संविधान बनाने के बाद डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने कहा था हमने इस पवित्र ग्रंथ में वो सब बातें समाहित की हैं जिनमें मानव कल्याण की भावना निहित है। लेकिन ये सब बातें तब तक बेमानी रहेंगी जब तक इन्हें अमल में लाने के लिए जिम्मेदार लोग और जिनको इस पर अमल करना है, उनकी नीयत में खोट रहेगी। 70 साल की आजादी में आम्बेडकर की ये आशंका हर दिन मजबूत हुई है और इस दौरान ऐसा कोई नेतृत्व भारतीय जनमानस में स्थापित नहीं हो सका जिसने उच्चतम नैतिक मूल्यों को आंदोलन बनाया हो।
इसका ये मतलब कतई नहीं है कि इस देश में उच्चतम नैतिक आदर्शों के लोग नहीं हुए, नेता नहीं हुए लेकिन वो राजनीति के अखाड़े में भ्रष्टाचार, गरीबी, शोषण और महंगाई को ही हथियार बना कर लड़ते रहे, सपने दिखा-दिखा कर सरकारें बनाते रहे और गिराते रहे। कितनी पार्टियां आईं और गईं, कितनी सरकारें बनीं और बिगड़ीं लेकिन समस्या जस की तस रही और आलम ये है कि सबसे बड़े लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटने वाला देश अब तक राजनीतिक पार्टियों का खिलौना ही साबित हुआ ।
भारत में विकास के नाम पर, कालेधन की वापसी के नाम पर, सत्ता से वंशवाद मिटाने के नाम पर एकदम नई सरकार बनी है। कहते हैं यह आजाद भारत की सबसे ज्यादा उम्मीदों वाली सरकार है। सरकारों की उम्र चूंकि पांच साल होती है इसलिए आप कह सकते हैं कि इस सरकार ने अपनी जवानी पूरी कर ली है और अब वह प्रौढ़ अवस्था की ओर चल दी है। सरकार की जवानी के बहुत चर्चे रहे। उसकी उपलब्धियों की लिस्ट भी बहुत लंबी बताई जाती है। लेकिन एक नागरिक के नाते मुझे इस सरकार से कुछ कहना है… और कहना भी क्या है, दरअसल कुछ जिज्ञासाएं हैं हुजूर, जिनके जवाब जानने दरकार है…
वैसे तो सब ठीक है, लेकिन जिन भ्रष्टाचारों का जिक्र कर आपने सत्ता पाई उस पर काबू पाने में इतनी देरी क्यों?
सब ठीक है, लेकिन वाड्रा की संपत्ति की जांच पर कोई कुछ क्यों नहीं बोलता?
सब ठीक है, लेकिन कालेधन पर ये चुप्पी क्यों है?
सब ठीक है, लेकिन विजय माल्या हजारों करोड़ों का चूना लगा कर कैसे फरार हो गये?
सब ठीक है, लेकिन महंगाई क्यों नहीं रुकती? दाल बहुत महंगी है साहब!
सब ठीक है, लेकिन देश दफ्तरों में 500 रूपये से शुरू होने वाली नुचाई क्यों नहीं रुकी?
सब ठीक है, लेकिन ट्रेन में रिर्जेशन अब भी क्यों नहीं मिलता, क्यों नहीं मिलता दलालों से छुटकारा?
सब ठीक है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में स्वीपरों के मत्थे मरीजों कि जिंदगी क्यों हैं?
सब ठीक है, लेकिन फर्जी लोगों के टॉपर बनने का सिलसिला क्यों नहीं रुका?
सब ठीक है, लेकिन नकली डॉक्टर, नकली इंजीनियर, नकली अध्यापकों की मौज क्यों नहीं रुकी?
सब ठीक है, लेकिन खाकी वर्दीवाले अब भी गुंडे क्यों लगते हैं?
सब ठीक है, लेकिन कल तक फटेहाल घूमनेवाले अचानक कोठियों के मालिक कैसे बन गये?
सब ठीक है, लेकिन प्रधान सेवक के मातहत काम करने वाले नेता, अधिकारी से लेकर संतरी तक राजा जैसा बर्ताव क्यों कर रहे हैं?
सब ठीक है, लेकिन बच्चे भूख से क्यों मर रहे है? किसान आत्महत्या क्यों कर रहे है, क्यों ईमानदार आदमी अब भी न्याय के लिए दर-दर की ठोकर खा रहा है।
वैसे तो सब ठीक है साहब… आपको दो साल हुए होंगे पर देश 70 साल का हो चला है, बाकी लोगों ने तो जो किया सो किया, क्या आप इस बूढ़े पर कुछ तरस खाएंगे… ऐसा कुछ कर जाएंगे कि इसका आगे का जीवन चैन से बीत सके। कर जाइए हुजूर, बड़ी मेहरबानी होगी… प्लीज! (जारी)
नोट- सब ठीक है… की दूसरी कड़ी पढि़ए कल
(श्रीधर पिछले 17 सालों से आकाशवाणी, दूरदर्शन, ईटीवी, स्टार न्यूज, आजतक औऱ स्टार इंडिया जैसी संस्थाओं से जुड़ कर काम कर चुके है। इस दौरान श्रीधऱ ने राजनीतिक,सामाजिक, अपराध, सिनेमा और खेल पत्रकारिता में अहम भूमिका निभाई है। वर्तमान में श्रीधऱ स्टार स्पोर्ट्स के प्रो कबड्डी सीजन फोर के लिए काम कर रहे हैं।)