

कमीशन मांगे जाने का मामला वायरल होने पर सरकार ने जांच बिठाई और जांच में नगरीय प्रशासन आयुक्त विवेक अग्रवाल ने दरे को दोषी पाया। उसके बाद महापौर के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार छीन लिए गए हैं। इतना ही नहीं महापौर के खिलाफ ईओडब्ल्यू को भी मामला दिया गया है।

दरे के मामले में कुछ दिलचस्‍प संदर्भ यहां जान लेना जरूरी हैं। दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने नगरीय निकायों के चुनावी संघर्ष में कांग्रेस को पटकनी देने के लिए सागर कांग्रेस के नेता अभय दरे को तोड़ लिया था। बाद में उन्‍हें भाजपा ने सागर से अपना महापौर पद का प्रत्‍याशी बनाया। नवम्बर 2014 के अंतिम सप्ताह में सागर में हुई आमसभा में मुख्यमंत्री चौहान की मौजूदगी में अभय दरे ने घोषणा की थी कि, यदि वे सागर के महापौर बनते हैं, तो वेतन-भत्ते और बंगला कुछ भी नहीं लेंगे। उनके परिवार का कोई भी सदस्य न तो निगम में ठेकेदारी करेगा और न ही किसी प्रकार का लाभ लेगा।

मुख्यमंत्री के सामने महापौर सहित सभी पार्षदों का शपथ पत्र पेश किया गया था, जिसमें पार्षदों के परिवारजनों को भी ठेके से दूर रखने की शपथ ली गई थी। इसी सभा में मुख्यमंत्री चौहान ने गारंटी ली थी कि महापौर पद के प्रत्याशी बेहद ईमानदार हैं एवं जनसेवा के लिए राजनीति में आए हैं। उन्‍होंने सागर में ली गई इस तरह की शपथ को दूसरे नगरीय निकायों के मुखियाओं के लिए मिसाल बताया था।

ऐसे में जब दरे का कमीशन मांगने वाला वीडियो सामने आया तो सरकार और संगठन दोनों की किरकिरी हुई। सरकार ने तो जांच करवाकर दरे के खिलाफ कार्रवाई कर अपना दामन साफ कर लिया, लेकिन संगठन के स्‍तर पर सख्‍त कार्रवाई अभी तक अपेक्षित है। पार्टी की ओर से दरे को सिर्फ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

अब सवाल उठता है कि जब सरकार ने दरे के खिलाफ बाकायदा जांच करवाकर कोई फैसला किया है, जब उनके खिलाफ ईओडब्‍ल्‍यू में मामला गया है, तो ऐसे में संगठन कारण बताओ नोटिस का जवाब लेकर भी क्‍या कर लेगा? क्‍या संगठन को अपनी ही सरकार या सत्‍ता की ओर से कराई गई जांच पर कोई संदेह है? क्‍या संगठन मानता है कि दरे को झूठे मामले में फंसाया गया है?

और मान लीजिए दरे ने कारण बताओ नोटिस में यह लिखकर दे दिया कि पार्टी के ही लोगों ने उन्‍हें किसी साजिश के तहत इस मामले में फंसाया है, तो क्‍या होगा? क्‍या संगठन उनकी बात पर भरोसा कर उनसे वो नाम पूछेगा, जिन्‍होंने उनके खिलाफ साजिश की? और यदि दरे ने ऐसी कोई कहानी प्रस्‍तुत कर दी तो क्‍या फिर संगठन उन नेताओं के खिलाफ कोई जांच करवाएगा?

सागर की राजनीति को जानने वाले बताते हैं कि दरे की सागर के ही दो बड़े नेताओं, प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव और गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह से पटरी नहीं बैठ रही है। यदि महापौर ने अपने खिलाफ सामने आए मामले के पीछे इन दोनों नेताओं का हाथ बता दिया तो क्‍या संगठन की हिम्‍मत है कि वो इन दोनों नेताओं से कोई पूछताछ करे?

कुल मिलाकर मामला बहुत पेचीदा है। समझ में नहीं आता कि इस मामले में सत्‍ता और संगठन की कार्रवाइयों के सुर आपस में मिलते हुए क्‍यों नहीं दिखाई दे रहे? यदि संगठन को अपनी ही सरकार द्वारा की गई कार्रवाई पर भरोसा है, तो दरे को अब तक पार्टी से निलंबित कर दिया जाना चाहिए था। उसके लिए लाल, पीली, हरी झंडियों का इंतजार क्‍यों? और यदि सरकार की कार्रवाई पर भरोसा नहीं है तो खुलकर कहें कि पार्टी सरकार की राय से सहमत नहीं है? सब जानते हैं कि ऐसा होना वर्तमान हालात में संभव ही नहीं है। …तो फिर ये खेल क्‍यों खेला जा रहा है?

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