शहीदों को सलामी कब तक?

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अतुल तारे

जम्मू कश्मीर के उरी क्षेत्र में आतंकी हमला सिर्फ एक आतंकवादी हमला नहीं है, यह सीधे-सीधे पाकिस्तान का हमला है। हमले में 17 सैनिक फिर शहीद हो गए है। हाल ही के हमलों को गिनें तो पहले गुरुदासपुर फिर पठानकोट और अब उरी में सैनिकों का बलिदान देखकर देशवासी स्तब्ध हैं, दुखी हंै और वे सीधे-सीधे सवाल कर रहे हैं आखिर हम कब तक शहीदों को सिर्फ सलामी ही देते रहेंगे? कारण सिर्फ सलामी शहीदों के बलिदान पर पर्याप्त श्रद्धांजलि नहीं होगी अब यह आवश्यकता है कि पाकिस्तान से हमलों की पूरी कीमत-वसूली जाए। यह सही है कि केन्द्र सरकार के विगत दो वर्षों के मैराथन प्रयास से कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान आज अलग-थलग हो गया है। एक चीन को छोड़ दिया जाए तो आज पाकिस्तान के नापाक इरादों को कोई अपना समर्थन नहीं दे रहा है।

कूटनीति के मैदान पर यह बड़ी जीत है। पाकिस्तान आज स्वयं अस्थिर है और वह अपने अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रहा है। यह आज ही पाक के रक्षा मंत्री के बयान से भी साफ जाहिर हो रहा है जिसमें वह वजूद के खतरे की बात खुद कर रहे हैं। इधर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बलूचिस्तान का विषय उठाकर पाकिस्तान को सबक सिखाने के संकेत भी दे दिए हैं। यही वजह है कि घाटी में अस्थिरता फैलाने की भी पाकिस्तान कोशिश कर रहा है और हमले भी। यह खास महत्व का विषय नहीं है कि हमला जैश ने किया कि लश्कर ने। कारण यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आतंकी संगठनों का आका खुद इस्लामाबाद ही है। अत: अब यह समय है कि सामरिक मोर्च पर भी केन्द्र सरकार जमीनी स्तर पर अब कार्रवाई करते दिखाई दे। अब श्रद्धांजलि, निंदा या बख्शेंगे नहीं, जैसे पारंपरिक बयानों का समय चला गया है। देश अब सीधे-सीधे कार्रवाई चाहता है। यह कार्रवाई कब कहां और कैसे हो यह विशुद्ध रूप से केन्द्र सरकार का अपना निर्णय होगा, और वह यकीनन कदम उठाएगी यह देश को भरोसा भी है। लेकिन सरकार को यह भी समझना होगा कि देशवासी अब सिर्फ दुखी नहीं हंै, वे आक्रोश में भी हैं। अत: केन्द्र सरकार को देश की जनभावनाओं का भी ध्यान रखना होगा ताकि वे अपने आत्मबल को गिरता हुआ महसूस न करें।

रक्षा विशेषज्ञों की इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि बिना सीमा पार किए भी पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने के विकल्प हैं। देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिका एवं रूस की यात्रा रद्द कर दी है। रक्षा मंत्री स्वयं मनोहर पर्रिकर कश्मीर में है, और सेना प्रमुख उरी में है। उच्च स्तरीय बैठक भी नई दिल्ली में जारी है। अत: आने वाले दिनों में केन्द्र सरकार शीघ्र ही एक्शन मोड में नहीं अपितु प्रो एक्टिव मोड में भी दिखेगी। इसकी उम्मीद की जानी चाहिए लेकिन साथ ही पठानकोट से लेकर अभी तक लगातार हो रहे हमलों के खुफिया तौर पर भी कहां चूक हो रही है, इस पर विचारने की गहराई से जरूरत है ताकि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं फिर देखने को ना मिलें।

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लेखक दैनिक स्‍वदेश ग्‍वालियर के प्रधान संपादक हैं।

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