हेमंत पाल
प्रदेश में उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने 28 में से 24 सीटों के उम्मीदवार घोषित कर दिए। बाकी बची 4 सीटें कुछ पेंच होने से रुक गईं। जबकि, भाजपा की 3 सीट छोड़कर 25 उम्मीदवार तय हैं, पर घोषित नहीं। ख़ास बात यह कि दोनों ही पार्टियों में बहुत से उम्मीदवार दलबदलू हैं या मौकापरस्त। ऐसी स्थिति में जब वे मैदान में आएंगे, उन्हें खुले और अंदरूनी दोनों तरफ से विरोध का सामना करना पड़ेगा। दोनों ही पार्टियों को यही चिंता सता रही है। इस स्थिति से बचने के लिए दोनों पार्टियां अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को समझाने और सक्रिय करने की कोशिश में लगी हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि ये उपचुनाव प्रदेश में सरकार का भविष्य निर्धारित करेंगे। चुनाव के नतीजों से तय होगा कि मध्यप्रदेश में भाजपा की शिवराज सरकार चलती रहेगी या कमलनाथ कांग्रेस के सत्ता-रथ पर सवार होकर फिर लौटेंगे।
उपचुनाव की स्थितियों के मुताबिक भाजपा को अपने 28 उम्मीदवारों की घोषणा पहले करना थी। क्योंकि, 25 सीटों पर कौन योग्य है, ये तो पार्टी को विचार ही नहीं करना था। जबकि, कांग्रेस ने चुनाव की घोषणा से पहले ही अधिकांश उम्मीदवार सामने खड़े कर दिए। लेकिन, 15 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 6 ऐसे चेहरे हैं, जो दल बदलकर उम्मीदवार बने हैं। ये भाजपा या बसपा से कांग्रेस में आए हैं। कांग्रेस की दूसरी सूची में 9 उम्मीदवार घोषित किए गए। इनमें भी तीन ऐसे चेहरे हैं, जो भाजपा से कांग्रेस की नाव में बैठे हैं।
कांग्रेस ने 24 में से 9 ऐसे उम्मीदवारों पर दांव लगाया, जिनमें 7 भाजपा से आए हैं और 2 बसपा से। कांग्रेस का कहना है कि हमने इन्हें अपने पार्टी सर्वे में जीतने वाले चेहरे पाया है। कहा नहीं जा सकता कि कांग्रेस ने जिन्हें अपने सर्वे में योग्य पाया है, उन्हें उस क्षेत्र में मतदाता भी योग्य समझें। संभव है कि दल बदलकर चुनाव लड़ने वालों को विरोध का सामना करना पड़े। लेकिन, भाजपा में ऐसे उम्मीदवारों की भरमार है। वास्तव में ये चुनाव ऐसे चेहरों के बीच होना है,जो या तो दलबदलू हैं या फिर जिन्होंने मौका देखकर पाला बदला है।
बसपा के पूर्व विधायक, प्रदेश अध्यक्ष रहे और कुछ महीने पहले कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार रहे फूलसिंह बरैयां को कांग्रेस ने भांडेर सीट से टिकट दिया है। उनके सामने होंगी कांग्रेस से भाजपा में आने वाली रक्षा सरौनिया। दोनों ही अपनी मूल राजनीतिक विचारधारा से हटकर आमने-सामने हैं। यही स्थिति करैरा सीट पर हैं, कांग्रेस के टिकट पर प्रागीलाल जाटव को उम्मीदवार बनाया गया है। वे दो बार बसपा से चुनाव लड़ चुके हैं। यदि भाजपा ने कोई बदलाव नहीं किया तो उनका मुकाबला जसवंत जाटव से होगा, जो सिंधिया टीम का हिस्सा हैं। बमौरी सीट से कांग्रेस ने अपने सर्वे में कन्हैयालाल अग्रवाल को जीतने वाला उम्मीदवार समझा है। जबकि, वे पहले भाजपा में थे और मंत्री भी रहे हैं। उनका मुकाबला महेंद्रसिंह सिसौदिया से होना तय है, जो सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा आए हैं।
कांग्रेस ने सांवेर से प्रेमचंद गुड्डू और डबरा से सुरेश राजे को मैदान में उतारा है। ये दोनों ही दलबदलू हैं। डबरा के कांग्रेस उम्मीदवार वास्तव में भाजपा की संभावित उम्मीदवार और मंत्री इमरती देवी के समधी हैं। वे पहले भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। बाद में इमरती देवी ही उन्हें कांग्रेस में लेकर आई थीं। अंबाह से भाजपा के संभावित उम्मीदवार कमलेश जाटव के सामने कांग्रेस के उम्मीदवार सत्यप्रकाश सखवार बसपा से कांग्रेस में आए हैं।
कांग्रेस की दूसरी सूची में जौरा से पंकज उपाध्याय, सुमावली से अजब कुशवाह, ग्वालियर (पूर्व) से सतीश सिकरवार, पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ला, मुंगावली से कन्हैयाराम लोधी, सुरखी से पारुल साहू, मांधाता से उत्तमराज नारायण सिंह, बदनावर से अभिषेक सिंह टिंकू बना और सुवासरा से राकेश पाटीदार को उम्मीदवार बनाया गया। दूसरी सूची में सतीश सिकरवार, अजब कुशवाह एवं पारुल साहू उपचुनाव के लोभ में भाजपा से कांग्रेस में आए हैं। लेकिन, बदनावर से उम्मीदवार बदला जाना तय समझा जा रहा है। क्योंकि, अभिषेक सिंह को कांग्रेस ने अपने सर्वे में भले जिताऊ समझा हो, पर वास्तव में वो अनजाना चेहरा हैं।
विधानसभा की कुल 230 सीटों में भाजपा के 107 विधायक हैं। जबकि, कांग्रेस के 88, चार निर्दलीय, दो बसपा एवं एक विधायक सपा का है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 28 सीटों में से 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं। बसपा ने ग्वालियर-चंबल इलाके के 8 उम्मीदवारों की घोषणा सबसे पहले करके अपनी मौजूदगी का अहसास करा दिया था। लेकिन, उत्तरप्रदेश से बाहर बसपा चुनाव के प्रति गंभीर कभी नहीं लगी। वो हमेशा वोट-कटवा पार्टी की तरह मैदान में उतरती है।
2018 के मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा को 5 फीसदी वोट मिले और उसके 2 उम्मीदवार जीते थे। लेकिन, बसपा को मालवा-निमाड़ इलाके में कोई खास तवज्जो कभी नहीं मिली। इस पार्टी की हमेशा ही कोशिश रही है, कि किसी एक पार्टी को बहुमत न मिले और उसके इक्का-दुक्का विधायक संतुलन की राजनीति की कीमत वसूलें। इस बार 28 सीटों के उपचुनाव में भी ऐसे हालात बन सकते हैं, इसलिए मायावती ने अपनी पार्टी को सक्रिय कर दिया।
बहुजन समाज पार्टी ने पहली सूची में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की आठ सीटों से उम्मीदवारों की घोषणा की। ये वो सीटें हैं, जहाँ से बसपा को हमेशा ही अच्छे वोट मिलते रहे हैं। पार्टी ने जौरा से सोनाराम कुशवाह, मुरैना से रामप्रकाश राजोरिया, मेहगांव से योगेश मेघसिंह नरवरिया, पोहरी से कैलाश कुशवाहा (सभी सामान्य सीट), अंबाह से भानुप्रताप सखवार, गोहद से जसवंत पटवारी, डबरा से संतोष गौड़ और करैरा से राजेन्द्र जाटव (सभी अनुसूचित जाति सीट) को उपचुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है। प्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने दो सीटें जीती थीं। ये दोनों ही विधायक अपनी राजनीतिक परंपरा के तहत पहले कांग्रेस के साथ थे, बाद में भाजपा के समर्थन में आ गए।
बसपा ने दूसरी सूची में मालवा-निमाड़ की 4 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए हैं। इनमें 2 सीटें आरक्षित और 2 सामान्य है। सांवेर (सुरक्षित) से विक्रम सिंह गेहलोत, मांधाता सीट से जितेंद्र वाशिन्दे, सुवासरा से शंकरलाल चौहान और आगर-मालवा (सुरक्षित) सीट से गजेंद्र बंजारिया को उम्मीदवार बनाया है। सांवेर सीट से विक्रम गेहलोत को टिकट देकर बसपा ने मुकाबले को दिलचस्प जरूर बना दिया। उन्हें बलई समाज के वोट काटने के लिए उतारा गया है। क्योंकि, यहाँ से दोनों प्रमुख उम्मीदवार तुलसी सिलावट और प्रेमचंद गुड्डू खटीक समाज से हैं। लेकिन, यहाँ बलई मतदाता इतने हैं कि वे नतीजा बदल सकते हैं। इस समाज की हमेशा ही टिकट की मांग रही है, पर न तो कांग्रेस ने टिकट दिया और न भाजपा ने। यही कारण रहा कि इस बार समाज ने बसपा के साथ मिलकर दांव लगाया है। वे जीत न सकें, पर कांग्रेस और भाजपा की नाक में दम तो कर ही सकते हैं।