अजय बोकिल
गुड़गांव के रेयान स्कूल की घटना ने देश को इसलिए हिला दिया था कि वहां एक सीनियर छात्र ने अपने ही जूनियर को मानसिक कुंठा के चलते बेरहमी से मार डाला था। यहां हत्यारा कोई बाहर का नहीं था, भीतर का ही था। जिसने मारा वह 17-18 साल का था और जिसे मारा वह भी 9-10 साल का था। दोनों ही मोटे तौर पर 21 वीं सदी में जन्मे थे। अब लखनऊ में ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां एक स्कूल में पहली कक्षा के छात्र को चाकुओं से गोद डाला और गंभीर रूप से घायल कर दिया। उस छात्र ने स्कूल की ही एक छात्रा पर हमले का आरोप लगाया है। एक और मामले में हरियाणा के रोहतक में एक बड़ी बहन ने अपने छोटे सगे भाई की इसलिए हत्या कर दी कि उसने बहन को अपने प्रेमी के साथ बात करते सुन लिया था।
गुड़गांव और रोहतक के मामलों में कम उम्र होने के बाद भी हत्या के आरोपी बेहद शातिर और ठंडे दिमाग के हैं। रेयान स्कूल मामले में तो आरोपी तक पहुंचने के लिए सीबीआई को खासी मशक्कत करनी पड़ी, तो रोहतक वाले प्रकरण में बहन ने हत्या कर, उसका आरोप परिवार से दूर रहने वाले अपने पिता पर मढ़ने में भी संकोच नहीं किया। हाल के दिनों में घटी ये तीनो घटनाएं इसलिए ज्यादा विचलित करती हैं कि हम किस तरह का भावी समाज आकार लेते देख रहे हैं। ऐसा समाज जिसमें बालपन भी मासूम सपनों की बजाए पूरी तरह एकांगी और क्रूर सोच में डूबा हुआ है। उसके लिए रिश्ते-नाते, सामाजिक मर्यादा अथवा नैतिकता का कोई अर्थ नहीं है।
रोहतक का मामला तो इसलिए भी चकरा देने वाला है कि जिस 19 साल की युवती चंचल ने भाई को कुर्सी से बांधकर मार डाला, उसने हत्या का सबक यूट्यूब और इंटरनेट पर वीडियो देखकर सीखा था। हत्या के बाद वह घर से भाग गई और दूसरे शहर से मां को फोन किया कि भाई का उसके पिता ने ही कत्ल कर दिया है। चूंकि इस परिवार में पति-पत्नी में अंतर्कलह थी, इसलिए मां को बेटी की बात पर भरोसा हो गया। लेकिन पुलिस जांच में जो सचाई सामने आई उससे मां तो क्या पूरा समाज ही हिल गया।
ताजा मामला लखनऊ के ब्राइट लैंड स्कूल का है। वहां एक छात्र गंभीर हालत में पाया गया। स्कूल प्रशासन ने मामले पर पर्दा डालने की नीयत से उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करा दिया। बच्चे ने अपने बयान में स्कूल की ही एक छात्रा पर हमले का आरोप लगाया है। बच्चा अस्पताल में जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहा है। रेयान स्कूल में भी स्कूल के टॉयलेट में जिस मासूम प्रद्युम्न का शव मिला था, उसके हत्यारे का बड़ी मुश्किल से खुलासा हुआ था।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि तीनों मामले में शामिल बच्चे सन 2000 या उसके आसपास जन्मे हैं। इन्हें 21 वीं सदी की पीढ़ी माना जा सकता है। पश्चिम में समाजशास्त्रियों ने इसे ‘जेनरेशन जेड’ का नाम दिया है। ये मिलेनियल जेनरेशन की अगली पीढ़ी है। मिलेनियल जेनरेशन 1982 से 2000 के बीच जन्मी पीढ़ी को कहा जाता है। लेकिन दोनों पीढि़यों की मानसिकता, पालन पोषण और संवर्द्धन में काफी फर्क है। हालांकि मिलेनियल जेनरेशन (जिसे जेनरेशन वाय भी कहा जाता है) भी अपनी पूर्व की पीढ़ी की तुलना में ज्यादा आत्मकेद्रिंत थी, फिर भी नातों-रिश्तों और सामाजिकता के दायरों से दूर नहीं हुई थी। टीम वर्क में उसका भरोसा बना हुआ था। जीवन का संघर्ष उसके लिए पूर्ववर्ती नस्ल की तुलना में कम था, लेकिन सोशल कमिटमेंट खत्म नहीं हुआ था। शायद इसीलिए संवेदनाओं का स्तर ऊंचा था और सामाजिकता में उसका भरोसा कायम था। अपराध तब भी होते थे, लेकिन वह आर्थिक कारणों अथवा व्यक्तिगत रंजिश या बदले की भावना से ज्यादा थे।
‘जेनरेशन जेड’ का मानसशास्त्र बहुत अलग है। यह वो पीढ़ी है, जिसे जीवन संघर्ष और भी कम करना पड़ा है। यह वो नस्ल है, जो मोबाइल और इंटरनेट के साथ बड़ी हुई है और उसी में डूबी है और उसी में जीने वाली पीढ़ी है। यह परस्पर निर्भरता के सामाजिक आग्रह को खारिज कर एकला चलो और अपने लिए जीयो के सिद्धांजत में भरोसा करने वाली है। मनोवैज्ञानिक इसे डिजिटल जेनरेशन अथवा पोस्ट मिलेनियल जेनरेशन भी कहते हैं। यह पीढ़ी तुलनात्मक रूप से ज्यादा बुद्धिमान लेकिन न्यूनतम धैर्य और समझौते वाली है। वह या तो ब्रह्मांड के बारे में सोचती है या फिर केवल अपने बारे में। दोनों के बीच लंबा गैप है, जिसमें वह खुद है और कोई नहीं।
ऊपर बताई गई तीनों घटनाओं का संबंधी इसी 21 वीं सदी की पीढ़ी के मनोविज्ञान से है। मानवता में हिलते विश्वास से है। अपनों के द्वारा अपनों की हत्याएं यह भयावह सवाल उछाल रही हैं कि समाज में अब किसी पर भी भरोसा करना मुश्किल है। एक वह भी दौर था, जब स्कूलों में बड़े बच्चे अपने से छोटे बच्चों को छोटे-भाई बहन की तरह मानकर उनका ध्यान रखते थे। यह भावना संस्कारों से आती थी। ये संस्कार परिवार और स्कूल से मिलते थे। कहने को आज संस्कारों की कक्षाएं लगती हैं, लेकिन नतीजा रिश्तों के खून के रूप में सामने आता है। रोहतक की घटना तो इतनी चौंकाने वाली है कि वह भाई-बहन के खून के रिश्ते का भी कत्ल करती है।
सवाल यह है कि अगर विद्यार्थी-अध्यापक, अभिभावक और बच्चे, भाई और बहन तथा दोस्त जैसे पवित्र रिश्तों की भी हत्या हो रही है, तो भरोसा किस पर करें? ये कौन सा समाज आकार ले रहा है, जहां सिर्फ राक्षसी प्रवृत्तियों के लिए जगह है? नेट ने ज्ञान की सीमाओं को खोलने के साथ साथ वह सब भी नंगा कर दिया है, जिसे मर्यादा के दायरों में समाज ने बांध रखा था। और जो मनुष्यता को बचाए रखने के लिए जरूरी भी था। लेकिन यह तो विचित्र और डरावनी स्थिति है। आज रेप और हत्याएं करने वाले भी ज्यादातर अपने ही हैं। यह स्वार्थों से भी आगे की ऐसी वीभत्स दुनिया की ओर इशारा है, जिसे जीवित नर्क कहना भी फीका होगा। कहीं यह भावी समाज की सेल्फी तो नहीं है?
(सुबह सवेरे से साभार)