गोबरतन्त्र बनाम लोकतंत्र

राकेश अचल

आप यकीन कीजिये की भारतीय लोकतंत्र हर तरीके से महान है। महान इसलिए है क्योंकि इसमें सभी का ध्यान रखा जाता है। ताजा खबर छत्तीसगढ़ से आई है। सुना है कि छग सरकार अब पशुपालकों की इमदाद के लिए उनके पशुओं का गोबर तय मूल्य पर खरीदेगी। मुझे गोबर खरीदने का ये आइडिया इस सदी का सबसे बेहतरीन आइडिया लग रहा है। ऐसे मौलिक विचार एक जमाने में लालू प्रसाद जी को आया करते थे।

कृषि प्रधान देश में गोबर एक महत्वपूर्ण उत्पाद है, लेकिन बदनसीबी गोबर की कि उसकी अब तक कदर नहीं की गयी। कदर करता भी कौन? सियासत में काम करने वाले तो कभी गोबर को छुए ही नहीं हैं। सियासत में कुर्सी के लिए गोबर गणेश खरीदे-बेचे जा सकते हैं, लेकिन गोबर के बारे में किसी की कोई सद्भावना नहीं, काश कि देश का कोई प्रधानमंत्री गोबर की आत्मकथा को समझा होता!

गोबर के प्रति हमारा प्रेम बाल्यकाल से है। गर्मी की छुट्टियों में जब हम अपने गांव जाते तो अपनी दादी को गोबर पाथते देखते। वे बहुत वृद्ध थीं, उनकी कमर झुककर दोहरी हो गयी थी। लेकिन उन्होंने गोबर पाथना नहीं छोड़ा था। मेरा अपनी दादी के प्रति बहुत लगाव था सो मैं उनकी मदद के लिए अपनी गौशाला से गोबर इकठ्ठा कर पथनारे (जहाँ गोबर के कंडे बनाये जाते हैं) तक डलिया में भर कर रख आता था।

गोबर को हाथ से छूने का अपना अलग अनुभव है। पढ़े-लिखे लोग गोबर को छू ही नहीं सकते, वे इसे गोबर नहीं ‘काऊडंग’ कहते हैं। शहर वालों को गोबर से बदबू आती है लेकिन हम गांव वालों को गोबर से कोई घृणा नहीं होती। हम गोबर से भरी डलिया सर पर उठाकर बड़े गर्व से चलते हैं।

गोबर के अनेक प्रकार और प्रकृति होती है। गाय का गोबर अक्सर लीपने के काम लिया जाता है क्योंकि लोकमान्यता है कि गाय हमारी माता है और उसमें सकल देवताओं का वास होता है। भैंस का गोबर उपले बनाने के काम आता है अन्य पालतू पशुओं के उत्‍सर्जन को गोबर नहीं कहते।

जैसे हाथी-घोड़े, गधे का गोबर ‘लीद’ कहलाता है, तो बकरे-बकरियों और भेड़ों का गोबर ‘लेंडी’ कहा जाता है। ऐसा क्यों है इसके बारे में शोध की जरूरत है। लेकिन सबसे ज्यादा उपयोगिता गाय-भैंस के गोबर की होती है। जब तक लोग बॉयोगैस के बारे में नहीं जानते थे तब तक गोबर लीपने के अलावा कंडे बनाने के काम ही आता था।

गांव में हर शुभ कार्य से पहले गाय के गोबर के गणेश बनाये जाते थे, मुमकिन है उस समय भैंसों का गोबर अपनी किस्मत पर ईर्ष्या करता हो। गोबर के गणेश का पूजा जाना आज भी जारी है, गांवों में भी और सियासत में भी। गोबर गणेश के बारे में फिर कभी। अभी बात गोबर की है। बचपन में जब दादी अपने थापे हुए कंडों का ढेर लगातीं तो मुझे भी उत्सुकता होती। मेरे जिद करने पर उन्होंने मुझे भी गोबर से कंडे बनाना सिखा दिया, इस लिहाज से वे मेरी कंडा विधा की पहली गुरु भी बन गयीं।

नन्हे हाथों से बने कंडे भी नन्हे ही होते हैं, सो उन्हें आते-जाते लोग रुककर देखते और फिर मेरी सरहना करते। दादी के कंडों के ढेर के बगल में मेरे थापे गए कंडों का ढेर लगना शुरू हो जाता, जो बाद में एक छोटे से बिठा का रूप ले लेता।(बिठा कंडों के उस ढेर को कहते हैं जो वर्षा में सुरक्षित रखने के लिए गोबर और मिटटी के लेप से ही तैयार किया जाता है)

कंडों के बारे में आपको बता दूं कि देश में बुंदेलखंड के कंडों को छोड़ कहीं भी कलात्मक कंडे नहीं बनते। पंजाब, हरियाणा वाले गोल कंडे बनाते हैं और सड़क या दीवार पर इन्हें चस्पा कर देते हैं। लेकिन बुंदेलखंड यानि उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के अधिकांश इलाकों में कंडे त्रिकोणीय यानि सिंघाड़े के आकार के बनाये जाते हैं। गांवों में जब रसोई गैस का प्रवेश नहीं हुआ था तब वर्षा ऋतु में कंडे ही प्रमुख ईंधन हुआ करते थे, क्योंकि लकड़ियां तो गीली होती थीं लेकिन कंडा सूखने के बाद अत्‍यंत ज्वलनशील हो जाता था।

बहरहाल अब छग में गोबर सरकार निर्धारित मूल्य पर खरीदा जाएगा तो एक नए युग का सूत्रपात होगा। गोबर के दाम तय करने के लिए अभी कमेटी बनाई गयी है, जैसे ही दाम तय होंगे वैसे ही गोबर की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू हो जाएगी। सरकार बाद में इस गोबर से क्या बनाएगी, क्या नहीं ये सब बाद में तय होगा।

फिलहाल तो इरादा पशुपालकों को राहत देना है और साथ ही पशुओं को आवारगी से बचाना भी। गोबर बिकेगा तो जाहिर है की पशुपालक अपने पशुओं को घर में बांधकर रखेंगे। पशुओं को वैसे भी बाँध कर रखा जाना चाहिए, क्योंकि समाज में वैसे ही पशुता बहुत बढ़ गयी है।

गोबर के महत्व को बढ़ता देख मुझे लगता है की एक दिन वो भी आएगा जब देश का प्रधानमंत्री हमारे जैसा गोबर गणेश भी बन जाएगा। जिसे गोबर के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान होगा। जो गोबर को जान गया समझिये भारत की आत्मा को जान गया। गोबर है तो किसान है, किसान है तो खेत हैं, खेत हैं तो खलिहान हैं, खलिहान हैं तो अनाज है, अनाज है तो मंडियां हैं, मंडियां हैं तो समर्थन मूल्य है, और ये समर्थन मूल्य है तभी सरकार है।

यूं तो हमारी ऑनलाइन इंडस्ट्री ने भी गोबर के कंडे बेचने शुरू कर दिए हैं, आप अमेजन, फ्लिपकार्ट से ये कंडे खरीद सकते हैं, यानि गोबर केवल गोबर नहीं है।

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टीम मध्‍यमत

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