राकेश अचल
अपने जमाने का शाही शहर ग्वालियर चालीस साल से एक सपना देख रहा था, जैसे-तैसे इस सपने को साकार करने का समय आया तो इस सपने में जंग लग गई। अब यह जंग पता नहीं कब और कैसे दूर होगी यह ग्वालियर के सबसे पुराने रिश्तेदार सिंधिया परिवार के सदस्यों के अलावा कोई और नहीं जानता।
ग्वालियर में सिंधिया रियासत के समय अगस्त 1946 में तत्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने अपने बेटे माधव राव सिंधिया के जन्मदिन के ठीक एक साल बाद गजराजा मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किया था। पिछले 75 साल में ग्वालियर की आबादी बढ़ी, लेकिन उस अनुपात में चिकित्सा सुविधाएं नहीं बढ़ीं। मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने 1980 में ग्वालियर में एक हजार बिस्तर के अस्पताल की बात शुरू की थी, लेकिन अस्पताल को बनने में पूरे 42 साल लग गए।
अब पिछले दो महीने से तैयार हजार बिस्तर के अस्पताल को उद्घाटन के लिए अभी कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जन्मशताब्दी अवसर पर हजार बिस्तर अस्पताल का उद्घाटन करना चाहते थे लेकिन ये हो नहीं सका।
हजार बिस्तर का अस्पताल पहले रीवा के हिस्से में चला गया, फिर जैसे-तैसे बात आगे बढ़ी तो कमलनाथ इस परियोजना का हिस्सा छिंदवाड़ा ले उड़े। पिछले तीन साल में रो-धोकर अस्पताल की इमारत तो बन गई, लेकिन हजार बिस्तर के अलावा यहां बहुत कुछ नहीं है। प्रशासन ने जोड़तोड़ कर हजार बिस्तर के इस अस्पताल में दवा स्टोर तो संचालित करा दिया, पर दवाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं। यहां भरती मरीजों के लिए पैथालोजी की सुविधा पूरी तरह से तैयार नहीं है।
अस्पताल की साफ सफाई के लिए स्टाफ का कोई इंतजाम नहीं है। उद्घाटन से पहले ही यहां गंदगी पसर चुकी है। अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ की कमी है, जिससे मरीजों की देखभाल ठीक से नहीं हो पा रही है। तमाम कोशिशों के बाद भी जेएएच व हजार बिस्तर अस्पताल के परिसर को एक नहीं किया जा सका। नये और पुराने अस्पताल के बीच में आज भी एक व्यस्त सड़क है। हजार बिस्तर अस्पताल परिसर में मार्च्युरी भी शिफ्ट नहीं की गई है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस बारे में कुछ दिन पहले ही समीक्षा बैठक में पता चला तो वे भड़क गये। इसके अलावा वे कुछ और कर भी नहीं सकते। अब हजार बिस्तर अस्पताल का उद्घाटन 15 फरवरी के बाद होगा। असल में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिधिंया ने हाल ही में ग्वालियर प्रवास के दौरान कलेक्ट्रेट में बैठक के दौरान हजार बिस्तर अस्पताल की खामियों को लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए साफ कर दिया था कि जब तक हजार बिस्तर अस्पताल पूरी तरह से मरीजों के लिए तैयार नहीं होता, तब तक उसका उद्घाटन नहीं होगा।
हजार बिस्तर और जेएएच के बीच से गुजरने वाली सड़क परेशानी का कारण बनी हुई है। अस्पताल के बीच से निकली सड़क के कारण दोनों के परिसर एक नहीं हो पा रहे हैं। जिससे मरीजों को जेएएच से हजार बिस्तर अस्पताल तक पहुंचने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। माधव डिस्पेंसरी की इमरजेंसी में पहुंचने वाले मरीज को भर्ती होने के लिए 800 मीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यदि कोई मरीज सीधे हजार बिस्तर अस्पताल पहुंचता है तो उसे कैजुअल्टी का पर्चा बनवाने के लिए माधव डिस्पेंसरी पहुंचना होता है।
हजार बिस्तर अस्पताल का 8 मंजिला भवन भूल भुलैया की तरह है। जिसमें तीन ब्लाक ए, बी और सी बने हुए हैं। किस विभाग का डिपार्टमेंट कहां पर मिलेगा इसकी जानकारी देने के लिए पूछताछ केन्द्र की आवश्यकता है। लेकिन अस्पताल में न तो पूछताछ केंन्द्र बनाया गया और न ही ठीक तरह से संकेतक लगाए गए जिससे मरीज या अटेंडेंट उसके सहारे अपने गंतव्य तक पहुंच सकें।
गौरतलब ये है कि ग्वालियर में सरकार को अपने अस्पताल में एक हजार बिस्तर की व्यवस्था करने में चालीस साल लग गए, जबकि इन चालीस सालों में निजी क्षेत्र में ढाई हजार से ज्यादा बिस्तर जनता के लिए तैयार किए जा चुके हैं। निजी क्षेत्र के अस्पताल लूट के अड्डे हैं, लेकिन इन्हें तभी रोका जा सकता है जब सरकारी अस्पताल में सब ठीकठाक हो। ग्वालियर में हजार बिस्तर का अस्पताल सिर्फ कुछ नेताओं का सपना ही नहीं बल्कि उत्तरी मप्र के लाखों लोगों का भी सपना है।(मध्यमत)
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