आज की कविता- ‘देख लिया’

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देख लिया
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नसीब देखा है, अब इत्तफाक देख लिया
निकाह देखा है हमने, तलाक देख लिया
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लगा दी आग हवाओं ने तैश में आकर
गुलों को होते हुए सबने ख़ाक देख लिया
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किसी की चाल में खम है, किसी की चाल अलग
तरह-तरह का यहां कैटवॉक देख लिया
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निजाम कोई भी आये, निजाम होता है
हुआ गरीब ही हरदम हलाक देख लिया
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चुनाव, लोकतंत्र, संविधान, सब बौने
बना के रक्‍खा है सबको मजाक देख लिया
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इसी मकाम से गुजरे हैं झूमते-गाते
नजीर देख चुके हैं फिराक देख लिया
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@ राकेश अचल की फेसबुक वॉल से साभार

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