राकेश अचल
मुबारक मौक़ा है इसलिए मुबारकबाद दी ही जाएगी। दुनिया का कोई शैतान इस मुबारक मौके पर हमसे हमारा न चाँद छीन सकता है और न चाँद से जुड़ी ईद। ईद तब भी मुबारक है जब दुनिया में वबा का कहर है और ईद तब भी मुबारक है जब दुनिया के किसी एक हिस्से में आसमान से रॉकेटों के जरिये इनसानियत को राख करने की कोशिशें की जा रहीं हैं। आज के इस मुबारक मौके पर मैं अपने उन तमाम पाठकों तक ईद की मुबारकबाद पहुँचना चाहता हूँ, जहाँ तक मेरी पहुँच है।
दुनिया में पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनायी थी। ईद उल फित्र के अवसर पर पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं, रोज़ा रखते हैं और क़ुरआन करीम की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है, जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बड़े हर्ष उल्लास से मनाते हैं। इंसान से उसका हर्ष, उल्लास कोई नहीं छीन सकता, सिवाय मौत के। और मौत सर पर भी खड़ी हो तब भी मुबारक चीज मुबारक ही रहेगी।
हमारे यहां हिन्दू हों या मुसलमान सबके लिए ईद यानि खुशी का संदेशा चाँद लेकर आता है। चाँद है तो खुशी है, चाँद नहीं है तो ख़ुशी भी नहीं है। आप तो क्या कोई भी जीव चौबीस घंटे सूरज के साथ नहीं रह सकता। सबको चाँद चाहिए। सबका चाँद होता भी है और इसीलिए अमावस के बाद सबको चाँद का इन्तजार रहता है। यानि की हम मानें या न मानें दुनिया हर पंद्रह दिन के बाद चाँद का इन्तजार करती है। चाँद पूरा हो या हँसिये की धार के बरबस अच्छा लगता है, क्योंकि चाँद का चरित्र ही शांत है। चाँद के इसी चरित्र की वजह से हर धर्म ने चाँद को खुशी का सन्देश वाहक बनाया और चाँद को देखिये वो बन भी गया। चाँद ने किसी से, किसी का धर्म नहीं पूछा। चाँद का काम खुशी का सन्देश देना है सो वो कर रहा है।
बात दशकों पुरानी है। जब मैं कक्षा 8 में पढता था, उस समय मेरा एक मित्र था इशाक मोहम्मद। इशाक के अम्मी और अब्बा मिलकर घर पर ही मदरसा चलाते थे। मैंने कोई बारह-तेरह साल की उम्र में इसी मदरसे में अलिफ़, बे सीखा था। इसी इशाक के घर में मैंने पहली बार ईद का मुजाहिरा किया था। अम्मी के हाथ की बनी खीर खाई थी। अब्बा के हाथ से मिली ईदी के पैसे से पानी के बताशे चटकाए थे।
इशाक के अब्बा हुजूर ने मुझे तभी बताया था कि ईद उल-फितर का सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें ग़रीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो ग़रीब हैं, मजबूर हैं, अपनी ईद मना सकें। नये कपडे पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें। फित्र वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ से पहले करना होता है।
अब इशाक के अब्बा-अम्मी दोनों नहीं हैं, लेकिन उनकी बताई हर बात मेरे जेहन में है। ईद मुझे वैसी ही लगती है जैसी दीवाली-होली। हमारे पर्व-त्योहार आते ही खुशियां लेकर हैं। आज जब दुनिया में 16 करोड़ से ज्यादा लोग वबा के शिकार हो चुके हैं, 3 लाख से ज्यादा लोग राख में तब्दील हो चुके हैं या ख़ाक में दबाये जा चुके हैं, तब भी चाँद अपना काम कर रहा है। ईद अपना काम कर रही है। किसी ने अपना काम बंद नहीं किया सिवाय इनसान के। इनसान मौत के डर से ‘लॉकडाउन’ किये बैठा है। उसे गले लगने की मुमानियत है। वो हाथ मिला नहीं सकता। उसे जीते जी दो गज की दूरी पर रहने की सीख दी जा रही है ताकि वो खुश रह सके। चाँद के दीदार कर सके, ईद मना सके।
ईद जब एक माह के रोजे के बाद आती है तब और ज्यादा हसीन लगती है। इनसान का जिस्म ही नहीं रूह तक हल्की हो जाती है। हवा में उड़ता सा प्रतीत होता है रोजेदार। ये वो ही अनुभूति है जो नवदुर्गा या श्रावण के सोमवारों का उपवास करने पर होती है। भूख इनसान को उदारता से बाहर देती है। जो कभी भूखा नहीं रहा उसे इस सुख का अहसास हो ही नहीं सकता। इसलिए ईद और चाँद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
हमें शरद पूर्णिमा का चाँद खूबसूरत लगता है तो तुम्हें हंसिये के आकार का चाँद। हमारे यहां इसे बालेंदु कहते हैं। भगवान शंकर ने दुनिया का विषपान किया, नीलकंठ हो गए लेकिन जैसे ही उनके शीश-जटा पर बालेंदु ने जगह बनाई उनका तमाम संताप, डाह दूर हो गया। यदि आपने कभी राम चरित मानस का पाठ किया हो तो आपको पता चलेगा कि चन्द्रमा की व्याख्या क्या होती है। एक प्रसंग है कि- पूर्व दिशा रूपी पर्वत की गुफा में रहने वाला, अत्यंत प्रतापी, तेज और बल की राशि यह चंद्रमा रूपी सिंह अंधकार रूपी मतवाले हाथी के मस्तक को विदीर्ण करके आकाश रूपी वन में निर्भय विचर रहा है। आकाश में बिखरे हुए तारे मोतियों के समान हैं, जो रात्रि रूपी सुंदर स्त्री के श्रृंगार हैं। प्रभु ने कहा- भाइयो! चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है? अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार कहो।
सुग्रीव ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनिए! चंद्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई दे रही है। किसी ने कहा- चंद्रमा को राहु ने मारा था। वही (चोट का) काला दाग हृदय पर पड़ा हुआ है। कोई कहता है- जब ब्रह्मा ने (कामदेव की स्त्री) रति का मुख बनाया, तब उसने चंद्रमा का सार भाग निकाल लिया (जिससे रति का मुख तो परम सुंदर बन गया, परन्तु चंद्रमा के हृदय में छेद हो गया)। वही छेद चंद्रमा के हृदय में वर्तमान है, जिसकी राह से आकाश की काली छाया उसमें दिखाई पड़ती है। हनुमान्जी ने कहा- हे प्रभो! सुनिए, चंद्रमा आपका प्रिय दास है। आपकी सुंदर श्याम मूर्ति चंद्रमा के हृदय में बसती है, वही श्यामलता की झलक चंद्रमा में है। यानि चन्द्रमा के लिए सबके मन में अलग छवियां हैं।
कुल जमा इस बार की ईद दूसरी ईदों से अलग है। आप अपना फर्ज अदा करने के बाद यदि जकात करना चाहते हैं तो किसी कोरोना पीड़ित की इमदाद कीजिये। उसे दवा, आक्सीजन, इंजेक्शन, एम्बुलेंस, खाना कुछ भी दे सकते हैं। कुछ और नहीं तो आप पीड़ित के परिजनों की हौसला अफजाई कर सकते हैं। यदि आप ये करते हैं तो आपकी ईद हो गयी। मैंने ऐसे अनेक किस्से सुने हैं जब रोजेदारों ने रक्तदान के लिए अपना रोजा तोड़ दिया। किसी ने अपनी रोजी-रोटी के काम आने वाला ऑक्सीजन का सिलेंडर दान कर दिया। मेरे घर में तो ईद हो या दीपावली दोनों का जश्न एक जैसा ही मनाया जाता रहा है।
कोई दो साल पहले मैं अमेरिका में था। मैंने वर्षों बाद अपने बेटे के पड़ोसी अदनान और उसकी पत्नी हिबा के साथ ईद मनाई थी। मैंने हिबा को ईदी भी दी थी। इस बार भी उनके साथ रोजा इफ्तार का मौक़ा मिला। दोनों अविभाजित हिंदुस्तान के लोग हैं। खुशियां बांटने के लिए हमें सरहदों से पार जाना होगा। जब वबा ऐसा कर सकती है तो इंसान क्यों नहीं कर सकता। तो आइये ईद मनाएं। ईद मुबारक। बहुत-बहुत मुबारक। (मध्यमत)
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