मध्यप्रदेश में इन दिनों 144 दिन तक निरंतर चलने वाली नमामि देवि नर्मदे यात्रा जारी है। इस यात्रा का उद्देश्य धर्म के मर्म के साथ-साथ जल, जंगल और जमीन का संरक्षण है। ये कार्यक्रम सफल रहा तो यकीन मानिए जब सारी दुनिया में पर्यावरण नष्ट हो जाएगा तब मध्यप्रदेश ही बचेगा जो सबको जीवन देने में सक्षम होगा।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव से खूब मिल रहे हैं। अगर राजनीतिक मतलब ना निकाला जाय तो जग्गी वासुदेव को धरती में हरियाली बचाने के लिए जाना जाता है। इनके संगठन ने 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे रोपकर गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया था।
इन दो उदाहरणों के माध्यम में कोई भी आसानी से ये समझ जाएगा कि मध्यप्रदेश के पर्यावरण कोई खतरा नहीं हैं। मध्यप्रदेश में पेड़ों को, नदियों को, जंगल को कोई अपवित्र नहीं कर सकता ऐसा दिखता है। हरियाली के नष्ट होने से भले ही देश की राजधानी दिल्ली, दिल जली हो गई हो, जी हां! वहां का वायुमंडल विषाक्त माना जाता है। बेंगलुरू जैसे देश के कई बड़े शहर विकास के नाम पर दिल्ली की राह पर बढ़ चले हों लेकिन इस मामले में मध्यप्रदेश में सब कुछ ठीक है!
सब ठीक है के इस भरोसे को दिल में लेकर मैं पिछले महीने नर्मदा जयंती पर एक कार्यक्रम में भाग लेने अमरकंटक गया। वहां पूजा के नाम पर पंडों की दुकान देखी, मां नर्मदा के नाम पर मठाधीशों के आलीशान मकान देखे और विकास के नाम पर नेताओं का ज्ञान ही ज्ञान ही देखा। बस नहीं दिखा तो दूध धारा और कपिल धारा में धार नहीं दिखी। इंच-इंच में दिखनेवाला जंगल नहीं दिखा। ऐसे में कैसे कह दूं सब ठीक हैं!
अमरकंटक जाने के लिए शहडोल से मैंने जिस मुख्य रास्ते का चयन किया उस रास्ते पर कभी दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ हुआ करते थे। इतनी हरियाली की गरमी के दिनों में भी थकान ना हो। लेकिन फोर लेन सड़क के नाम पर वो अब सारे पेड़ गायब है। सुस्ताने के लिए छोटी सी छांव नसीब नहीं होती। कैसे कह दूं सब ठीक है!
मैं ये इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि शाम को जब शहडोल नगर में पाली रोड की तरफ बढ़ा तो देखता क्या हूं कि बड़े-बड़े पेड़ों से ढंका जिला अस्पताल, अब मानो नंगा हो गया है। नाली बनाने के नाम पर सड़क के किनारे लगे सभी पुराने बड़े-बड़े पेड़ काट दिये गये हैं। यही हाल शहडोल कलेक्ट्रेट परिसर का भी है। ये कैसा विकास है, जहां पेड कट रहे हैं पौधे लग रहे हैं वो भी औपचारिकता के लिए। शहडोल में पौधों का हाल हम पांडव नगर के मॉडल रोड पर देख चुके हैं। ये कैसा मंजर है कि पूरे कपड़े उतार कर चड्ढी पहनाई जा रही है और लोग उसे भी नोचने से बाज नहीं आ रहे।
और हमसे उम्मीद ये है कि हम चीख कर कहें कि यहां सब ठीक है!
यही हाल प्रदेश की राजधानी भोपाल का है, हाल ही में दैनिक भास्कर अखबार में राजधानी के हमीदिया इलाके की दो एरियल तस्वीरें छपी थी। जिसमें दिखाया गया था कि कुछ साल पहले वो इलाका हरा-भरा था अब वहां विकास से नाम पर हरियाली साफ है। क्या अब भी आप कहेंगे सब ठीक है?
आरटीआई से निकाली गई जानकारी के मुताबिक 31 मार्च 2016 तक मध्यप्रदेश में नई सड़कों के निर्माण, विस्तार और चौड़ीकरण के नाम पर पिछले पांच साल के दौरान पौने दो लाख पेड़ काटे जा चुके हैं। और दो साल में 60 वर्ग किमी जंगल साफ हो गया। पिछले तीन साल में सिर्फ भोपाल जिले में 70 हजार से ज्यादा पेड़ काट दिये गये हैं। जाहिर है भोपाल भी बेंगलुरू की तर्ज पर विकास के नाम पर बर्बादी की डगर पकड़ चुका है, ऐसे में हम ये कैसे कह दे कि सब ठीक है!
अभी तो मध्यप्रदेश में शहरीकरण की आंधी चल रही है, सड़कों का जाल तूफानी तरीके से बिछाया जा रहा है, बड़े बड़े उद्योग धंधे लगने वाले हैं, सरकार कह रही रही विकास गुणात्मक होगा। अब जब विकास गुणात्मक होगा तो पर्यावरण और पेड़ों का नुकसान चक्रवृद्धि की दर को भी पीछे छोड़ दे, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। है हिम्मत तो हाथ में नर्मदा जल लीजिए और कह दीजिए सब ठीक है!
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल का ग्रीन एरिया 1992 में 66 प्रतिशत था, जो अब घटकर 22 प्रतिशत रह गया है। यानी 26 साल में 44 प्रतिशत हरियाली साफ। आने वाले दो वर्षों में यह मात्र 11 प्रतिशत तक सिमट जाने का अनुमान है। इस आंकड़े को पढ़ कर भी कहेंगे सब ठीक है!
अब एक दिलचस्प आंकड़ा और पढ़ लीजिए भोपाल में सीपीए (केपिटल प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेशन) के आंकड़ों के मुताबिक मई 2016 से पहले तीन वर्षों में दो लाख 46 हजार पौधे लगाए गए, जिनमें 95 प्रतिशत पौधे जिंदा रहे। सीपीए ने 1986 से प्रतिवर्ष औसतन 80 हजार पौधे लगाए। यानी करीब 75 हजार पौधे प्रति वर्ष बचे। इन 30 बरसों में 22 लाख 50 हजार पेड़ तैयार होना चाहिए। नगर निगम और वन विभाग का प्लांटेशन अलग है। यदि आंकड़े सच होते तो शहर में पैर रखने की जगह नहीं होती। क्योंकि, पर्यावरणविदों के मुताबिक एक पौधे को पेड़ बनने के लिए 20 मीटर की परिधि (स्थान) चाहिए।
जनाब सब ठीक नहीं हैं, क्योंकि जिस भोपाल को मैंने देखा था, जाना था, वहां कई इलाके ऐसे थे, जहां भीषण गर्मी के दिनों में मैंने लोगों को ठिठुरते देखा था, वो भी सिर्फ घने पेड़ों के कारण। हरियाली के कारण ।
तो शहडोल से लेकर भोपाल तक नमामि देवि नर्मदे के करोड़ों रुपयों के बैनरों से पटी सड़कों को देखकर, पर्यावरण बचाने वाले जग्गी वासुदेव के साथ लोकप्रिय मुख्यमंत्रीजी की अखबारों में तस्वीर को देखकर ये यकीन तो हो जाता है कि यहां सब ठीक है!
लेकिन बिना पेड़ों के नंगी हो चुकी सड़कें और हाईवे, विकास के नाम पर छोटे और कुम्हलाते पौधों की फटी चड्ढी पहनकर पूछ रहे हैं क्या वाकई सब ठीक हैं?