इस हथियार को चलाना अब सबने सीख लिया है

हमारे पौराणिक ग्रंथों और आध्‍यात्मिक दृष्‍टांतों में जीवन के इतने सार छुपे हैं कि समाज और वैयक्तिक जीवन का शायद ही ऐसा कोई पक्ष हो जो उनमें अछूता रहा हो। शिवपुराण में ऐसी ही एक कथा है भस्‍मासुर की। आप उस कथा की वास्‍तविकता को लेकर प्रश्‍न उठा सकते हैं लेकिन उसमें जो सीख छुपी है वह अद्भुत है।
कथा का सार यह है कि भस्मासुर नाम का एक राक्षस अमर होकर तीनों लोकों में अपना शासन चाहता था। इसके लिए उसने भगवान शिव की आराधना की। शिव उसकी आराधना से प्रसन्‍न हुए और प्रकट होकर भस्मासुर से वरदान मांगने को कहा। भस्‍मासुर ने पहले स्‍वयं के अमर हो जाने का वरदान मांगा, लेकिन शिव ने उसे असंभव बताते हुए कोई दूसरा वर मांगने को कहा।
इस पर भस्‍मासुर ने वरदान मांगा कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रख दे वह भस्‍म हो जाएगा। इधर शिव ने तथास्‍तु कहा और उधर भस्‍मासुर की दृष्टि पार्वती पर पड़ी और मोहित होकर उसने उन्‍हें पाने की इच्‍छा प्रकट की। इतने में मां पार्वती अंतर्धान हो गईं। भस्‍मासुर ने इसे शिव का किया धरा माना और वह उन्‍हें ही भस्‍म करने पर उतारू हो गया।
भस्‍मासुर से बचने के लिए शिव विष्‍णु की शरण में गए। विष्‍णु ने शिव को बचाने मोहिनी रूप धारण किया। भस्‍मासुर उस रूप पर मोहित हो गया। इसी आकर्षण के वशीभूत होकर उसने मोहिनी रूप धरे विष्‍णु से नृत्‍य सीखने की बात मान ली। इसी दौरान देखादेखी एक नृत्‍य मुद्रा बनाते हुए उसने स्‍वयं अपने ही सिर पर हाथ रख दिया और शिव के वरदान के असर से वहीं भस्‍म हो गया।
वैसे तो इस कथा के कई आयाम हैं लेकिन आज मैं सिर्फ भस्‍मासुर के स्‍वयं भस्‍म हो जाने की घटना तक ही अपनी बात को सीमित रखूंगा। संदर्भ है विभिन्‍न राजनीतिक दलों और संगठनों द्वारा किया जाने वाला मीडिया अथवा सोशल मीडिया का उपयोग (आप इसे अपनी सुविधानुसार दुरुपयोग भी पढ़ सकते हैं।)
बात मैं आज के सबसे ज्‍वलंत विषय प्रणब मुखर्जी की नागपुर यात्रा से ही शुरू करूंगा। वैसे तो इस यात्रा के पक्ष-विपक्ष में बहुत बयानबाजी हुई। लेकिन सबसे ज्‍यादा चर्चित बयान आया खुद प्रणब दा की पुत्री शर्मिष्‍ठा मुखर्जी का। प्रणब मुखर्जी के भाषण से करीब 24 घंटे पहले आए इस बयान ने बहस को नया ही मोड़ दे दिया।
शर्मिष्‍ठा ने बुधवार को अपने पिता को संबोधित करते हुए ट्वीट किया कि- ‘’उम्‍मीद है अब आपको भी पता चल गया होगा कि भाजपा का गंदी हरकतें (डर्टी ट्रिक्‍स) करने वाला विभाग कैसे काम करता है। खुद आरएसएस ने भी कभी यह नहीं सोचा होगा कि आप अपने भाषण में उनके विचारों का समर्थन करेंगे। लेकिन आप वहां क्‍या कहते हैं इसे भुला दिया जाएगा और उस आयोजन की सिर्फ तसवीरें रह जाएंगी। बाद में उन्‍हीं तसवीरों का फर्जी बयानों के साथ उपयोग किया जाता रहेगा। आप नागपुर जाकर भाजपा/आरएसएस को ऐसी फर्जी खबरें गढ़ने, अफवाहें फैलाने और इनको किसी न किसी तरह विश्वसनीय बनाने का मौका दे रहे हैं। और यह तो सिर्फ शुरुआत भर है।‘’
यह सवाल पूछा जा सकता है कि प्रणब की यात्रा को लेकर इतने दिनों से चुप बैठी शर्मिष्‍ठा ने आखिर ऐन वक्‍त पर ऐसा कड़ा बयान क्‍यों दिया? तो उसकी भी कहानी सुन लीजिए। दरअसल शर्मिष्‍ठा इस मामले से संभवत: खुद को अलग रखना चाहती थीं और इसीलिए वे चुप थीं। वे इस पूरे झमेले से दूर कहीं अपनी छुट्टियां बिता रही थीं।
शर्मिष्‍ठा की इन छुट्टियों में एक खबर/अफवाह अचानक उन पर मिसाइल की तरह आकर गिरी। खबर/अफवाह यह थी कि शर्मिष्‍ठा शीघ्र ही भाजपा में शामिल होने जा रही हैं और भाजपा संभवत: उन्‍हें बंगाल में कहीं से चुनाव लड़वाना चाहती है। जाहिर है इस खबर ने शर्मिष्‍ठा को विचलित किया और उन्‍होंने उसी गुस्‍से में आकर कई सारे ट्वीट कर डाले।
भाजपा में शामिल होने की कयासबाजी पर उन्‍होंने ट्वीट किया- ‘‘पहाड़ों में खूबसूरत सूर्यास्त का आनंद ले रही हूं और अचानक खबर आती है कि मैं भाजपा में शामिल हो रही हूं। यह टॉरपीडो से टकराने जैसा है। क्या इस दुनिया में थोड़ी शांति और सद्बुद्धि नहीं हो सकती? मैं राजनीति में इसलिए आई क्योंकि मैं कांग्रेस पर विश्वास करती हूं। कांग्रेस छोड़ने के बजाय मैं राजनीति छोड़ना पसंद करूंगी।‘’
मुझे लगता है कि प्रणब मुखर्जी की यात्रा को लेकर भाजपा और आरएसएस के अलावा खुद प्रणव दा ने भी किसी और के बयान को उतना गंभीरता से नहीं लिया होगा या कि वे उससे उतना विचललित नहीं हुए होंगे जितना शर्मिष्‍ठा के इन ट्वीट्स से। ऐसा इसलिए कि बाकी लोगों के बोलने से मामला उतना गंभीर नहीं होता जितना एक बेटी के अपने पिता के बारे में बोलने से।
यह तो पता नहीं कि शर्मिष्‍ठा को भड़काने वाली, उनके भाजपा में शामिल होने की खबर किसने चलाई या उड़वाई पर उसकी टाइमिंग इतनी जोरदार थी कि, उसका जो असर चाहा गया था उससे अधिक असर वह छोड़ गई। इसने वही भस्‍मासुर वाली कहानी चरितार्थ कर दी।
दरअसल राजनीति में इन दिनों सूचनाओं से ज्‍यादा अफवाहें चल रही हैं। कई सारे युद्ध इन अफवाहों पर ही लड़े जा रहे हैं। मीडिया और खासकर सोशल मीडिया तो इस तरह की अफवाहों का गिरोह बन गया है। किसी भी बात को उछालना हो या उसे पंचर करना, इस प्‍लेटफार्म का धड़ल्‍ले से इस्‍तेमाल किया जा रहा है।
जनता के बीच जानकारी के नाम पर या तो अफवाहें हैं या फिर भ्रामक सूचनाएं, लेकिन कोई भी इसे अपराध या गलती की तरह स्‍वीकार नहीं कर रहा बल्कि सभी अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से ऐसी अफवाहों या भ्रामक सूचनाओं को अपने राजनैतिक हितों के लिए इस्‍तेमाल कर रहे हैं।
लोग केवल उस समय चौंकते या सहमते हैं जब सामने वाला उनसे ज्‍यादा बड़ी अफवाह, सही टाइमिंग के साथ बाजार में पटक देता है। शर्मिष्‍ठा मामले में भी यही हुआ। अब आप खोजते रहिये कि यह अफवाह कहां से आई, किसने चलाई,लेकिन जो नुकसान होना था हो गया। इसने राजनीति का कुटिल चेहरा उजागर करते हुए एक बेटी को अपने पिता के खिलाफ खड़ा करवा दिया।
ऐसे नुकसान हर पक्ष रोज झेल रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि चोट खाने के बाद भी न तो कोई सुधरने को तैयार है और न संभलने को। तैयारी है तो सिर्फ अपना मौका आने पर और अधिक मारक क्षमता वाली ‘अफवाह मिसाइल’ दागने की…

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