गिरीश उपाध्याय
कोरोना महामारी के कारण जिस तरह से लोगों की जान जा रही है और जिस तरह लोग उससे पीडि़त हैं, उसके चलते कायदे से तो इन दिनों सारा ध्यान कोरोना से निपटने के उपायों पर ही होना चाहिए लेकिन ‘अजब-गजब’ मध्यप्रदेश में कुछ ‘अजब-गजब’ न हो तो ‘अजब-गजब’ का तमगा लटकाने का फायदा ही क्या? सो अपने नाम को सार्थक करते हुए मध्यप्रदेश की राजनीति इन दिनें ‘कोरोना ट्रैप’ के बजाय ‘हनी ट्रैप’ में उलझी है।
आमतौर पर इन दिनों सरकारों पर यह आरोप लग रहा है कि वे कोरोना से निपटने में अपनी असफलता के चलते लोगों का ध्यान बंटाने के लिए दूसरे मुद्दे उछाल रही हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में मुद्दा उछालने का यह काम विपक्ष ने किया है और वह भी पूर्व मुख्यमंत्री और प्रतिपक्ष के नेता कमलनाथ ने। इसने सत्ता पक्ष को कोरोना के कारण हो रही आलोचना से बचने का अच्छा मौका दे दिया और उसने भी मुद्दे तो तत्काल लपकने में कोई कोताही नहीं बरती।
हुआ यह कि 16 मई को प्रदेश के पूर्व मंत्री और धार जिले के गंधवानी से कांग्रेस के विधायक उमंग सिंघार के भोपाल स्थित मकान पर अंबाला की एक महिला ने आत्महत्या कर ली। उसके बाद खबरें आईं कि उमंग सिंघार कई दिनों से उस महिला के संपर्क में थे और उससे शादी करना चाहते थे। महिला ने आत्महत्या से पहले एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था जिसमें सीधे तौर पर अपनी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं बताया था। लेकिन उसकी ओर से दिए गए कुछ अन्य संकेतों के आधार पर पुलिस ने उमंग सिंघार के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया।
और यहीं से मामले में सियासत की घुसपैठ हो गई। भाजपा ने सिंघार के बहाने कांग्रेस को घेरने का अवसर पाया और इसे भुनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई। यहां तक कि इसे मध्यप्रदेश का ‘भंवरी कांड’ तक करार दे दिया गया। 20 जून को कमलनाथ ने कोरोना और अन्य विषयों पर पार्टी विधायक दल के सदस्यों से एक वर्चुअल संवाद किया तो उस दौरान कुछ विधायकों ने इस मामले को उठाते हुए शिकायत की कि राजनैतिक लाभ लेने के लिए सरकार बदले की भावना से कार्रवाई करते हुए उमंग सिंघार को इस मामले में जबरन फंसाना चाहती है। इसी दौरान कमलनाथ की ओर कथित तौर पर यह कहा गया कि ‘’सिंघार मामले में सरकार ओछी राजनीति न करे वरना परिणाम ठीक नहीं होंगे। हमारे पास भी ‘हनी ट्रैप’ की पेन ड्राइव है।‘’
कमलनाथ का यह बयान जैसे ही मीडिया में आया बवाल मच गया। भाजपा ने अवसर का लाभ उठाते हुए तत्काल आरोप जड़ दिया कि कमलनाथ एक आरोपी को बचाने के लिए ‘ब्लैकमेल’ की राजनीति कर रहे हैं। हालांकि शाम होते होते कमलनाथ की ओर से सफाई आई कि ‘हनी ट्रैप’ की सीडी/पेनड्राइव कई लोगों के पास है और उन्होंने उसी बात को बस दोहराया भर है।‘’ पर शायद अगले दिन उनसे एक बड़ी रणनीतिक चूक हो गई।
इसे ‘हनी ट्रैप’ पेनड्राइव वाले बयान से पैदा हुई उलझन का असर कहें या कुछ और लेकिन अगले दिन 21 जून को कमलनाथ ने मीडिया से वर्चुअल संवाद किया और उसका फोकस कोरोना पर रखा। उन्होंने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश में कोरोना से एक लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं लेकिन सरकार आंकड़े को छुपा रही है। इसी तरह उन्होंने खेती किसानी और बेरोजगारी से लेकर अर्थव्यवस्था तक के कई मुद्दे उठाए। लेकिन जब सवाल पूछने की बारी आई तो कुछ पत्रकारों ने उमंग सिंघार केस और ‘हनी ट्रैप की पेनड्राइव’ वाले मामले पर उनसे सवाल कर डाले। और इन सवालों के जवाब में कमलनाथ ऐसी चूक कर बैठे जिसने मामले को ठंडा करने की कोशिशों पर सिर्फ पानी ही नहीं फेरा बल्कि उसमें और आग लगा दी।
कमलनाथ ने सवालों के जवाब में कहा कि वे न तो कोई धमकी दे रहे हैं और न ही इस मामले में राजनीतिक करना चाहते हैं। ‘हनी ट्रैप’ की यह पेनड्राइव उन्हें पुलिस ने उस समय दी थी जब वे मुख्यमंत्री थे और वह पेनड्राइव उन्होंने रख ली। हालांकि उन्होंने ‘हनीट्रैप’ की सीडी/पेनड्राइव मीडिया सहित कई अन्य लोगों के पास भी होने की बात कही लेकिन उसी रौ में वे यह भी कह बैठे कि ‘’मेरे पास जो सीडी जो पेनड्राइव है वो सबसे ओरिजनल होगी मेरे खयाल में…।‘’
इस मामले में आगे बात करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि आखिर ये हनी ट्रैप कांड है क्या? दरअसल कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे उस समय सितंबर 2019 में कुछ ऐसी महिलाएं पुलिस के हत्थे चढ़ी थीं जिन्होंने प्रदेश के राजनेताओं, अफसरों और बिजनेसमैन सहित कई रसूखदारों को कथित जिस्मफरोशी के जरिये ब्लैकमेल किया था। वह कांड सामने आने के बाद प्रदेश में हडकंप मच गया था और सरकार ने इसके लिए विशेष जांच दल का गठन किया था। खबरें यह भी थीं कि मामले से जुड़ी सीडी में कथित तौर पर भाजपा व कांग्रेस से जुड़े कई बड़े नेताओं के भी नाम हैं।
कारण चाहे जो भी रहा हो लेकिन उस मामले की जांच बाद में ठंडे बस्ते में चली गई। न तो कमलनाथ के समय उस मामले को अंजाम तक पहुंचाया गया और न बाद में शिवराजसिंह की सरकार ने इस मामले में कोई सक्रियता दिखाई। मामले से जुड़ी कई महिलाएं अब भी जेल में हैं। लोग भी एक तरह से उस मामले को या तो भूल चुके थे या उन्होंने मान लिया था कि ‘राजनीतिक मिलीभगत’ के चलते इस मामले में कुछ होना जाना नहीं है।
पर उमंग सिंघार पर शिकंजा कसता देख कमलनाथ ने ‘हनी ट्रैप’ पेनड्राइव का उल्लेख कर, एक तरह से गड़े मुर्दे को फिर उखाड़ दिया है। इस पेनड्राइव का जिक्र करने के बाद भाजपा ने जिस तरह मामले को लपका उससे कमलनाथ को भी संभवत: यह अहसास तो हो गया होगा कि उनसे तीर गलत दिशा में चल गया है। और शायद इसीलिए मामला दूसरी तरफ मोड़ने के लिहाज से उन्होंने मीडिया से बात करते हुए सरकार पर कोरोना से निपटने में असफल होने के आरोपों की बौछार कर दी थी। पर दुर्भाग्य से उनकी वह कोशिश भी बेकार सी गई और मीडिया कॉन्फ्रेंस में भी हनी ट्रैप का मुद्दा ही सबसे ज्यादा उभरकर प्रकाशित और प्रसारित हुआ।
कमलनाथ ने अपनी सफाई में भले ही जोर देकर यह कहा हो कि वे हनी ट्रैप पेनड्राइव का जिक्र करके न तो किसी को धमकी दे रहे हैं और न ही इस मामले में कोई राजनीति करना चाहते हैं लेकिन उनके बयान का अंदाज और टाइमिंग देखकर किसी को भी यह निष्कर्ष निकालने में आसानी होगी कि वे उस ‘पेनड्राइव’ को ‘काउन्टर अटैक’ के रूप में इस्तेमाल करने की ही बात कर रहे हैं। और फिर मीडिया से चर्चा में यह कहकर तो कमलनाथ ने खुद को और फंसा लिया कि उन्हें वह पेनड्राइव पुलिस ने दी थी और शायद वह सबसे ‘ओरिजनल’ है।
अब सवाल यह उठ रहा है कि भले ही कोई मुख्यमंत्री हो लेकिन किसी अपराध की जांच कर रही एजेंसी का इस तरह एक महत्वपूर्ण सबूत किसी राजनीतिक व्यक्ति को सौंपना क्या अपने आप में कानून का उल्लंघन नहीं है? और उससे भी ज्यादा उस व्यक्ति के द्वारा उस सबूत को अपने पास रख लेना क्या गैरकानूनी नहीं है? अगर ‘उच्चस्तरीय राजनीतिक समझौता’ नहीं हुआ तो ये दोनों ही बातें आने वाले दिनों में कमलनाथ को कानूनी तौर पर मुश्किल में डाल सकती हैं। जाहिर है तब तक प्रदेश की राजनीति में कोरोना की कम और हनीट्रैप की चर्चा ज्यादा होती रहेगी। (मध्यमत)
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