जिंदगी की मौत बांटते हमारे अस्पताल

राकेश अचल

सदी के सबसे महान संक्रमण काल से गुजर रहे हिन्दुस्तान में जहाँ अस्पतालों की शरण में असंख्य लोग भागकर पहुँच रहे हैं, वहीं हमारे देश के तमाम छोटे-बड़े अस्पतालों में होने वाले हादसों ने अस्पतालों के प्रबंधन पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। ऐसा लगने लगा है जैसे हमारे अस्पतालों में जिंदगी नहीं मौत बांटी जा रही है।

दो दिन पहले नासिक में ऑक्सीजन गैस रिसने से 25 मरीजों की अकाल मौत के हादसे से देश उबरा भी नहीं था कि आज मुंबई के विरार में एक अस्पताल में लगी आग में एक दर्जन से अधिक मरीज काल कवलित हो गए और हम सब अफ़सोस करके रह गए। महाराष्ट्र के पालघर जिले में विरार के विजय वल्लभ कोविड अस्पताल में आग लग गई,  जिसमें 13 मरीजों की मौत हो गई। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि एक वातानुकूलन (एसी) इकाई में विस्फोट होने के बाद यह आग लगी।

हादसे के वक्त अस्पताल में 90 मरीज मौजूद थे,  जिनमें से 18 मरीज आईसीयू में थे। मृतकों में पांच महिलाएं और आठ पुरुष हैं। आग के बाद धुएं से भर गए आईसीयू में अफरा-तफरी नजर आई जहां कुछ जगहों पर पंखे गिर गए,  बेड एवं अन्य फर्नीचर बिखरे हुए थे और मृतकों के परिजन अस्पताल के बाहर रोते-बिलखते दिखे। अधिकारी ने बताया कि चार मंजिला विजय वल्लभ अस्पताल के दूसरे तले पर स्थित आईसीयू में तड़के तीन बजे आग लगी। अग्नि शामक दल ने आग पर सुबह पांच बजकर बीस मिनट तक काबू पा लिया।

इस हादसे से दो दिन पहले ही महाराष्ट्र में नासिक के एक अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति बाधित होने के बाद कोविड-19 के 22 मरीजों की मौत हो गई थी। जिला आपदा नियंत्रण केंद्र के प्रमुख विवेकानंद कदम ने बताया कि विरार के अस्पताल में आग आईसीयू की वातानुकूलन इकाई में विस्फोट के बाद लगी। हादसे के शिकार लोगों के परिजन सूचना मिलते ही अस्पताल पहुंचे। उन्होंने घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। भारत के अस्पतालों में इन हादसों की शक्ल एक जैसी नहीं है। कुछ हादसे मानवीय गलतियों के कारण होते हैं तो कुछ प्रबंधकीय लापरवाही से।

देश की स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में स्थिति दिया तले अंधेरा जैसी है। राजधानी दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में जिंदगी बचाने के लिए गए दो दर्जन से अधिक मरीज ऑक्सीजन न मिलने से अपनी जान से हाथ धो बैठे। देश की बड़ी से बड़ी अदालतें इस मामले में सरकार के कान खींचती रहीं लेकिन कुछ नहीं हुआ,  क्योंकि कुछ हो ही नहीं सकता। कहीं ऑक्‍सीजन के बिना लोग मर रहे हैं तो कहीं ऑक्सीजन लीक होने से मर रहे हैं।

इसी महीने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक अस्पताल में आग लगने से 5 मरीजों की मौत हो चुकी है। कानपुर के एक कार्डियोलॉजी अस्पताल में भी इसी तरह के एक हादसे में 2 मरीज मर गए,  लेकिन किसी दोषी की शिनाख्त नहीं हो पाई। जनवरी में भंडारा के एक अस्पताल में 10 बच्चे इसी तरह मारे गए। सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। पिछले साल अहमदाबाद के एक अस्पताल में आग से कोविड के 8 मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

भारत के अस्पतालों में इस तरह के असंख्य हादसे गिनाये जा सकते हैं। देश का कोई भी प्रदेश इस तरह के कलंक से मुक्त नहीं है। कहीं दवा के अभाव में मरना पड़ा है तो कहीं बेड न मिलने के कारण। कहीं आग ले डूबती है तो कहीं छतें भरभराकर गिर पड़तीं हैं। मौत बांटते इन अस्पतालों की दशा सुधारने के लिए देश में कभी कोई सामूहिक चिंतन किया ही नहीं गया। चाहे सरकारी अस्पताल हों या निजी, सभी दूर दशा एक जैसी है। और कोरोनकाल में तो स्थितियां भयावह हो चुकी हैं। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मोर्चा संभाले हुए हैं किन्तु स्थितियां नहीं संभल रही हैं। केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक ने अघोषित रूप से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। नैतिकता घास चरने गयी हुई है।

सबसे भयावह स्थिति ये है कि आज देश के किसी भी अस्पताल में भर्ती होने के लिए आपको किसी न किसी सिफारिश की जरूरत है। जिसके पास सिफारिश नहीं उसका बिना इलाज के मरना तय है। विश्व गुरु बनने का सपना देखने वाले भारत में इतनी दयनीय दशा पहले कभी नहीं थी। जाहिर है कि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाओं को मुनाफे का कारोबार समझकर विकसित किया गया, सामाजिक दायित्व मानकर नहीं। हमारे देश में पहले से प्रति दस हजार की आबादी पर एक डॉक्टर था और इस कुप्रबंधन ने तो हालत और भी खराब कर दी है।

सरे बाजार नंगे खड़े देश में आज की सबसे बड़ी जरूरत सबका साथ और सबका विकास नहीं बल्कि सबको स्वास्थ्य की गारंटी है। स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाया जाना बहुत जरूरी है। देश में सभी का स्वास्थ्य बीमा आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गयी है। अकेले आयुष्मान योजना से कुछ बनने वाला नहीं है। देश के सबसे असुरक्षित अस्पतालों में जिंदगी बचाने के लिए जाना एक विवशता है। यदि सभी सरकारें इस विषय पर मिलकर काम नहीं करेंगी और कोरी राजनीति खेलती रहेंगी तो यकीन मानिये कि आने वाली पीढ़ी इस देश के महान और अवतारी नेतृत्व को कभी माफ़ नहीं करेगी। नेहरू को तो माफ़ करने का सवाल ही नहीं क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में सबसे बड़ी प्रतिमाएं बनवाने के बजाय सबसे बड़े अस्पताल बनाने की गलती की ही थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यही गलती की,  जिसकी सजा उन्हें मिलना ही चाहिए। (मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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