शुभरात्रि शायरी

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here