गुलाम नबी प्रकरण- कांग्रेस इतिहास में दफन न हो जाए

संजीव आचार्य

मान लिया कि गुलाम नबी आजाद ने पचास साल कांग्रेस की मलाई खाई और अब जब रिटायर किये जाने लगे तो गांधी परिवार पर ही हमला बोल दिया। यह भी मान लेते हैं कि नरेंद्र मोदी से उनके मधुर संबंध हैं और जम्मू कश्मीर में केंद्र के एजेंट बन सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व, नीतियां, कार्यशैली पर आजाद ने जो सवाल खड़े किये हैं, उनसे कौन कांग्रेसी इनकार कर सकता है?

जो बातें पार्टी के नेता-कार्यकर्ता निजी तौर पर कहते आ रहे हैं, गुलाम नबी ने उन मुद्दों को पांच पेज के अपने इस्तीफे में विस्तार से सार्वजनिक कर दिया है। इसमें क्या गलत है कि राहुल गांधी ने जिस तरह से अध्यादेश को प्रेस क्लब में अजय माकन के कहने पर फाड़कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेइज्जती की थी, वो बचकानी हरकत नहीं थी?

क्या यह सही नहीं है कि 2014 और 2019 का चुनाव कांग्रेस बुरी तरह हारी क्योंकि राहुल गांधी किस तरह के नेता हैं ये पूरे देश ने समझ लिया। क्‍या पार्टी काडर भी अपने इस थोप दिये गए नौसिखिया युवराज से त्रस्त नहीं है? यह भी सही है कि उनके पीए, सुरक्षाकर्मी तक लोगों को पद, टिकट दिलवा देते हैं जबकि वरिष्ठ नेताओं की न राय ली जाती है न ही उनको बताया जाता है।

सभी जानते हैं कि राहुल गांधी ने जिस जल्दबाजी में पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया वो नादानी थी। पलायन था। फिर, किसी भी पद पर नहीं होने के बावजूद पार्टी के अहम फैसले राहुल गांधी ही ले रहे हैं। किस हैसियत से?

अब जरा हटकर बात करें। पचास साल के अनुभवी गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा टिकट काटकर इमरान प्रतापगढ़ी को मुस्लिम नेता के तौर पर देना किस आधार पर सही है? आनन्द शर्मा को हटाकर ब्राह्मण प्रतिनिधि के तौर पर राजीव शुक्ला को राज्यसभा देना किस तर्क से सही है?

कपिल सिब्बल जैसे मंजे हुए वकील के मुकाबले रणदीप सुरजेवाला को तरजीह दी गई। सुरजेवाला और उसके मेंटोर अजय माकन ने मिलकर मनीष तिवारी को किनारे लगवा दिया। राहुल गांधी के कान भर दिये। वरना लोकसभा में अधीर रंजन चौधरी की जगह मनीष ज्यादा मुफ़ीद नहीं होते?

यह सब फैसले राहुल गांधी और उनको ले डूब रहे के.सी. वेणुगोपाल-सुरजेवाला- जयराम रमेश जैसों की देन हैं। इनमें से कोई भी जमीनी नेता नहीं है। हकीकत से कोसों दूर दरबारी नेता हैं। कांग्रेस के ये चाटुकार गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे और लगाए गए आरोपों के मद्देनजर अब राहुल गांधी को चढ़ाएंगे कि अब तो आप ही बनो फिर से अध्यक्ष। पार्टी संगठित होकर आजाद के मुद्दों को खारिज करेगी! यही भाजपा चाहती है कि राहुल अध्यक्ष बने रहे।

कांग्रेस को राहुल गांधी से मुक्ति पाए बगैर गति नहीं मिलेगी। वो हर मोर्चे पर असफल साबित हो चुके हैं। चूंकि ये एक अटल सत्य है कि गांधी परिवार के नेता के अलावा चाटुकार और खुद मेहनत न करके भाग्य भरोसे राजनीति करने वाले कांग्रेसी किसी अन्य नेता को नहीं मानेंगे, तो फिर प्रियंका गांधी ही एकमात्र विकल्प है। वरना 2024 में भाजपा 350 सीटें पार करने के अपने लक्ष्य की दिशा में निर्बाध दौड़ ही रही है। कांग्रेस उसके बाद इतिहास में दफन न हो जाये।
(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार और कांग्रेस मामलों के जानकार हैं, यह टिप्‍पणी सोशल मीडिया से साभार)
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(मध्यमत)
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