गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश में इन दिनों बिजली के संकट की बहुत चर्चा है। इस मुद्दे पर जमकर राजनीति भी हो रही है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार लोगों को पर्याप्त बिजली मुहैया नहीं करा पा रही है तो सरकार का जवाब है कि विपक्ष इस मामले में सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी कर रहा है, सरकार अपनी तरफ से पूरे प्रयास कर रही है कि लोगों को बिजली के संकट का सामना न करना पड़े।
वैसे ज्यादा दूर न जाएं, करीब दो साल पुरानी ही बात है जब मीडिया में खबरें छपी थीं कि मध्यप्रदेश पॉवर यानी बिजली के मामले में सरप्लस राज्य हो गया है। जून 2019 में आई वे खबरें कह रही थीं कि राज्य में बिजली की उच्चतम मांग 14 हजार मेगावाट है जबकि सरकार द्वारा अनुबंधित स्रोतों से राज्य को 16 हजार मेगावाट बिजली मिल रही है। उस समय बिजली विभाग के आला अधिकारी उस आधुनिक तकनीक को खरीदने की बात कह रह थे जो इस अतिरिक्त बिजली को स्टोर यानी सहेजकर रख सके।
और आज ठीक दो साल बाद, दो हजार मेगावाट सरप्लस बिजली रखने वाले उसी मध्यप्रदेश के, कई इलाके बिजली कटौती झेलने को मजबूर हैं। एक तरफ उत्पादन में आई गिरावट के कारण बिजली सप्लाई में लंबी अवधि की रुकावट आ रही है वहीं कई स्थानों पर रह रहकर होने वाली थोड़ी थोड़ी देर की कटौती ने लोगों को परेशान कर दिया है।
विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि पहले तो सरकार ने बिजली की कमी या कटौती होने से ही इनकार कर दिया था लेकिन जब चारों तरफ से कटौती की खबरें आने लगीं तो अब सरकार कह रही है कि वह पर्याप्त बिजली का हरसंभव इंतजाम करेगी। उधर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश की जनता को बिजली आपूर्ति में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। जैसे भी हो मांग की आपूर्ति के लिए सरकार पर्याप्त बिजली की व्यवस्था करेगी। बिजली की स्थिति की खुद उच्चस्तरीय समीक्षा करने के बाद मुख्यमंत्री अधिकारियों से कहा है कि वे समस्या को तत्काल दूर करने के प्रयास युद्धस्तर पर करें।
मामले में मुख्यमंत्री का दखल ही बताता है कि सरकार बिजली की समस्या को लेकर कितनी गंभीर है। लेकिन इस मामले में प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित विभाग की बनती है। बिजली विभाग को खुद इस संकट का पहले से अंदाजा होना चाहिए था और उसके लिए एहतियाती उपाय भी किए जाने चाहिए थे। बिजली विभाग के मंत्री प्रद्युम्नसिंह तोमर वैसे तो अपनी अन्यान्य गतिविधियों के लिए चर्चित रहते हैं लेकिन उन्हें विभाग पर अधिक ध्यान देना होगा। दिखावटी उपक्रम करने के बजाय विभाग की व्यवस्था और प्रबंधन को दुरुस्त करने का काम और अधिक गंभीरता से करना होगा।
मंत्री का काम हाथ में झाड़ू लेकर नालियों की सफाई करना या बिजली के खंभों पर चढ़कर पक्षियों के घोसले हटाना नहीं है। मंत्री का काम स्टाफ से काम लेना है और दूरगामी योजनाएं बनाकर ऐसे उपाय करना है जिससे जनता को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। यहां विभागीय मंत्री की संवेदनशीलता पर सवाल नहीं है, बल्कि सवाल समस्या का समाधान करने की एप्रोच पर है।
एक बात और… बिजली की कमी या कटौती को लेकर सरकार में जो परस्पर विरोधाभासी बयान सामने आए वे भी अच्छी बात नहीं है। कम से कम मंत्रिमंडल स्तर पर तो इस तरह के समन्वय का अभाव नहीं दिखना चाहिए। एक तरफ स्वयं मुख्यमंत्री का यह कहना कि संकट को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं और दूसरी तरफ विभाग के मंत्री का यह कहना कि कोई संकट ही नहीं है, लोगों में सरकार के स्टैंड पर सवाल खड़े करता है।
राज्य में बिजली का संकट कई कारणों से है। उसका एक बड़ा कारण कोयला आधारित बिजलीघरों का पर्याप्त क्षमता के साथ काम नहीं कर पाना भी है। और ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि संयत्रों के पास कोयले की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है। राज्य के बिजलीघरों पर कोल इंडिया लिमिटेड का कई करोड़ का बकाया है और कोल इंडिया ने अब कह दिया है कि जब तक पुराना बकाया नहीं चुकाया जाता वह कोयले की सप्लाई सामान्य नहीं करेगा।
दूसरी वजह लाइनों और बिजली वितरण से जुड़े पूरे तंत्र के रखरखाव की है। बताया जा रहा है कि पिछले पांच सालों में बिजली की लाइनों का समुचित रखरखाव ही नहीं हो पाया है। इसमें भी ग्रामीण क्षेत्र की हालत ज्यादा खराब है। कोरोना से लेकर राजनीतिक कारणों तक के चलते इस काम पर उतना ध्यान नहीं जा पाया और पानी गले तक आ गया।
इस बार मानसून का रवैया संकेत दे रहा है कि प्रदेश में बारिश औसत से कम रहेगी। यानी आने वाले दिनों में खेती किसानी को सिंचाई के लिए बिजली की जरूरत और अधिक होगी। ऐसे में बिजली की आपूर्ति के पर्याप्त इंतजाम अभी से कर लिए जाने चाहिए ताकि किसानों या ग्रामीण क्षेत्र में कोई असंतोष पैदा न हो। इसी तरह यदि कोरोना के कारण प्रभावित हुआ जनजीवन सामान्य स्थिति की ओर लौटता है तो भी बिजली की मांग बढ़ेगी, यानी शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति को लेकर दबाव बनने वाला है।
समय रहते बिजली विभाग के पूरे तंत्र को सक्रिय करके इस संकट से निपटने के उपाय तत्काल किए जाने चाहिए। और हां, बेहतर यह होगा कि इस मामले में आरोप प्रत्यारोप की राजनीति से बचा जाए। पॉवर क्राइसिस को पॉवर गेम में बदलने से न तो पॉवर सप्लाई सामान्य हो सकेगी और न ही जनता को परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।(मध्यमत)
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