गांव का क्‍या दोष, चोर तो आपके घर में ही बैठे हैं

खबर आई है कि नोटबंदी के बाद सरकार ने देश भर में कई बैंकों की शाखाओं में स्टिंग ऑपरेशन करवाया। इंटेलीजेंस ब्‍यूरो ने अलग अलग बैंकों की करीब 625 शाखाओं में इसे अंजाम दिया और लगभग 425 शाखाओं में बैंककर्मियों, व्‍यापारियों और हवाला कारोबारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए का कालाधन सफेद करने की कोशिशें कैमरे में कैद हुई हैं।

नोटबंदी के तत्‍काल बाद से ही ये खबरें आ रही हैं कि कालेधन को खत्‍म करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम का बैंक कर्मचारियों और सिस्‍टम के अफसरों ने जमकर फायदा उठाया है। कालाधन हमारे सिस्‍टम से दूर हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन सरकार की इस योजना से कई अफसरों की गरीबी दूर हो गई है। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के इस न्‍यारे फैसले से भाई लोगों ने खुद के वारे न्‍यारे कर लिए।

अभी यह ठीक ठीक पता लगना बाकी है कि बैंकों के कर्मचारियों और अफसरों ने मौके का फायदा उठाकर आखिर कितने रुपयों को काला-सफेद किया। और मुझे तो संदेह है कि इस राशि का ठीक ठीक पता लग भी पाएगा या नहीं। सरकार ने नोटबंदी के बाद अब तक बैंकों में जमा हुए करीब 12 लाख करोड़ रुपए मूल्‍य के 500 और 1000 के नोटों के बारे में कहा कि जो पैसा सिस्‍टम के बाहर था वह सिस्‍टम के भीतर आ गया है। लेकिन इसका क्‍या करें कि कालेधन का जो खेल सिस्‍टम के बाहर चल रहा था वह सिस्‍टम के भीतर भी खूब चला।

खुद सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के बैंकों के अलावा रिजर्व बैंक के अफसरों व कर्मचारियों द्वारा काले सफेद का धंधा चालू कर दिए जाने ने इस बात को साबित कर दिया है कि सड़ांध सिस्‍टम से बाहर कम और सिस्‍टम के भीतर ज्‍यादा है। ये घटनाएं सरकार के लिए आईने की तरह हैं। कालेधन की नाली कहां से निकलती है और कैसे वह विशाल नाले में तब्‍दील हो जाती है यह उसका उदाहरण है।

मैं ऐसा नहीं कहता कि समाज में कालाधन नहीं पनपता या समाज में कालाधन बनाने वाले लोग नहीं है लेकिन इसका उद्गम स्‍थल तो सरकारी तंत्र ही है। हमने इसी कॉलम में लिखा था कि कालेधन का मूल स्रोत टैक्‍स चोरी नहीं बल्कि करप्‍शन और क्राइम है। टैक्‍स चोरी तो इस पहाड़ में राई के बराबर है। जब तक करप्‍श्‍न और क्राइम पर प्रभावी रोक नहीं लगती, तब तक आप एक बार क्‍या हजार बार नोटबंदी कर दीजिए। भाई लोग हर बार अपने रास्‍ते निकाल लेंगे।

प्रधानमंत्री की मंशा में कोई खोट नहीं है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जो काले चेहरे सरकार के सिस्‍टम में बैठे हैं उनसे वे कैसे निपटेंगे। छाती ठोककर आगे भी रिश्‍वत ली और दी जाएगी, दलाल आगे भी खम ठोक कर सरकारी गलियारों में घूमेंगे। आप सिस्‍टम को कितना ही कैशलेस बना दें लेकिन समाज के जो अपने सिस्‍टम हैं वे तो अपने हिसाब से ही चलेंगे। उसी तरह सरकारी सिस्‍टम की दाढ़ में लगा खून और उसका स्‍वाद भी बरकरार रहेगा।

बैंकों में हुए नोट घोटालों ने बता दिया है कि चोर तो आपके घर में ही छिपे बैठे हैं। घर घर की तलाशी के जरिए गांव वाले नाहक ही परेशान किए जा रहे हैं। और ये जो नोटों की तलाशी में जगह जगह छापामारी हो रही है, उसे भी बहुत संजीदगी से देखने की जरूरत है। निश्चित रूप से नए नोटों की जमाखोरी और कालाबाजारी शुरू हो गई है। जो नोट नियमित लेन देन के लिए जनता की जेब में जाने चाहिए थे वे दलालों, बिचौलियों और धन्‍नासेठों की गुप्‍त तिजोरियों में जा बैठे हैं। लेकिन ऐसी हर जब्‍ती के पीछे के कारणों को ध्‍यान से देखा और परखा जाना चाहिए।

मेरे एक परिचित छोटा सा व्‍यवसाय चलाते हैं, उन्‍हें हर माह अपने करीब तीन दर्जन लोगों को वेतन के अलावा अन्‍य कई भुगतान कैश में ही करने होते हैं। वे इन लोगों को लाख समझा लें, लेकिन ये लोग किसी डिजिटल या ऑनलाइन ट्रांजैक्‍शन के ‘झंझट’ में पड़ना ही नहीं चाहते। ऐसे में उन कारोबारी की मजबूरी है कि वे महीना खत्‍म होने से पहले वेतन/मजदूरी या अन्‍य भुगतान के लिए कैश जुटाएं। मान लीजिए कि उन्‍हें हर माह ऐसी 50 लाख रुपए की राशि का भुगतान करना पड़ता हो तो जाहिर है वे नए या प्रचलित नोटों के रूप में ही यह राशि जुटाएंगे। अब आपने तो वहां छापा डालकर 50 लाख के नए नोटबरामद कर लिए और खबर भी छप गई कि अमुक के यहां से 50 लाख के नए नोट बरामद हुए। लेकिन यह कौन देखेगा कि वे नोट क्‍यों रखे गए थे। सारे नोट जब्‍त कर लिए जाने के कारण उस कारोबारी का तो जो होगा सो होगा, लेकिन वे लोग कहां जाएंगे जिनका घर उस राशि के भुगतान से चलना था। जाहिर है वह कारोबारी इन लोगों की छुट्टी कर देगा।

विरोध न तो सरकार के कदम का है और न ही कालेधन के खिलाफ किसी कार्रवाई का। लेकिन मगरमच्‍छ मारने के लिए यदि आप नदी सुखा देंगे तो यह भी तो सोचिए कि उस पानी की मछलियां कहां जाएंगी। मगरमच्‍छ तो बिना पानी के भी जी लेगा लेकिन मछलियां बिना वजह मारी जाएंगी… गुजारिश यही है हुजूर कि मछलियों को भी जीने दें…

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