पूरा देश पिछले दो दिनों से बजट को समझने और उसकी व्याख्या करने में व्यस्त है। ज्यादातर लोगों के लिए बजट अंधों के हाथी की तरह होता है। जिसके हाथ जो सिरा लग जाए वो उसी में मगन होकर उसकी व्याख्या और विश्लेषण करने लगता है। कुछ लोग अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, वे अपने-अपने क्षेत्र से जुड़ी बजट की बातों को आधिकारिकता के साथ सामने रखते हैं। पर कई लोग सामान्य ज्ञान के आधार पर बजट को समझते और व्याख्यायित करते हैं।
यह मामला ठीक मेडिकल प्रोफेशन जैसा है जहां कुछ तो विशेषज्ञ डॉक्टर होते हैं और कुछ जनरल प्रेक्टिशनर। जनरल प्रेक्टिशनर सामान्य बुखार या सरदी-जुकाम, सिरदर्द, पेटदर्द आदि का फौरी इलाज तो कर देगा लेकिन वह किसी जटिल बीमारी का उतनी सिद्धता से निदान नहीं कर पाएगा। इसी तरह अधकचरे ज्ञान वाले लोगों से बजट समझना भी खतरनाक हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी समझ, चीजों को समझाने में कम मदद करती है, कन्फ्यूज करने में ज्यादा। इसलिए बेहतर होगा बजट के बारे में आप अपनी राय उन्हीं लोगों की मदद से बनाएं जो बजट की बारीकियों को और आर्थिक जटिलताओं के ताने बाने और उनमें छुपी आशंकाओं एवं संभावनाओं को ठीक से समझते हों।
जैसे बजट आने के तत्काल बाद सबसे ज्यादा लोगों ने मुझसे पूछा कि ये इनकम टैक्स का नया फार्मूला क्या है और इसमें पुराने वाले में रहने में फायदा है या नए वाले से जुड़ने में। मैंने कहा, थोड़ा इंतजार करिये, अभी तो खुद चार्टर्ड अकाउंटेंट और आर्थिक विशेषज्ञ भी इसकी गलियों, पगडंडियों में घूमकर सही दिशा का पता लगा रहे हैं। हां, एक बात मैं जरूर कह सकता हूं कि वित्त मंत्री ने यह कहकर सरासर झूठ बोला है कि सरकार आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया को सरल बना रही है। वर्ष 2020-21 के बजट में आयकर का यह जो नया फार्मूला पटका गया है उसे समझना और अपने फायदे के हिसाब से नए और पुराने आयकर स्लैब में से उचित विकल्प चुनना अच्छे अच्छे फन्ने खां के लिए भी आसान नहीं होगा। इसके लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद लेनी ही होगी। यानी एक तरह से सरकार ने सीए लोगों को और काम दे दिया है।
आपको याद होगा, ऐसा ही काम सीए लोगों को उस समय भी मिला था जब नया नया जीएसटी लागू हुआ था। उस समय मची अफरा तफरी को व्यापारी आज तक नहीं भूले हैं। मेरे सीए मित्रों ने बताया था कि खुद उन्हें भी कई बातों को समझने में कितने महीने लग गए थे। और जब चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ही उस कर ढांचे को नहीं समझ पाए थे तो सामान्य व्यापारी बेचारा क्या समझता? जाहिर है उसे सीए की सेवाएं लेनी ही पड़ीं और ज्यादातर लोग आज भी जीसएटी रिटर्न के प्रपंच को नहीं समझ पाए हैं।
मुझे ताज्जुब होता है जब सरकारें अपने बजट भाषणों में और उनके अलावा अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की बातें करती हैं। यह टर्म इन दिनों दुनिया भर में चर्चित है। विभिन्न देशों की सरकारों और वहां की शासन व्यवस्था के आकलन का एक आधार यह ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का फंडा भी है। पिछले साल अक्टूबर में विश्व बैंक ने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानी कारोबार में सुगमता संबंधी सूची-2020 जारी की थी।
विश्व बैंक की इस सूची में भारत ने कारोबार में सुगमता के मामले में 14 पायदान की छलांग लगाते हुए 190 देशों की सूची में 63 वां स्थान पाया था। इससे पहले की सूची में भारत 77 वें नंबर पर था। भारत की इस ‘छलांग’ के पीछे प्रमुख कारण सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को लागू करने और निवेश आकर्षित करने के लिए अन्य सुधारात्मक कदम उठाने को बताया गया था। इसके अलावा इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड को सफलतापूर्वक लागू करना भी भारत की रैंकिंग में सुधार का अहम कारण माना गया था।
लेकिन उस रिपोर्ट में भारत में कारोबार करने में आने वाली कई कठिनाइयों का समुचित हल न निकल पाने का जिक्र भी था। रिपोर्ट कहती थी कि अनुबंधों को लागू करने और संपत्तियों को रजिस्टर करने के मामले में भारत आज भी ऑरगनाइजेशन फॉर इकानॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के देशों की सूची में बहुत निचली पायदान पर है। यहां अनुबंधों को लागू करने में आज भी औसतन 58 दिनों का समय लगता है और प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन के लिए लगने वाली कुल कीमत की औसतन 7.8 फीसदी राशि भी अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है। इसी तरह उस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में किसी भी कंपनी को स्थानीय प्रथम स्तर के न्यायालय में अपना कारोबारी विवाद निपटाने के लिए औसतन 1445 दिनों यानी करीब चार साल का समय लग जाता है।
तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी सरकार नागरिकों का जीवन आसान बनाने की दिशा में हर स्तर पर काम कर रही है तो हैरानी हुई। मंत्री ने खुद बताया कि पिछल दो सालों में हमने जीएसटी में 60 लाख नए करदाताओं को जोड़ा है और इस अवधि में 40 करोड़ रिटर्न दाखिल हुए, 800 करोड़ इनवाइसेज अपलोड हुए और 105 करोड़ ई-वे बिल दिए गए। 1 अप्रैल 2020 से सरकार नई सरलीकृत विवरणी प्रणाली शुरू करने जा रही है।
अब विवरणियों और अपलोड होने वाले दस्तावेजों की संख्या से ही आप अनुमान लगा सकते हैं कि इस सब काम में कितना समय, श्रम और धन खर्च होता होगा। यदि वित्त मंत्री के आंकड़ों को ही आधार बनाएं और एक इनवाइस अपलोड होने में न्यूनतम पांच मिनिट का समय भी काउंट किया जाए तो 4000 करोड़ मिनिट यानी 76103 साल के बराबर का समय इसमें खर्च हुआ। हो सकता है इस तरह की गणना आपको फालतू लगे लेकिन जब हम ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ या कारोबारी सुगमता की बात करते हैं तो उसमें कारोबार करने वाले या टैक्स जमा करने वालों के एक एक मिनिट की अहमियत को समझना भी जरूरी है।
अब आप इस बार आयकर के दो अलग अलग विकल्प लेकर आ गए हैं। इसे समझने में और उस पर अपने हिसाब से अमल करने में लोगों को कितना सिर और समय खपाना होगा किसी को पता नहीं। इसमें कितनी शताब्दियों या कितने हजार सालों के बराबर का समय खर्च होगा कोई नहीं जानता। आपने आयकर का नया स्लैब लाने के साथ ही लोगों को रिटर्न भरना सुगम बनाने के लिए फिर एक नई और सरलीकृत कर व्यवस्था लाने की बात कही है। पता नहीं आपका यह ‘सरलीकरण’ कहां जाकर खत्म होगा।