आईएएस अफसर गंगवार को लेकर बुद्धिजीवियों में गैंगवार

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भोपाल, मई 2016/ मध्‍यप्रदेश के आईएएस अफसर और बड़वानी के पूर्व कलेक्‍टर अजय गंगवार को लेकर सोशल मीडिया और बुद्धिजीवियों में गैंगवार की स्थिति बन गई है। फेसबुक पर मोदी सरकार की परोक्ष रूप से आलोचना करने और नेहरू गांधी परिवार की नीतियों की तारीफ करने पर सरकार ने गुरुवार शाम को ही गंगवार को कलेक्‍टर पद से हटा दिया था। उन्‍हें मैदानी पोस्टिंग से अलग करते हुए मंत्रालय में अटैच कर दिया गया है।

गंगवार को हटाए जाने के बाद आईएएस और आईपीएस अफसरों के अलावा सोशल मीडिया पर भी तीखी बहस चल पड़ी है। एक वर्ग ने इसे सही फैसला बताया है तो दूसरा वर्ग इसे अभिव्‍यक्ति की आजादी का गला घोंटने वाला कदम बता रहा है। एक बहस इस बात पर भी चल रही है कि क्‍या आईएएस और आईपीएस अफसरों को इस तरह सरकारों के नीतिगत मामलों और राजनीतिक चरित्र पर सार्वजनिक रूप से टिप्‍पणी करनी चाहिए?

उल्‍लेखनीय है कि गंगवार का फेसबुक पोस्‍ट ऐसे समय सामने आया जब नरेंद्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल के दो साल का जश्‍न मना रही है। इन दो सालों के दौरान मोदी सरकार को पिछले दिनों अभिव्‍यक्ति की आजादी और असहिष्‍णुता जैसे मुद्दों पर भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। गंगवार की घटना ने मोदी और भाजपा विरोधियों को हमले का एक और हथियार दे दिया है। और कोई मौका होता तो यह मामला इतना तूल नहीं पकड़ता लेकिन मोदी सरकार के दो साल के जश्‍न के मौके पर मध्‍यप्रदेश में भाजपा की ही सरकार के अधीन काम करने वाले एक आईएएस अफसर द्वारा केंद्र की नीतियों पर सवाल उठाने से भाजपा और मप्र सरकार दोनों की किरकिरी हुई है। राज्‍य की प्रशासनिक मशीनरी के मुखिया, मुख्‍य सचिव एंटनी डिसा और पूर्व मुख्‍य सचिव निर्मला बुच जैसे अधिकारी गंगवार की हरकत को सर्विस कंडक्‍ट रूल्‍स के खिलाफ बता रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि अभिव्‍यक्ति की आजादी के नाम पर अफसर सरकार की नीतियों की आलोचना नहीं कर सकते।

लेकिन दूसरी ओर सोशल मीडिया पर बड़ी संख्‍या में यह सवाल उठाया जा रहा है कि जब कलेक्‍टर जैसे व्‍यक्ति को निजी स्‍तर पर अपनी बात कहने की आजादी नहीं है तो इसे देश में अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का हनन न कहा जाए तो और क्‍या कहें। इन लोगों ने सर्विस कंडक्‍ट रूल्‍स को फिर से परिभाषित करने और सोशल मीडिया जैसे माध्‍यम आ जाने के बाद उनमें जरूरी संशोधन करने की मांग भी उठाई है। लोग कमेंट कर रहे हैं कि ये रूल्‍स तो तब बने थे जब सोशल मीडिया नहीं था लेकिन अब नए परिप्रेक्ष्‍य में स्थि‍ति बदली जानी चाहिए।

बड़वानी कलेक्टर अजय गंगवार ने अपनी फेसबुक वॉल पर नेहरू और गांधी परिवार और उनकी नीतियों की तारीफ करते हुए सवाल उठाया था कि गोशाला और मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी खोलना क्‍या नेहरू की गलती थी? गंगवार की यह पोस्‍ट सार्वजनिक होते ही हड़कंप मच गया था।

एक वरिष्‍ठ आईएएस अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर मध्‍यमत डॉट कॉम से कहा कि इस पोस्‍ट में बता दीजिए कि मोदी सरकार की आलोचना कहां है? और क्‍या नेहरू की तारीफ करना कोई अपराध है? क्‍या हम इस देश के इतिहास से नेहरू का नाम मिटा सकते हैं? क्‍या इस देश में नेहरू के योगदान को शून्‍य किया जा सकता है? यह किसी अफसर के निजी विचार का ही नहीं देश में बोलने और कहने की आजादी का मामला है। यह देश के इतिहास को बनाने और बिगाड़ने का मामला है। यदि इस तरह से मुंह बंद किए जाते रहे तो क्‍या ऐसा नहीं लगता कि लोकतंत्र में रहते हुए हम तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं?

दूसरी ओर गंगवार पर कार्रवाई के हिमायती लोगों का कहना है कि अफसर को अपने काम से काम रखना चाहिए। उसका काम सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना है। यदि किसी अफसर की राजनीति या राजनीतिक टिप्‍पणियों में इतनी ही रुचि है तो बेहतर है वह नौकरी से इस्‍तीफा देकर पूरी तरह राजनीति ही करे। सरकारी पद और कुर्सी पर रहकर राजनीतिक करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। यदि अभिव्‍यक्ति की आजादी पर इस तरह की हरकतों को छूट दी जाती रही तो फिर कोई भी सरकारी कर्मचारी सरकार की किसी भी नीति, कार्यक्रम या कदम को लेकर कुछ भी कहने लगेगा और अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी।

बहरहाल अपने तबादले पर गंगवार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में उनका यह मामला ठंडा नहीं पड़ने वाला है।

यह लिखा था कलेक्‍टर ने फेसबुक पर

‘’जरा गलतियां बता दीजिए जो नेहरू को नहीं करनी चाहिए थी तो अच्‍छा होता। यदि उन्‍होंने आपको 1947 में हिंदू तालिबानी राष्‍ट्र बनने से रोका तो यह उनकी गलती थी। वे आईआईटी, इसरो,बार्क, आईआईएसबी, आईआईए, बीएचईएल, स्‍टील प्‍लांट, डीएएमएस, थर्मल पॉवर लेकर आए यह उनकी गलती थी। आसाराम और रामदेव जैसे इंटलेक्‍चुअल की जगह साराभाई और होमी जहांगीर को सम्‍मान व काम करने का मौका दिया, यह उनकी गलती थी। उन्‍होंने देश में गोशाला और मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी खोली यह भी उनकी घोर गलती थी। उन्‍होंने आपको अंधविश्‍वासी की जगह एक साइंटिफिक रास्‍ता दिखाया यह भी गलती थी। इन सब गलतियों के लिए गांधी फैमिली को देश से माफी तो बनती है।‘’

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