मानवता से दूर उद्योगों में बदल रहे अस्पताल

आकाश शुक्‍ला

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों द्वारा उचित मंज़ूरी के साथ बेहतर अस्पताल और कोविड देखभाल केंद्र प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए हाल ही में कहा है कि अस्पताल एक बड़ा उद्योग बन गया है,  रियल एस्टेट नीचे चला गया है। अस्पताल मानव संकट पर जीवित रहते हैं, हम उन नागरिकों की कीमत पर उनका बचाव नहीं कर सकते हैं जिनकी वे सेवा करने के लिए हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि “यह बेहतर है कि इन अस्पतालों को बंद कर दिया जाए और अतिरिक्त सुविधाएं राज्य द्वारा बनाई जाएं। राज्य अस्पतालों को बेहतर सुविधाएं और कोविड देखभाल केंद्र प्रदान करें। हम उन्हें इन छोटे आवासीय भवनों में नहीं रख सकते।” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ 26 नवंबर 2020 को गुजरात के राजकोट में हुई घटना के संबंध में अपने स्वत: संज्ञान से मामले की सुनवाई कर रही थी। उस घटना में कोविड अस्पताल में आग लगने से कई रोगियों की मृत्यु हो गई थी।

18 दिसंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा उपायों के रखरखाव और ऑडिट को अनिवार्य करने का आदेश दिया था लेकिन उस आदेश के अनुपालन में अस्पतालों के लिए समय सीमा बढ़ाने की अधिसूचना जारी करने के गुजरात सरकार के फैसले को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राज्‍य को फटकार लगाई। उसने कहा कि हम अस्पतालों को रियल एस्टेट उद्योग के रूप में देखते हैं या उन्हें मानवता के सेवाकेंद्र के रूप में? न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि “एक आम आदमी को यह धारणा नहीं बनानी चाहिए कि राज्य सरकार अवैध काम करने वाले लोगों को बचाना चाहती है।‘’

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्पतालों के वर्तमान स्वरूप और उनके उद्योगों का रूप लेने को लेकर की गई टिप्पणी वर्तमान स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर भी सवाल खड़े करती है। व्यावसायिक अस्पताल जनता की बीमारी पर निर्भर रह कर चलते हैं और चिकित्‍सा मुहैया कराने के लिए खुलते हैं। परंतु जब बीमारी के इलाज के लिए अस्‍पताल जाने वाला व्‍यक्ति वहां होने वाले खर्च के चलते आर्थिक रूप से ऐसा बीमार हो जाए कि जिंदगी भर उस आर्थिक बीमारी से मुक्ति न पा सके तब अस्पतालों के लिए कठोर नियम कानून और निश्चित पैमाने निर्धारित करना आवश्यक हो जाता है।

स्वास्थ्य तो जन कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का महत्वपूर्ण पहलू है। जब राज्य स्वास्थ जैसी आवश्यक सेवाओं को उद्योग के रूप में स्वीकार करने लगें तो यह सेवाएं मानवीय संवेदनाओं ओर सेवा से दूर होती जाएंगी, इनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ जनता से धन की उगाही रह जाएगा। कोरोना काल में यही हुआ है। बड़े बड़े अस्पतालों ने निरंकुश होकर कोरोना पीड़ितों से धन की निर्बाध उगाही की और सरकार शिकायतों के बाद भी मूक दर्शक बनी देखती रही, जांच के नाम पर लीपापोती करती रही।

जब तक सरकार स्‍वयं स्वास्थ्य सुविधाओं को उद्योग के रूप में मौन रूप से मान्यता देती रहेगी तब तक निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में कोई प्रयास ईमानदारी से नहीं होंगे और अस्पताल मानवता की सेवा वाले क्षेत्र से दूर होते जायेंगे। अस्पतालों की प्राथमिकताएं कम राशि में इलाज करने की जगह मरीजों से अधिक से अधिक धन उगाही वाली ही बनी रहेंगी। मानवता से जुड़े इस पेशे में सभी लोग एक जैसे नहीं है, कई डॉक्टर सेवा भावना से कम राशि में या निशुल्क बेहतर इलाज कर रहे हैं। उनके लिए मरीज ग्राहक या धन उगाही का माध्यम नहीं है, बल्कि बीमारी से पीड़ित ऐसा व्यक्ति है जिसकी पीड़ा वह दूर कर सकते हैं। ऐसे चिकित्सकों को समाज में उचित सम्मान देने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

मानवता को ताक पर रखकर उपचार के नाम पर व्यापार करने वाले अस्पतालों के लिए कठोर नियम कानून और पीड़ित मरीजों के लिए ट्रिब्यूनल का गठन होना चाहिए जो व्यवसायिक लाभ के लिए अनावश्यक उपचार करने पर जनता को वैधानिक संरक्षण प्रदान करे। संविधान के 46 वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21 क के जरिये जिस तरह शिक्षा का अधिकार जोड़ा गया है, उसी तरह स्वास्थ्य के अधिकार को भी संविधान में आवश्यक प्रावधान के रूप में जोड़े जाने की आवश्यकता है। उसके अनुसार कठोर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है ताकि हर व्यक्ति को बीमार होने पर निशुल्क व अनिवार्य उपचार मिल सके और वह उपचार के नाम पर लुटने से बच सके। उपचार के नाम पर लोगों की जमीन जायदाद न बिके।

इसके लिए इसके प्रत्येक जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने का बजट में अलग से प्रावधान किया जाना चाहिए, भले ही हमें यह लक्ष्‍य पूरा करने में 10-15 साल लग जाएं। मेडिकल कॉलेज से हर जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं तो बढ़ेंगी ही डॉक्टरों की संख्या भी देश में बढ़ेगी। उन मेडिकल कालेजों से निकलने वाले डॉक्टर के लिए रजिस्ट्रेशन के पूर्व उसी जिले में 5 साल तक शासकीय सेवाएं देना अनिवार्य कर देना चाहिए, जिससे कि हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने के 5 साल बाद हर साल लगभग 100 डॉक्टर शासकीय सेवाओं के लिए उपलब्ध हो जावेंगे। यह डॉक्टरों की कमी तो दूर करेगा ही साथ ही जनता को उपलब्ध होने वाली स्वास्थ्य सेवाओं में भी बढ़ोतरी करेगा। जब स्वास्थ सेवाएं बढ़ेंगी तो जनता को उपचार भी सस्ता और सुलभ मिलेगा। (मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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