राकेश दुबे

आज जीवन में शिक्षा और शिक्षा के लिए स्कूल और स्कूल में शिक्षक के साथ आधुनिकतम साधन जरूरी है। मध्यप्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में आगे जरूर बढ़ रहा है लेकिन आज भी कई मामलों में वह पीछे है। अनेक सरकारी स्कूलों के पास भवन नहीं है, जहाँ भवन है नियमित शिक्षक नहीं है, जहाँ शिक्षक जैसे-तैसे हैं भी तो आधुनिक साधन नहीं है। नतीजा निजी स्कूलों की भरमार है और हर साल भारी फ़ीस वसूलने वाले नये-नये निजी स्कूल खुल रहे हैं।

यह तो सर्वविदित तथ्य है कि शिक्षा में भी डिजिटल तकनीक का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों का एक बड़ा प्रतिशत इस सुविधा से महरूम है। देश के अन्य भागों में कोरोना दुष्काल के दौर में तो इसकी वजह से ही पढ़ाई जारी रह सकी थी। एक ओर जहां कंप्यूटर और इंटरनेट के जरिये सामान्य शिक्षा बेहतर ढंग से दी जा सकती है, वहीं तकनीक नये कौशल एवं मेधा भी मुहैया कराने की क्षमता रखती है। कहने को केंद्र और राज्य सरकारें स्कूलों में समुचित संसाधन उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयासरत हैं, लेकिन अभी इस क्षेत्र में बहुत किया जाना बाकी है|

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा नवंबर में जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन रिपोर्ट, 2020-21 के लिए 14 लाख 89 हजार 115 स्कूलों का सर्वेक्षण किया गया था, जिनमें से केवल 5 लाख 4989 स्कूलों यानी 34 प्रतिशत विद्यालयों में ही इंटरनेट की सुविधा मिली है। यद्यपि यह आंकड़ा संतोषजनक नहीं है, लेकिन अगर इसकी तुलना 2018-19 के 18.73 प्रतिशत के आंकड़े से करें, तो इंटरनेट उपलब्धता में उल्लेखनीय बेहतरी हुई है।

आम तौर पर संसाधनों की कमी तथा प्रशासनिक लापरवाही के कारण सरकारी स्कूलों की दशा अपेक्षाकृत अच्छी नहीं रहती है, मध्यप्रदेश की स्थिति इससे इतर नहीं है। इस कारण अभिभावक समुचित शिक्षा के लिए अपने बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों में कराने के लिए मजबूर होते हैं, जहां उन्हें अधिक खर्च करना पड़ता है। डिजिटल संसाधन के मामले में भी निजी स्कूल और सरकारी सहायता प्राप्त निजी प्रबंध में संचालित हो रहे विद्यालय बेहतर स्थिति में है। जिन स्कूलों में इंटरनेट सुविधा है, उनमें से 24.2 प्रतिशत ही सरकारी स्कूल हैं। इसके विपरीत 53.1 और 59.6 प्रतिशत क्रमशः सरकारी सहायता प्राप्त और निजी स्कूल हैं|

रिपोर्ट के अनुसार, आधे से अधिक स्कूलों में चालू हालत में कंप्यूटर भी नहीं हैं। इस सुविधा से लैस स्कूलों की संख्या 45.8 प्रतिशत है. यह आंकड़ा 2018-19 में 33.49 प्रतिशत था। कंप्यूटर सुविधा वाले स्कूलों में सरकारी स्कूलों की संख्या केवल 35.8 प्रतिशत है, जबकि शेष सरकारी सहायता प्राप्त और प्राइवेट स्कूल हैं। समूचे देश में बिजली पहुंचाना सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में से है, पर जब स्कूल भवन नहीं होगा तो बिजली कैसे लगेगी, एक बड़ा सवाल है।

सरकार को देश के विकास के मद्देनजर सबसे पहले अस्पतालों, शिक्षा संस्थानों और अन्य आवश्यक संस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए। भवन, काम करने वाले कर्मी और जरूरी संसाधन पहली प्राथमिकता हैंं। आज भी देश में 13.4 प्रतिशत ऐसे स्कूल हैं, जहां बिजली का कनेक्शन ही नहीं पहुंच सका है। मध्यप्रदेश में सरकार शिक्षा कर्मी वर्ग-2 एवं 3 के नियमितीकरण की नीति के बारे में सोच रही है। इन संसाधनों की उपलब्धता के मामले में एक खाई शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा विकसित राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के बीच भी है। अगर देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करना है, तो हमें ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों तथा पिछड़े राज्यों पर अधिक ध्यान देना होगा।
(मध्यमत)
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