रचना संसारहेडलाइन शुभरात्रि कविता By मध्यमत - 0 65 FacebookTwitterPinterestWhatsApp ज़िंदगी तनहा सफ़र की रात है अपने–अपने हौसले की बात है किस अकीदे की दुहाई दीजिए हर अकीदा आज बेऔकात है क्या पता पहुँचेंगे कब मंजिल तलक घटते-बढ़ते फ़ासले का साथ है – जां निसार अख्तर