-हिन्दी दिवस पर विशेष-
प्रो. उमेश कुमार सिंह
हम सब को स्मरण होगा ही कि ‘भारत’ इस देश का प्राचीन नाम है, जिससे हमारी सांस्कृतिक धरोहर प्रतिबिम्बित होती है। कहने को और नाम भी हैं- आर्यावर्त, अजनाभ वर्ष, इंडिया आदि-आदि। किन्तु संविधान में दो नाम ‘इंडिया’ और ‘भारत’ आ जाने से और अपनी राजभाषा के प्रति उदासीनता के चलते स्वतंत्रता के समय से विदेशों में और विदेशियों के साथ हमने अपना परिचय ‘इंडिया’ का दिया।
कारण अनेक हो सकते हैं। किन्तु जैसे-जैसे हम स्वतंत्र से समर्थ भारत की ओर बढ रहे हैं देश की तरुण स्वाभिमानी पीढ़ी अपने आप से प्रश्न करती है कि हमारे ही देश के दो नाम क्यों? और इससे भी कठोर प्रश्न आता है कि ‘इंडिया’ नाम ‘भारत’ से अधिक महत्वपूर्ण क्यों?
समझें, सांस्कृतिक और साहित्यिक जगत में इस देश की पहचान कभी भी ‘इंडिया’ की नहीं रही। हम प्रणाम भी करते हैं तो ‘वन्दे भारत मातरम्’, जयतु भारतं, ‘भारत वन्दे’, ‘जय भारत वन्दे’ आदि–आदि ही उच्चारित करते हैं। भारत को माता कहते हैं। इंडिया की जय या इंडिया माता की जय नहीं बोलते क्यों? क्योंकि हमने ‘माता भूमिः पुत्रो अहम पृथिव्याः’ कहा है। हमारा नाता माता और पुत्र का है। और इंडिया बोलने से यह भाव आता है क्या? तो सहज उत्तर ‘न’ ही आयेगा।
हम आज भी लाख कोशिश के बाद ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ क्यों नहीं कह और लिख पा रहे हैं? आप में से अनेक कह सकते है कि ‘इंडिया’ और ‘भारत’ कहने से क्या फर्क पड़ता है। और चट शेक्सपियर का उदाहरण दे देंगे। तो यह केवल फर्क की बात नहीं, अस्मिता की बात है, स्वाभिमान की बात है। फिर आप ने कभी इसके परिणाम समझने की कोशिश की होगी तो ध्यान में आया ही होगा की घर से राजभाषा गायब हो रही है। जिन संस्कारों से संस्कृति की आधार शिला खड़ी है, वह चरमरा रही है।
इस भूमिका को रखने के पीछे आप को कुछ पीछे तक ले जाना था। बात ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के सुझाव की है। जिसमें ‘मातृभाषा’ को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने की बात कही गई है। यह मातृभाषा तो लागू हो भी जाएगी, भावनाओं की पूर्ति भी हो जाएगी। किन्तु क्या सपना पूरा होगा? इसे जरा समझें।
संविधान बनाते समय आमुख (प्रिएम्बल) में हमने एक बार ‘इंडिया’ लिख दिया और वह ‘भारत’ नाम के न चाहने वाले या यूं कहिये ‘इंडिया’ कहने में गौरव महसूस करने वालों को हथियार मिला हुआ है। कब सरकार सामर्थ्यवान होगी, कब यह बदलाव आएगा, यह तो भविष्य ही बता सकता है। किन्तु हम जिस शिक्षा नीति को स्वतंत्र भारत की वास्तविक रूप से पहली नीति कहते हैं और उसे हम दिलो–दिमाग से स्वीकारते हैं, उसने हमें समझ से काम लेने का एक अवसर दिया है। यदि हमने इसको हलके में लेकर गवां दिया तो आने वाली पीढ़ी को हम समझा नहीं पाएंगे कि तब तो आप के पास अवसर था आप ने क्यों नहीं किया?
जिस मूल गलती की और हमारा ध्यान नहीं जा रहा है, वह कितना दूरगामी अपरिणामकारी होगी आज ध्यान में नहीं आ रहा है। “अत: हमारा आग्रह है कि ‘चूकि नीति अभी संसद में जा रही है, तो वहां पर एक प्रस्ताव यह आना चाहिए कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020′. में जो संस्थानों/परिषदों/निकायों के नाम (संज्ञाएं) अंग्रेज़ी में आ रहें है और उनका संक्षिप्त रूप भी अंग्रेजी में आ रहा है, उन्हें राजभाषा में रखते हुए अंग्रेजी सहित सभी राष्ट्रीय भाषाओं में यथावत राजभाषा में ही रखा जाए, तथा उनका संक्षिप्त रूप भी राजभाषा में ही रहे।”
इस शिक्षा नीति को वास्तविक रूप से तभी हम “मूल से जुड़े वैश्विक मानव बनाने, क्या से कैसे सोचें की ओर जाने और मातृभाषा आधारित आध्यामिक शिक्षा नीति कह सकते हैं।” नीचे नीति के मूल संस्थाओं के नाम संक्षिप्त के साथ देखने और समझने के लिए दिए जा रहें है, सूची को देंखे –
-
- ‘शिक्षा विभाग’ (Education Ministry)
- ‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ (National Educational Technology
- ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy)
- ‘राष्ट्रीय शोध संसथान’ की जगह ‘national research foundation’
- ‘भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान’ (Indian Institute of Translation and Interpretation- IITI)
- ‘फारसी, पाली और प्राकृत के लिये ‘राष्ट्रीय संस्थान (या संस्थनों)’ [National Institute (or Institutes) for Pali, Persian and Prakrit]
- आँगनवाड़ी/बाल वाटिका/प्री-स्कूल (Pre-School)
- ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा’ (Early Childhood Care and Education- ECCE)
- ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये ‘राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ [National Curricular Framework for School Education, (NCFSE)
- ‘फंडामेंटल लिट्रेसी और न्यूमरेसी’ पर एक नेशनल मिशन, ‘मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमन रिर्सोस डेवलेपमेंट’ तैयार किया जाएगा। जिसमें स्टूडेंट्स की हेल्थ (शारीरिक और मानसिक)
- ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre)
- ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI)
- ‘नेशनल क्यूरीकुलर एंड पैडेगॉजिकल फ्रेमवर्क फॉर अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन’ (NCPFECCE)
- ‘अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन क्यूरीकुलम’ (ECCEC)
- नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर टीचर्स
- नेशनल काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (NCTE)
- ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPST)
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [[National Curriculum Framework for Teacher Education (NCFTE),
- राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NTTF)
- ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जिट ऑप्शंस’
- ‘यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम्स’ के लिए एन.टी.ए यानी ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ एक हाई ‘क्वालिटी कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट’ आयोजित करेगी, ‘कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट’ के साथ ही ‘स्पेशलाइज्ड कॉमन सब्जेक्ट एग्जाम्स’
- अपनी ‘एलिजबिलिटी और च्वॉइस’
- परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre)
- नेशनल कमेटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन’ (NCIVE) का निर्माण करेगी
- ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’
- ‘एक्सटर्नल कमर्शियल बोर्रोविंग और विदेशी निवेश (एफडीआई)’
- ‘स्पेशली ऐबल्ड स्टूडेंट्स’
- 360 डिग्री होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड’
- ‘राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी’
- ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit)
- भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम दिया गया है।
- भारत उच्च शिक्षा आयोग (Higher Education Commission of India -HECI)
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद् (National Higher Education Regulatory Council- NHERC)
- सामान्य शिक्षा परिषद् का गठन। (General Education Council- GEC)
- वित पोषण- उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद् का गठन।(Higher Education Grants Council-HEGC)
- प्रत्यायन-राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद् (National Accreditation Council- NAC)
- देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Research Universities- MERU) की स्थापना की जाएगी।
एक तर्क और आएगा की यह तो विज्ञान की मानक शब्दावली है तो क्या हमारी अपनी राजभाषा की शब्दावली ‘संज्ञा’ के लिए भी मानक और उपयोगी नहीं है?हम राजभाषा पखवाड़ा मना कर उसकी वकालत तो करते हैं , किन्तु व्यवहार में? यहां हिंदी की बात नहीं (अन्यथा भाषाओं की राजनीति होने लगे), संवैधानिक मुद्दा राजभाषा के अस्तित्व की बात कर रहे हैं।
ध्यान रखना होगा की पुरानी नीतिओं में जो शब्द आ गए थे उन्हें हम आज भी नहीं बदल पाए और न ही राजभाषा की मर्यादा के अनुरूप कोई नया शब्द प्रचलन में ला पाए, यथा हम UGC/NCERT आदि। UGC की जगह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग प्रयोग में पहले पायदान पर नहीं ला पाये हैं। लेकिन जहाँ चाह है वहां अधूरे शव्दों के साथ ही पर सफल हुए हैं’ यथा- ‘राजीव गाँधी शिक्षा मिशन’।