‘रामायण’ से डीडी के ‘अच्छे दिन’ और उदास मनोरंजन उद्योग

अजय बोकिल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 5 अप्रैल की रात 9 नौ बजे लाइटें बंद कर हर घर में 9 मिनट के लिए दिया बत्ती करने के आह्वान पर भक्तों और त्यक्तों में अलग-अलग राय रही। भक्तों ने इसे कोरोना लॉक डाउन के दौरान देश की एकजुटता दिखाने और गरीबों का मनोबल बनाए रखने का यह ‘ज्योति उत्सव’ माना तो त्यक्तों ने इसे लॉक डाउन जैसे कठिन समय में भी मोदीजी का ‘मनोरंजनी टोटका’ बताया। कुछेक ने तो दादा कोंडके की सत्तर के दशक की फिल्म ‘अंधेरी रात में, दिया तेरे हाथ में’ की याद भी दिलाई। यानी जाकी रही भावना जैसी।

इन सबके बीच खबर चमकी कि दूरदर्शन पर पुराने सीरियल रामायण का पुनर्प्रसारण शुरू होते ही डीडी भारती की टीआरपी में भारी उछाल आया है। कोरोना आतंक के बीच खबर उत्साहजनक इसलिए भी थी क्योंकि टीवी चैनलों की दुनिया में ‘दूरदर्शन’ (डीडी) की हालत शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह जैसी हो गई थी। जब ‘रामायण’ के पुनर्प्रसारण की खबर आई तो कुछ जिज्ञासु दर्शकों ने सोशल मीडिया पर सवाल किया कि इसका चैनल नंबर क्या है?

जिस डीडी का महत्व 26 जनवरी की परेड और 15 अगस्त को राष्ट्र के नाम संबोधन तक सीमित रह गया था, उसी डीडी की व्यूअरशिप रामायण-महाभारत के चलते एकदम जम्प मार गई तो जाहिर है कि यह कमाल इन सीरियलों के कंटेंट और लॉक डाउन के वक्त का ज्यादा है। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बीएआरसी)– नेल्सन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक एक हफ्ते के अंदर ही रामायण सबसे ज्यादा देखा जाने वाला धारावाहिक बन गया है। हालांकि ये आंकड़े अभी अस्थायी हैं। फिर भी जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक इसके पहले एपीसोड के प्रसारण के बाद इसकी दर्शक संख्या बढ़कर 5.1 करोड़ हो गई। इनमें भी दर्शकों की ज्यादा संख्या मेट्रो सिटीज और शहरों में रही।

ये आंकड़े हिंदी भाषी क्षेत्रों के ही हैं। इनके अलावा यू ट्यूब पर भी यह सीरियल देखने वालों की संख्या काफी बढ़ी है। दूरदर्शन पर रामायण के साथ महाभारत सीरियल भी शुरू हो गया है। लेकिन उसकी टीआरपी का खुलासा अभी होना है। वैसे दूरदर्शन ने अपने कई पुराने लोकप्रिय सीरियल जैसे ‘ब्योमकेश बख्शी’, ‘सर्कस’ आदि का प्रसारण भी शुरू कर दिया है। बीएआरसी का यह डाटा ‘क्राइसिस कंजम्पशन’ (विपदा के दौरान टीवी और स्मार्टफ़ोन का उपयोग) नामक सर्वेक्षण से सामने आया है। इतना ही नहीं, टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम खबरों की रेटिंग भी बढ़ गई है। ये तमाम आंकड़े मोटे तौर पर समाज के उस वर्ग के हैं, जो टीवी के सहारे दिन काट रहा है।

अब सवाल यह कि दूरदर्शन पर ‘रामायण’, ‘महाभारत’ की टीआरपी बढ़ने की वजह क्या है? क्या लोगों में अचानक इन भारतीय महाकाव्यों में रुचि बढ़ गई है या फिर 21 दिन के लॉक डाउन में ‘पुराना’ ही ‘नया’ लगने लगा है? करीब तीन दशक पुराने इन सीरियलों को दिखाने की मांग किन लोगों ने की थी और अब ‍कौन लोग इन्हें सबसे ज्यादा एन्‍जॉय कर रहे है? क्या युवा पीढ़ी (40 साल के नीचे) भी इन सीरियलों को उसी आस्था भाव से देख रही है, जैसे कि उनकी पिछली पीढ़ी देखा करती थी? और सबसे बड़ा सवाल यह कि रामायण की टीआरपी बढ़ने के जमीनी कारण क्या हैं?

दरअसल देश की युवा पीढ़ी रामायण, महाभारत कितनी रुचि के साथ देख रही है, इसके कोई अलग से आंकड़े अथवा अध्ययन अभी उपलब्ध नहीं है। लेकिन लगता है कि लॉक डाउन के दौर में ये ही वो धारावाहिक हैं, जो उन्होंने अपनी याददाश्त में शायद नहीं देखे होंगे। हालांकि इनका रीमेक कुछ मनोरंजन चैनलों पर हुआ है, लेकिन उनमें वो गहराई और समर्पण भाव नहीं था, जो पुराने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के निर्माण में दिखाई पड़ता है। जहां तक इनकी प्रसारण क्वालिटी का प्रश्न है तो यह आज के डिजीटल जमाने में पचास के दशक की फिल्म देखने जैसा ही है,

परंतु ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ की कथाएं, जीवन मूल्य और शिक्षाएं ही उनका असली आकर्षण हैं। जहां तक अधेड़ और सीनियर सिटीजन्स की बात है तो दूरदर्शन ने मानो उनके पुराने दिन लौटा दिए हैं। ये पीढ़ी दोनों सीरियलों को लेकर कुछ ज्यादा ही नॉस्टेल्जिक हो गई है। यानी जो पुराना था, वही अच्छा था टाइप। अगर कथावस्तु की बात करें तो ‘रामायण’ की कथा में ज्यादा पेंच नहीं हैं। वहां सत्य और असत्य की डायरेक्ट फाइट है, जबकि ‘महाभारत’ की कथा ज्यादा लौकिक लगती है। बावजूद इसके तब की दुनिया आज के मुकाबले ज्यादा सरल और नीतिवान लगती है। जबकि आज की पीढ़ी जिस ढंग के सीरियल और रियलिटी शो देखने की आदी है, उनमें समकालीन समाज निकृष्टता की हद तक गिरा हुआ, दुरभिसंधियों से भरा, अनैतिक या फिर अस्वाभाविक-सी लगने वाली भावुकता से भरा प्रदर्शित किया जाता है।

इन सीरियलों के निर्माताओं का कहना है कि वो वही दिखाते हैं, जो लोग देखना चाहते हैं। चूंकि आज मनोरंजन भी बहुत बड़ा कारोबार है, इसलिए टीआरपी के लिए हर तरह के हथकंडे आजमाए जाते हैं और झूठ का मायाजाल फैलाया जाता है। ‘बिग बॉस’ जैसे सीरियल, सिंगिंग टैलेंट हंट जैसे रियलिटी-शो इसकी जमानत हैं। टोटके आजमाने और झूठ फैलाने का कारोबार खूब चलता है। मामूली बात पर डायवोर्स लेने वाली और निजी आजादी के लिए किसी भी सीमा तक जाने वाली नई पीढ़ी को सीता का इस तरह अपमान सहते रहना, द्रोपदी के पांच पति होना, सत्य की रक्षा के लिए हर बलिदान देने के लिए उद्यत रहना जैसी बातें कितनी अपील करती होंगी, कहना मुश्किल है। क्योंकि जीवन संघर्ष आज पहले की तुलना में अधिक जटिल और स्वार्थ से भरा है।

जब जीवन मूल्य भी तेजी से बदल रहे हैं तब इन सीरियलों को लोग रुचि के साथ देख रहे हैं तो इसके पीछे बड़ा कारण यह भी है कि बाकी के निजी मनोरंजन चैनलों के पास कोई नया मसाला नहीं है। कोरोना के चलते बॉलीवुड में मार्च के तीसरे हफ्ते में ही लगभग सभी फिल्मों और टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद हो गई थी। ऐसे में चालू सीरियलों के नए एपीसोड किसी के पास नहीं हैं। लिहाजा वो सभी यथासंभव अपने पुराने पिटारे के हिट सीरियल और कार्यक्रम ही दिखा रहे हैं। चूंकि नई पीढ़ी इन्हें ज्यादा भूली नहीं है, इसलिए डीडी के रामायण-महाभारत भी नए से लग रहे हैं। वैसे पुराने सीरियलों में भी सबसे ज्यादा मांग कॉमेडी शोज की है। क्योंकि लॉक डाउन के तनाव को ये कम करने में मददगार हो रहे हैं।

जिस मनोरंजन उद्दयोग पर आज कोरोना की दहशत कम करने की नैतिक जिम्मेदारी आ गई है, खुद उसकी हालत क्या है, इस पर कम ही लोगों का ध्यान गया होगा। हालांकि बॉलीवुड लॉक डाउन का पूरा समर्थन कर रहा है, लेकिन वहां भी लाखों लोगों के भविष्य पर तलवार लटकी हुई है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्यों‍कि आज हमारा मनोरंजन और समाचार उद्योग 1.82 खरब रुपए का हो चुका है। इसमें हर साल 9 फीसदी की वृद्धि हो रही है। ‘द इवेंट्स एंड एंटरटेनमेंट मैनेजमेंट एसोसिएशन’ ने केन्द्र सरकार से गुहार की है कि वह इस उद्दयोग को मरने से बचाए। क्योंकि इससे देश भर में परोक्ष रूप से 6 करोड़ और प्रत्यक्ष रूप से 1 करोड़ लोगों का पेट पल रहा है। अगर लॉक डाउन लंबा खिंचा तो ये लोगों का मनोरंजन करना तो दूर, अपनी जिंदगी भी नहीं बचा पाएंगे।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेला टीवी चैनलों का कारोबार ही सालाना 788 अरब रुपए और फिल्मों का 191 अरब रुपए का है। लेकिन सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला उद्योग‍ डिजीटल का है। यह 31 फीसदी सालाना दर से बढ़ रहा है। पिछले साल यह 221 अरब का था, जो अगले दो साल में 414 अरब का हो जाने की उम्मीद थी।

लेकिन कोरोना के असली संकट ने टीवी सीरियलों की ड्रामेबाजी को भी बुरा झटका दे दिया है। कहते हैं कि कि घर में कंगाली हो तो पुराने गहने बेच कर काम चलाना पड़ता है। देश के मनोरंजन उद्योग की हालत फिलहाल ऐसी ही है। कोरोना की गंभीरता को वो भी समझ रहे हैं। लेकिन स्थिति ‘इधर कुआं, उधर खाई’ वाली है। इस बियाबान में भी ‘रामायण, महाभारत की पुण्याई दूरदर्शन में ‘बहार’ लाई है तो अच्छा ही है। मगर कब तक?

(ये लेखक के अपने विचार हैं। इससे वेबसाइट का सहमत होना आवश्‍यक नहीं है। यह सामग्री अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के तहत विभिन्‍न विचारों को स्‍थान देने के लिए लेखक की फेसबुक पोस्‍ट से साभार ली गई है।)

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