सब कुछ रुक सकता है सियासत के सिवाय

राकेश अचल

यकीन कीजिये कि एक बार को सूरज का उगना रुक सकता है,चन्द्रमा शीतलता बिखेरना स्थगित सकता है, आग से जलना बंद हो सकता है, हवा रुक सकती है लेकिन किसी भी महाव्याधि के बावजूद सियासत नहीं रुक सकती। रुकना सियासत की प्रकृति में शामिल है ही नहीं। देश में दुनिया का सबसे लंबा लॉकडाउन जैसे ही अनलॉक हुआ सियासत ने अपना काम शुरू कर दिया। सियासत एक झटके में देश में लॉकडाउन के कारण पैदा हुई असहनीय पीड़ा को भूलकर अपने काम पर लग गयी।

कोरोना के लिए भावी इंतजामों को भुलाकर सत्तारूढ़ भाजपा की प्राथमिकताओं में बिहार विधानसभा के चुनाव आ गए। प्रदेश के गृह मंत्री नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद को भूल कर बिहार में एक हजार (वर्चुअल)  रैलियां करने की तैयारियों में जुट गए। इन रैलियों को कम से कम एक लाख लोग देख सकेंगे। मध्यप्रदेश में दो माह से रुके राज्य सभा चुनाव की तारीखें घोषित कर दी गयी हैं। यहां उप चुनावों के लिए भी सियासत ने अपना काम शुरू कर दिया है।

सबसे लम्बे लॉकडाउन के बावजूद कोरोना का वजूद मिटना तो दूर कम भी नहीं हुआ है, लेकिन सरकार कोरोना को भुलाकर सियासत में जुट गयी है। सरकार ने अवाम से कह दिया है कि- कोरोना के साथ जीना सीखो। अब कोरोना जाने और अवाम जाने। सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है शायद। सरकार ने जो करना था सो कर दिखाया अब बारी अवाम की है।

आखिर सरकार कब तक अपनी दूकान बंद किये बैठी रह सकती है? मैंने जैसा पहले ही कहा कि सियासत न रुकने वाली चीज है, इसके बिना देश चल ही नहीं सकता। अब देश आत्मनिर्भरता के बारे में काम करेगा, करना भी चाहिए, जब तक आप आत्मनिर्भर नहीं होंगे, तब तक तरक्की कर ही नहीं सकते।

अब देखिये न कोरोना संकट आया तो देश कम से कम पीपीई किट, मास्क और सेनेटाइजर के उत्पादन के मामले में तो आत्मनिर्भर हुआ। अब जिसको जितना माल चाहिए हमसे ले ले। अब ये अवाम पर है कि वो कोरोना से निपटने के लिए इन चीजों का इस्तेमाल करे या न करे। सब कुछ सरकार तो नहीं कर सकती। सरकार को अपने लिए भी तो वर्चुअल रैलियां करना हैं कि नहीं?

देश में लॉकडाउन की वजह से कोरोना नियंत्रित हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन जो जहां का वोटर था, वो वहां पहुँच गया। केंद्र और राज्य सरकारों ने इस दिशा में गंभीर प्रयास किये। बिहार सरकार ने तो सबसे ज्यादा गंभीर प्रयास किये, क्योंकि बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में यदि बिहार के दस-बीस लाख मतदाता प्रदेश से बाहर रहते तो चुनाव कैसे होता भला! कहने का मतलब सरकारें जो कुछ करतीं हैं उसके पीछे लोककल्याण ही नहीं होता बल्कि निजी सियासी स्वार्थ भी होते हैं।

बिहार को छोडि़ये, मध्यप्रदेश को ही ले लीजिये, यहां मुख्यमंत्री ने हालांकि लॉकडाउन के मामले में केंद्र का आँख मूँद कर अनुसरण किया, लेकिन साथ ही कह भी दिया कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ये भी साधारण खांसी-जुकाम जैसा है। सरकार ने कोरोना मरीजों को चिरायु बनाने के लिए भोपाल में एक चिरायु अस्पताल भी बना दिया, यहां से अधिकांश मरीज ठीक होकर निकलते हैं। सरकार ने सूबे की अवाम के लिए बाबा रामदेव के धुर आयुर्वेदिक ज्ञान का इस्तेमाल मध्यप्रदेश में करने के लिए मन ही नहीं बनाया बल्कि इसपर काम भी शुरू कर दिया।

मध्यप्रदेश सरकार को कोरोना के साथ ही विधानसभा के लिए 24 उपचुनाव भी लड़ना हैं, इसलिए सबसे पहले प्रदेश के अधिकांश हिस्से को ग्रीन जोन में बदला और अनलॉक-1 की घोषणा के साथ ही सार्वजनिक परिवहन को छोड़ सब कुछ खोल दिया। न खोलती तो सूबे की सियासत को काठ मार जाता। इधर महाराज खफा बैठे थे उधर कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए 22 विधायक नाराज थे। इन्हीं के लिए विधानसभा उपचुनाव कराये जाना हैं। बागियों के नेता के लिए राज्‍यसभा का चुनाव जरूरी है। मंत्रिमंडल का विस्तार करना है सो अलग..

भारत की जनता बड़ी उदार है, इसलिए सरकार की चाल और कुचाल पर ध्यान नहीं देती। जैसे कि सरकार ने कोरोना संकट के दौरान शरीर की तमाम बीमारियों को छुट्टी पर भेज दिया था, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। बीमारियों को तो छोड़िये सरकार ने संसद, न्याय और अन्य संस्थाओं को भी कोरन्टाइन में भेज दिया लेकिन किसी ने एक शब्द नहीं कहा। आखिर कोई क्यों कहता, राष्ट्रप्रेम का सवाल था। राष्ट्रप्रेम और राष्ट्र की राजनीति में इतना घालमेल हो गया है कि कुछ भी समझ नहीं आता कि कब राष्ट्र प्रेम चल रहा है और कब राष्ट्रीय राजनीति?

कोरोनाकाल में सरकार की समस्या ये है कि उसे अब राजनीति यानि विधानसभा चुनावों का सामना आभासी तरीके से करना है। इसके लिए वर्चुअल रैलियां की जाना है और इसके लिए टीवी सेटों के अलावा अन्य तकनीकी प्रबंध करना पड़ेंगे, यानि आत्मनिर्भर होना पडेगा। इस सबके लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज पहले ही घोषित किया जा चुका है। यह बात अलग है कि घोषणा के बाद से ही इस पैकेज का कोई अता-पता नहीं है। शायद ये पैकेज भी कोरन्टाइन में चला गया है? इसीलिए सरकार को फुटपाथ वाले 86 करोड़ लोगों के लिए नये पैकेज का ऐलान करना पड़ रहा है।

आप मनन कीजिये कि सरकार के अधिकांश मंत्री कोरोना काल में यानि लॉकडाउन के दौरान अंतर्धान हो गाये थे। यहां तक कि गृहमंत्री जी के बीमार होने की अफवाहें उड़ गयी थीं। इस फेर में दो लोगों को हवालात भी जाना पड़ा था। लेकिन जैसे ही अनलॉक-1 शुरू हुआ केंद्र सरकार के छोटे-बड़े, देसी और अनुवादक मंत्री तक तमाम टीवी चैनलों पर अचानक ऐसे प्रकट हुए जैसे आषाढ़ की पहली वर्षा के बाद दादुर टर्राने के लिए पैदा हो जाते हैं।

बेचारे सबके सब सरकार के पहले साल की उपलब्धियों का बखान करने में ऐसे जुटे हैं जैसे सत्यनारायण की कथा पढ़ रहे हों। आप इन्हें सुन लें तो लगेगा कि जैसे देश को कुछ हुआ ही नहीं है। न कोरोना और न अर्थव्यवस्था की हानि।
बहरहाल आप भी कोरोना से डरना छोड़िये और अपने आपको देश की सियासत के साथ जोड़िये। जो सियासत का होगा वो ही आपका होगा। कोरोना यदि सियासत का कुछ नहीं बिगाड़ पाया तो आपका क्या बिगाड़ पायेगा। और अगर बिगाड़ भी लेगा तो उसे देशहित में स्वीकार कर लीजिये। आखिर देश और देश के लिए सियासत भी तो कोई चीज है, है कि नहीं?

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टीम मध्‍यमत

 

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