गिरीश उपाध्याय
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि अज्ञेय की एक कविता है-
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ–(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना–
विष कहाँ पाया?
भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और अन्य सैन्यकर्मियों की तमिलनाडु के कुन्नूर में हुई हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत के बाद एक ओर देश जहां गहरे सदमे और दर्द में है वहीं सोशल मीडिया पर हो रही कुछ घटनाएं क्षोभ और गुस्सा पैदा कर रही हैं।
कुन्नूर की दुर्घटना में देश ने अपने सर्वोच्च सैन्य अधिकारी के साथ साथ कई वीर और यशस्वी अधिकरियों व जवानों को खोया है। निश्चित रूप से यह देश के लिए बहुत बडा नुकसान है जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। इस घटना से देश दुखी है, लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस हादसे को लेकर खुशी प्रकट कर रहे हैं या जश्न मना रहे हैं।
जैसी कि सोशल मीडिया की फितरत है, उसके चलते इन लोगों की पहचान करना तो मुश्किल है लेकिन उनके इरादों को समझना कतई मुश्किल नहीं है। ये या तो विदेशों में बैठे वो भारत विरोधी लोग हैं जो भारत की तरक्की और उसके मजबूत इरादों से डरे हुए हैं या फिर देश में ही मौजूद ऐसे तत्व हैं जिनका काम देश की एकता और अखंडता के साथ साथ हमारे सामाजिक ताने बाने को हमेशा तोडने की कोशिश करते रहना ही है।
दुर्भाग्य की बात ये भी है कि इस तरह के जितने भी आपत्तिजनक कमेंट्स लिखे गए हैं उन्हें लिखने वालों के नाम भी ज्यादातर एक ही समुदाय के हैं। पहले उन कमेंट्स को देख लें जो सोशल मीडिया पर चले हैं। जैसे किसी ने लिखा कि यह नागालैंड में 13 लोगों की सेना द्वारा की गई हत्या का अल्लाह ने बदला लिया है। तो कुछ लोगों ने इसे कश्मीरियत की जीत के रूप में देखा। एक कमेंट में कहा गया- पुलवामा द्रोही मनोहर पर्रिकर, सेना प्रमुख बिपिन रावत के बाद अब डोभाल की बारी है।
हैरानी तो यह है कि इस तरह के कमेंट लिखने वालों में छद्म नाम वाले भारत विरोधी तत्व ही नहीं थे, कुछ पत्रकार भी इस घिनौने काम में शामिल हो गए। ट्विटर पर खुद को नैशनल हेराल्ड की न्यूज एडिटर बतानी वाली एशलीन मैथ्यू ने कमेंट किया- ‘डिवाइन इंटरवेंशन’ (दैवीय हस्तक्षेप) हालांकि बाद में सोशल मीडिया पर अपनी खिंचाई होने पर उन्होंने वो ट्वीट वापस लेते हुए यह सफाई दी कि- ‘’मेरे एक ट्वीट को लेकर अभियान छेड दिया गया है। उसका वर्तमान त्रासदी से कोई लेना देना नहीं है। फिर भी यदि मेरे ट्वीट से किसी की भावनाएं आहत हुई हों तो मुझे खेद है।‘’
एशलीन ने तो खेद जता दिया लेकिन इस तरह के ज्यादातर कमेंट का अड्डा बने हुए एनडीटीवी ने इस पर कुछ नहीं कहा। जबकि कुन्नूर त्रासदी की खबर पर ऐसे घिनौने कमेंट या ठहाका लगाने वाले सबसे ज्यादा इमोजी एनडीटीवी के सोशल मीडिया हैंडल पर ही थे। माना कि किसी भी संस्थान के लिए सोशल मीडिया पर होने वाली ऐसी हरकतों को रोकना आसान नहीं होता लेकिन एनडीटीवी यह तो कर ही सकता था कि एक ट्वीट करके या स्टेटमेंट देकर कहता कि वो इस तरह की प्रतिक्रिया देने वालों की निंदा करता है और खुद को इससे अलग करता है। ताज्जुब है कि बारीक से बारीक बात पर निगाह रखने वाले रवीश कुमार जैसे एंकर ने भी अपने प्राइम टाइम में इस पर चुप्पी साध ली।
ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया पर ऐसी घटनाएं पहले नहीं हुई हैं। ऐसा पहले भी हुआ है और किसी भी पक्ष ने ऐसी हरकत करने में कोई कसर नहीं छोडी है। ये वो लोग होते हैं जिनका किसी धर्म, पंथ या विचार से लेना देना नहीं होता। बस साजिश करना और वैमनस्य फैलाना ही उनका काम होता है। सवाल यही है कि हम कब समझेंगे कि इससे उन्हीं तत्वों को बल मिलता है जो देश को कमजोर करना चाहते हैं, उसकी साजिश में लगे रहते हैं। चाहे किसी भी समुदाय के हों, हमें ऐसे तत्वों को अलग थलग करना ही होगा। और सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे लोगों को न तो जहर जुटाने का मौका मिले और न ही उसे देश और समाज पर उगलने का। (मध्यमत)
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