लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के
संभलते क्यों हैं ?
इतना डरते हैं तो फिर
घर से निकलते क्यों हैं….?
मैं न जुगनू हूँ
दिया हूँ,न कोई तारा हूँ ?
रोशनी वाले मेरे
नाम से जलते क्यों हैं….?
नींद से मेरा ताल्लुक़
ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के
मेरी छत पे टहलते क्यों हैं….?
मोड़ होता है जवानी का
संभलने के लिए,
और सब लोग यहीं
आ के फिसलते क्यों हैं….?