गिरीश उपाध्याय
आपने ‘’पंखों के कौवे हो जाना’’ ये मुहावरा तो जरूर सुना होगा। यह मुहावरा बात का बतंगड़ बनाने की हरकत से जुड़ा है। मध्यप्रदेश विधानसभा में बुधवार को बात का बतंगड़ ही नहीं, कंकड़, पत्थर सब कुछ बन गया। वहां पंखों के कौए ही नहीं हुए, बल्कि उससे भी बड़ा खेल देखने को मिला। देखते ही देखते, बिजली का ट्रांसफार्मर, संविधान की गलियों से होता हुआ बाबा साहब (आंबेडकर) में बदल गया।
सदन में यह मामला सत्तारूढ़ भाजपा के ही वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री कैलाश चावला के एक ध्यानाकर्षण से शुरू हुआ। उन्होंने प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र के बिजली उपभोक्तओं की बहुत ही जायज समस्या उठाते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में बिजली कंपनियों ने जो नीति तय की है उसके तहत यदि किसी ट्रांसफार्मर के दायरे में आने वाले बिजली उपभोक्ताओं पर बकाया कुल राशि की 50 प्रतिशत राशि जमा नहीं होती तो वहां खराब ट्रांसफार्मर नहीं बदला जाएगा। चावला का कहना था कि इस नियम से वे उपभोक्ता भी कष्ट पा रहे हैं जो ईमानदारी से अपने बिल भर रहे हैं। सरकार वसूली करे लेकिन जो लोग दोषी हैं, कार्रवाई उन्हीं पर हो, जो बिजली बिल की राशि का नियमित भुगतान कर रहे हैं, उन्हें क्यों सजा दी जा रही है। सरकार या तो उन्हें बिजली की सप्लाई सुनिश्चित करे या फिर उनके बिजली बिलों की वसूली स्थगित की जाए।
यह विषय इतना तार्किक और न्यायसंगत था कि विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष के भी अनेक सदस्य इसके समर्थन में खड़े हो गए। ताजे ताजे ऊर्जा मंत्री बने पारस जैन ने सदस्यों को संतुष्ट करने की कोशिश की लेकिन वे बात को संभाल नहीं पाए। इसी दौरान आसंदी पर मौजूद उपाध्यक्ष राजेंद्रसिंह ने कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पार्टी के मुख्य सचेतक रामनिवास रावत को सवाल पूछने का अवसर दिया।
रावत ने कहा कि यह विषय बहुत संवेदनशील है क्योंकि जो लोग ईमानदारी से लगातार बिल जमा करवा रहे हैं, उनके साथ भी अन्याय किया जा रहा है। बिजली कंपनियों का यह रवैया ‘’अमानवीय और असंवैधानिक है…’’
बस, रावत के इतना कहते ही ट्रांसफार्मर और बिजली उपभोक्ता तो गया चूल्हे में, संविधान पर बहस शुरू हो गई। मामले पर अब तक घिर चुकी सरकार को ‘संवैधानिक’ शब्द ने आरोपों के चक्रव्यूह से निकलने का सुनहरा अवसर दे दिया। सबसे पहले वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार खड़े हुए और उन्होंने रावत से मुखातिब होते हुए सवाल दागा- ‘’इसमें असंवैधानिक क्या है?’’ रावत ने उतनी ही ऊंची आवाज में जवाब दिया- ‘’यह असंवैधानिक है।‘’ दोनों के बीच ‘है’ और ‘नहीं’ का दावा कई बार दोहराया गया। इस बीच आसंदी ने टिप्पणी कर दी कि- ‘’रावतजी आपकी बात सही हो सकती है, पर इस मसले को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।‘’
आसंदी से यह टिप्पणी आने पर रावत ने थोड़ा संभलते हुए पूछा- ‘’क्या किसी उपभोक्ता को पैसे देकर बिजली प्राप्त करने का मौलिक अधिकार नहीं है?’’
लेकिन तब तक आसंदी का सपोर्ट मिल जाने से सत्ता पक्ष शेर हो गया था। शेजवार ने आरोप जड़ दिया- ‘’आप संविधान का अपमान कर रहे हैं।‘’ शेजवार के सुर में सुर मिलाते हुए पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव भी बहस में कूद पड़े और उन्होंने सवाल उठाया- ‘’हम लोगों ने संविधान की शपथ ली है, हम ऐसा कैसे कह सकते हैं?’’ इस बीच सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री लालसिंह आर्य भी पारस जैन के बचाव में आ गए। शेजवार ने इसी दौरान कांग्रेस पर एक और आरोप जड़ दिया कि आपकी नेता इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर संविधान की धज्जियां उड़ाई थीं और आप संविधान की बात कर रहे हैं। इस आरोप पर सदन में हंगामा हो गया।
हंगामे के दौरान ही संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा सदन में पहुंचे और उन्होंने कई कदम और आगे जाते हुए कांग्रेस पर नया आरोप जड़ दिया- ‘’आप लोगों ने संविधान पर उंगली उठाकर बाबा साहब आंबेडकर का अपमान किया है।‘’
इस बीच उपाध्यक्ष बार बार सदस्यों से कहते रहे कि ये क्या हो रहा है, आप लोग विषयांतर क्यों कर रहे हैं, बिजली पर बात हो रही थी, इसमें संविधान कहां से आ गया, लेकिन बात आगे बढ़ चुकी थी। आपस में कुछ इशारे हुए और सत्ता पक्ष ने कांग्रेस पर आंबेडकर का अपमान करने और उसके आंबेडकर विरोधी होने के नारे लगाने शुरू कर दिए। जवाब में कांग्रेस ने दलित अधिकारी रमेश थेटे के साथ सरकार द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार को लेकर नारेबाजी शुरू कर दी। शेजवार ने कहा- ‘’बाबा साहब का अपमान करना महंगा पड़ेगा, दलितों का अपमान भारी पड़ेगा…’’
बिजली के ग्रामीण उपभोक्ताओं की बहुत ही जायज समस्या और उन्हें राहत दिलाने की मांग से शुरू हुई यह बहस संविधान, बाबा साहब आंबेडकर, दलितों के अपमान और जाने कहां कहां तक जा पहुंची। एक घंटे इस पर हंगामा हुआ, सदन की कार्यवाही दस मिनिट के लिए स्थगित करनी पड़ी और कांग्रेस ने मंत्री के जवाब से असंतुष्ट होकर, सरकार को किसान विरोधी बताते हुए सदन से बहिर्गमन कर दिया।
अब यदि आप पूछें कि आखिर नतीजा क्या निकला? तो मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है। मैंने तो आपको राजनीति के उस मैजिक से रूबरू भर कराया है, जिसमें कैसे बिजली के बिल और ट्रासफार्मर का मुद्दा आंबेडकर के अपमान में तब्दील हो गया। मेरा यह उपक्रम सिर्फ इसलिए कि सनद रहे, भले ही आगे काम आए या न आए…