भारत की स्वाधीनता का सूर्योदय: अखबारों के आईने में

अजय बोकिल

संसद भवन में मध्यरात्रि को हुए उस विशेष सत्र में क्या हुआ था? 15 अगस्त की तिथि ही आजादी के लिए क्यों चुनी गई थी? पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त क्यों है? इन कई सवालो के जवाब देश के पहले प्रधानमंत्री रहे पं.‍ जवाहरलाल नेहरू के प्रथम मंत्रिमंडल में उद्योग एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी के भतीजे जस्टिस चित्ततोष मुखर्जी के वर्णन में मिलते हैं। जस्टिस मुखर्जी उस ऐतिहासिक समारोह के गवाह थे और उन दिनों कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में विद्यार्थी थे।

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपे इस विवरण के मुताबिक जस्टिस चित्ततोष ने बताया कि विदेशी सत्ता से भारतीय नेतृत्व के हाथों सत्तातंरण का दिन 15 अगस्त इसलिए चुना गया था, क्योंकि यह भारत के अंतिम वायसरॉय लार्ड माउंटबेटन का ‘लकी डे’ भी था। लार्ड माउंटबेटन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों की संयुक्त सेनाओं के कमांडर थे और इसी दिन 1945 में जापानी सेना ने सरेंडर किया था। लिहाजा माउंटबेटन चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में सत्तातंरण इसी दिन हो। 14 अगस्त को माउंडबेटन नवनिर्मित पाकिस्तान की राजधानी कराची में स्वतंत्र पाकिस्तान की घोषणा करने गए थे। इसलिए पाकिस्तान यही दिन अपना स्वतंत्रता दिवस मानता है। लार्ड माउंटबेटन उसी शाम विमान से दिल्ली लौट आए थे।

14 अगस्त की रात ठीक 11 बजे संसद भवन में वो यादगार समारोह आरंभ हुआ। सबसे पहले सुचेता कृपलानी ने राष्ट्रगान ‘वंदे मातरम्’ गाया। उसके बाद सदन को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सम्बोधित किया। फिर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ (नियति से वादा) दिया। उसके बाद मुस्लिम लीग के एक नेता चौधरी खलीकुज्जमां ने नेहरू की बात का समर्थन किया। चौधरी खलीकुज्जमां यूपी के थे (बाद में वो पाकिस्तान चले गए थे)। चौधरी के बाद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का भाषण हुआ। उन्होंने भारत की इस महान उपलब्धि का जिक्र किया। तब तक घड़ी का कांटा 12 बजा रहा था। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सदन में मौजूद सभी लोगों को शपथ दिलवाई। यह शपथ हिंदी और अंग्रेजी में ली गई। इसमें अंग्रजों से भारतीयों द्वारा देश की सत्ता का अधिग्रहण और लार्ड माउंटबेटन को भारत का नया गवर्नर जनरल नियुक्त करने की बात थी। शपथ ग्रहण के बाद स्वतंत्रता सेनानी हंसा मेहता ने आजाद भारत का नया तिरंगा ध्वज डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा। उसके पश्चात सुचेता कृपलानी ने पहले ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा’ और बाद में राष्ट्रगीत ‘जन मन गण’ गाया। उसी के साथ यह अविस्मरणीय समारोह समाप्त हो गया।

यही वो ऐतिहासिक खबर थी, जो 15 अगस्त 1947 के दिन भारत में छपे तमाम अखबारों की पहली सुर्खी थी। यकीनन ज्यादातर अखबारनवीसों और स्टाफ को रात देर तक जागना पड़ा होगा क्योंकि सत्तांतरण का यह ऐतिहासिक समारोह रात 12 बजे के बाद ही खत्म हुआ था। देश की करीब 8 सौ साल की गुलामी के बाद बही आजादी और स्वशासन की बयार पहले 15 अगस्त के दिन छपे अखबारों में किस तरह से प्रतिध्वनित हुई, यह देखना और जानना बेहद दिलचस्प है। दिलचस्प इसलिए कि भारत के हजारों साल के इतिहास का वह ‍निर्णायक मोड़ था और जिसकी शब्दों में ‍अभिव्यक्ति के लिए हमारे पास अखबारों जैसा सशक्त और शाश्वत माध्यम था। हालांकि इन अखबारों के शीर्षक और काव्यात्मक भी हो सकते थे, लेकिन लगता है वो घटना ही इतनी युगांतरकारी थी कि उसका यथा तथ्य उल्लेख ही स्वयंपूर्ण शीर्षक था।

भोपाल के माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय में इनमें से कुछ अखबारों की दुर्लभ प्रतियां संरक्षित हैं। इनमें वो अखबार भी हैं, जो ब्रिटिश भारत से निकलते थे और वो अखबार भी हैं, जो देसी रियासतों से निकलते थे। कुछ छोटे थे, कुछ बड़े थे। इनके आकार-प्रकार और कीमतों में भी अंतर था। ये अखबार एक आने से लेकर चार आने तक के थे। लेकिन सब में एक बात समान थी और वो ये कि सभी भारत राष्ट्र को युगों बाद मिली स्वाधीनता और पहली बार अपनाई जाने वाली लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के गवाह थे। उसी घटनाक्रम को अपनी रिपोर्ट्स और खबरों के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहे थे। 15 अगस्त 1947 के दिन छपे अखबारों को पढ़ना अपने इतिहास का बाइस्कोप देखने जितना रोमांचक और अंतर्मन को अभिभूत करने वाला है। वो शुक्रवार का दिन था। यूं अखबारों की जिंदगी महज 24 घंटे की मानी जाती  है, लेकिन 15 अगस्त 1947 के तमाम अखबार हमारी अनमिट विरासत हैं।

प्रख्यात अमेरिकी नाटककार ऑर्थर मिलर ने कहा था- ‘एक अच्छे अखबार का अर्थ राष्ट्र का स्वयं से संवाद है।‘ 15 अगस्त 1947 के भारत के अखबार राष्ट्र के इसी आत्म संवाद और देश की जनता की आकांक्षाओं को प्रतिध्वनित करते हैं। पहले सप्रे संग्रहालय में प्रदर्शित अखबारों पर नजर डालें। कानपुर से प्रकाशित होने वाले हिंदी दैनिक ‘प्रताप’ के मुखपृष्ठ पर कवि बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ की कविता ‘हिंदुस्थान हमारा है..’ छपी थी। बायीं तरफ झंडा गीत ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ और नीचे बापू की ध्यानस्थ मुद्रा में तस्वीर छपी थी। पटना से निकलने वाले ‘दैनिक राष्ट्रवाणी’ के पहले पेज पर तिरंगे का रंगीन चित्र और बापू के फोटो के नीचे लिखा था- स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपिता।

दिल्ली से ही प्रकाशित ‘वीर अर्जुन’ में 14 अगस्त की रात संविधान सभा की ऐतिहासिक कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्टिंग है। मुख्य शीर्षक था- ‘एक हजार वर्षों बाद भारत फिर स्वाधीन होगा।‘ अखबार में कुछ अन्य खबरें भी हैं। जिसमें भारत की आजादी पर द्वीप देश श्रीलंका द्वारा भारत को 300 टन गुड़ और 1 हजार टन चावल देने की बात है। मुखपृष्ठ के बीचोंबीच राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘यह पुण्य पताका फहरे’ खास तौर पर छापी गई है। यही कविता दादा माखनलाल चतुर्वेदी के अखबार ‘कर्मवीर’ के 16 अगस्त के अंक में भी प्रमुखता से छापी गई है। अखबार के मुखपृष्ठ पर तिरंगा है। अखबार रंगीन छपा है। एक और रोचक खबर देवास जूनियर राज्य के पवार सरकार के गजट की है। 15 अगस्त 1947 को प्रकाशित राजपत्र के विशेषांक में महाराज यशवंतराव  भाऊसाहब पवार का प्रजाजन के लिए संदेश- ‘प्रसन्नता है कि महाराज ने रियासत को भारत संघ में विलीन करने की मंजूरी दी है।‘

नई दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘हिंदुस्तान’ का बैनर शीर्षक था- ‘शताब्दियों की दासता के बाद भारत की स्वतंत्रता का मंगल प्रभात’। उपशीर्षक था- ‘बापू की चिर तपस्या सफल, रात 12 बजे शंखध्वनि के साथ स्वतंत्रता की घोषणा।‘ मुखपृष्ठ पर ही वंदे मातरम् गान छपा था। उसके नीचे चित्र था- डाकखाने की नई मुहर जयहिंद। मुखपृष्ठ पर दायीं ओर सूर्योदय के साथ तिरंगा लहराता हुआ। उसके नीचे पं. नेहरू का यह वाक्य कि ‘जब तक जनता की आंखों में एक भी आंसू की बूंद होगी, हमारा काम पूरा नहीं होगा।‘ इसी पेज पर सबसे नीचे एक लेख है ‘इलाहाबाद: आजादी के दीवानों का केन्द्रबिंदु।‘ भोपाल से प्रकाशित उर्दू दैनिक ‘नदीम’ में भी पहले स्वतंत्रता दिवस की खबर है।

इलाहाबाद से प्रकाशित अंग्रेजी अखबार ‘द लीडर’ की सुर्खी थी- ‘इंडिया इज फ्री टुडे’। सब हेडिंग था- ‘ग्लैमरस विक्ट्री ऑफ नॉन वायोलेंट रिवोल्यूशन।‘ अखबार के मुखपृष्ठ पर राष्ट्र गान ‘वंदे मातरम्’ का अंग्रेजी अनुवाद छपा था। पटना से प्रकाशित होने वाले ‘द इंडियन नेशन’ के मुखपृष्ठ पर तिरंगे का चित्र था। नीचे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस की तस्वीरें थीं। पहले पेज पर ही नीचे बायीं तरफ बहादुरशाह जफर, नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के चित्र थे। साथ में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का एक रेखांकन और नीचे वीर कुंवर जगदीश सिंह का चित्र भी है। अखबार में विशेष परिशिष्ट भी है- ‘स्टोरी ऑफ इंडियन स्ट्रगल।‘

कलकत्ता (अब कोलकाता) से निकलने वाले ‘द स्टेट्समैन’ का मुख्य शीर्षक था इनॉगरेशन ऑफ टू डोमिनियन्स। यानी दो अधिराज्यों का शुभारंभ। (यहां स्वतंत्र भारत को अधिराज्य इसलिए लिखा गया क्योंकि तब भारत को पूर्ण संप्रभुता नहीं मिली थी। आजाद भारत के गवर्नर जनरल भी एक अंग्रेज लार्ड माउंटबेटन ही थे।) मुख्य शीर्षक के नीचे खबरें दो भागों में थीं। बायीं तरफ लिखा था- प्लेज ऑफ सर्विस एंड डेडीकेशन। इस उपशीर्षक के नीचे कुछ खबरें थी जैसे कि शहीदों की याद में दो मिनट का मौन, गांधीजी 24 घंटे से उपवास पर आदि। मुख्य शीर्षक के नीचे दायीं तरफ भारत के बरक्स नवनिर्मित पाकिस्तान के घटनाक्रम का जिक्र था। मसलन ‘स्प्लेंडर इन कराची’, लार्ड माउंट बेटन ने (पाक) संविधान सभा में पाकिस्तान के निर्माण की घोषणा करते हुए कहा कि यह (भारत का) दो देशों के बीच दोस्ताना विभाजन है। खास बात यह है कि मुखपृष्ठ पर ही नीचे की ओर विदेशी सिगरेट डू मॉरियर का विज्ञापन भी है।

उधर पाकिस्तान के अखबार क्या लिख रहे थे, यह जानना भी रोचक है। कराची (तब पाक की राजधानी यही थी) से प्रकाशित उर्दू ‘डॉन’ (सुबह) ने पाकिस्तान बनने पर 20 पेज का विशेषांक प्रकाशित किया था। आठ आने की कीमत वाले इस अखबार में उर्दू में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था ‘मुस्लिम हैं हम वतन है, सारा जहां हमारा।‘ जबकि अंग्रेजी डॉन का मुख्य शीर्षक था ‘बर्थ ऑफ पाकिस्तान एन इवेंट इन हिस्ट्री।‘ लाहौर से प्रकाशित ‘द ट्रिब्यून’ का शीर्षक था ‘इंडिया वाक्स टू न्यू लाइफ एंड फ्रीडम।‘

संग्रहालय में संरक्षित इन अखबारों के अलावा भी देश के कुछ नामी अखबारों में 15 अगस्त की खबरें जोश और नवोन्मेष से भरी हुई थीं। उदाहरण के लिए मद्रास (अब चेन्नई) से निकलने वाले अंगरेजी अखबार ‘द हिंदू’ का पहला पेज विज्ञापनों से भरा था। मुखपृष्ठ पर विज्ञापनों के बीच केवल एक तिरंगे का चित्र था। नीचे नए भारत का नक्शा था और उसके दोनों तरफ भी तिरंगे लहरा रहे थे। यह अखबार रंगीन छपा था (उस जमाने में यह असाधारण बात थी)। सबसे नीचे कोलंबिया रिकॉर्ड्स और एक तमिल‍ फिल्म का विज्ञापन था। दिल्ली से प्रकाशित ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’ का शीर्षक था ‘ इंडिया इंडिपेंडेंट: ब्रिटिश रूल एंड्स।‘ इसके नीचे बापू का हाथ में लाठी लिए हुए‍ चित्र था। उसके नीचे लिखा था- ‘होमेज टू द फादर ऑफ द नेशन।‘

बॉम्बे (अब मुंबई) से निकलने वाले ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने शीर्षक‍ दिया था- ‘बर्थ ऑफ इंडियाज फ्रीडम।‘ उपशीर्षक था- ‘इंडिया वाक्स टू न्यू लाइफ, नेहरू कॉल्‍स फॉर बिग एफर्ट्स फ्रॉम पीपुल..। मद्रास से ही प्रकाशित ‘द इंडियन एक्स्प्रेस’ का शीर्षक था- ‘इंडिया सेलीब्रेट्स फ्रीडम’ मुखपृष्ठ पर बीच में एक तिरंगा लहराता हुआ। साथ में खबर थी ‘मेमोरेबल सीन इन मद्रास।‘ सबसे नीचे जेमिनी पिक्चर्स की एक फिल्म का विज्ञापन था।

16 अगस्त को हुआ था लाल किले पर पहला ध्वजारोहण
दूसरे दिन यानी 15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वाधीन भारत की पहली राष्ट्रीय सरकार बनी और 22वें वॉयसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के दरबार हॉल में 22 मंत्रियों ने पद की शपथ ली। लेकिन लाल किले पर आजाद भारत का पहला ध्वजारोहण 16 अगस्त को हुआ था। ‘दि प्रिंट’ में छपे एक लेख में हिलाल अहमद ने बताया था कि देश का लाल किले पर पहला स्वतंत्रता दिवस समारोह 15 के बजाए 16 अगस्त 1947 को हुआ था। एडमिरल लुई माउंटबेटन की बेटी पामेला माउंटबेटन ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया रिमेम्बर्ड’ में बताया कि देश पर लगभग दो सौ साल से फहरा रहा यूनियन जैक उतरने और आजाद भारत का तिरंगा फहराने का वह अविस्मरणीय क्षण था। इसका प्रतीकात्मक महत्व यह था कि भारत अब विदेशी दासता से पूर्णत: मुक्त हो गया है। यह भारत के पुनराविष्कार के तहत भारतीय राष्ट्रवाद की विजय भी थी।

लंदन में ब्रिटिश लाइब्रेरी में मौजूद ‘माउंटबेटन पेपर्स’ बताते हैं कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने भाषण में स्वतंत्रता की इस महान उपलब्धि के उल्लेख के साथ यह भी कहा कि ब्रिटिशों के साथ अब हमारे सम्बन्ध समानता, परस्पर सद्भाव और आपसी लाभ पर आधारित होंगे। 15 अगस्त के उस आयोजन के बारे में पामेला माउंटबेटन ने अपनी डायरी में लिखा कि विधान भवन में सत्तांतरण समारोह के बाद लोग खुशी से तालियां बजा रहे थे और नारे लगा रहे थे पंडित माउंटबेटन की जय, लेडी माउंटबेटन की जय। यहां तक कि कुछ लोगों ने पामेला माउंटबेटन (जो उस वक्त कार्यक्रम में मौजूद थीं) के समर्थन में ‘माउंटबेटन मिस साहिबा की जय’’ के नारे भी लगाए। उसके बाद लार्ड माउंटबेटन और पंडित नेहरू दिल्ली के रोशनबाग में अपने अभिभावकों के साथ एकत्रित 5 हजार स्कूली बच्चों से मिले।

पहला ध्वजारोहण प्रिंसेस पार्क में हुआ
पामेला के अनुसार स्वतंत्र भारत का पहला तिरंगा ध्वजारोहण 15 अगस्त को इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में हुआ था। पहले तय हुआ था कि पं.नेहरू पहले यूनियन जैक उतारेंगे फिर तिरंगा फहराएंगे। लेकिन बाद में यूनियन जैक उतारने का इरादा छोड़ दिया गया। शायद इसलिए कि इससे ब्रिटिशों में अच्छा संदेश नहीं जाता। बल्कि इस फैसले में अंतनिर्हित संदेश यह था कि हम ‍ब्रिटिश राज के विरोधी हैं, ब्रिटिश जनता के नहीं। शाम 6 बजे वो महान क्षण आया जब नेहरू ने केवल तिरंगा ही फहराया, राष्ट्रगीत गाया गया और राष्ट्रध्वज को 31 तोपों की सलामी दी गई। पामेला माउंटबेटन के अनुसार लाल किले से दिए अपने पहले ऐतिहासिक भाषण में पं. नेहरू ने स्वयं को ‘भारत का प्रधान सेवक’ कहा था।

कहां है पहली बार फहराया राष्ट्रध्वज
यहां यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि लाल किले पर पहली बार फहराया गया ध्वज अब कहां है? लेफ्टिनेंट कमांडर के.वी. सिंह ने अपनी किताब ‘द इंडियन ट्रायकलर’ में खुलासा किया कि पं. नेहरू द्वारा लाल किले पर पहली बार फहराए गए तिरंगे को उतारे जाने के बाद दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थि‍त आर्मी बेटल ऑनर्स मेस (एबीएचएम) को सौंप दिया गया था। यह ऐतिहासिक धरोहर राष्ट्रध्वज कांच से ढंके बॉक्‍स में रखा गया था। यह ध्वज अभी भी सुरक्षित हालत में है। यह ध्वज दिल्ली के लाल किले पर सुबह 8:30 बजे फहराया गया था। वो शुक्रवार का दिन था।

लाल किले पर उस ध्वजारोहण समारोह की जिम्मेदारी 7 सिख लाइट इंफेंट्री के कंधों पर थी। समारोह के बाद ध्वज उसी इंफेंट्री को सौंप दिया गया था। ‍लेकिन उसके 45 साल बाद तक किसी को पता नहीं था कि लाल किले पर पहली बार फहराया गया तिरंगा आखिर है कहां। बाद में पता लगा कि वह एबीएचएम में सुरक्षित और सम्मानपूर्वक रखा हुआ है। 12x 8 फीट का यह ध्वज कॉटन का है। इसके बीच में हाथ से नीला अशोक चक्र पेंट किया हुआ है। इसे फंफूद और कीटो से बचाने के लिए नियमित ट्रीटमेंट भी किया जाता है।
(मध्यमत)
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