आखिर वही हुआ जिसकी आशंका मैंने पहले ही जता दी थी। शिवराजसिंह मंगलवार को, वह ‘नालायक’ संबोधन ले उड़े जो उन्हें प्रदेश कांग्रेस के नेता कमलनाथ ने अपनी ‘मीट द प्रेस’ में दिया था। मैंने बोला ही था कि यह ‘नालायक’ शब्द कांग्रेस और कमलनाथ के साथ वैसे ही चिपक जाएगा जैसा गुजरात चुनाव के दौरान मणिशंकर अय्यर द्वारा कहा गया ’नीच’ शब्द चिपका था।
बुधवार को राजधानी के एक प्रमुख अखबार ने शिवराज के हवाले से पहले पेज पर मुख्य खबर का हेडिंग ही यह दिया- ‘‘हां, हम नालायक हैं, क्योंकि गरीब को जीने का दे रहे हैं हक’’ अखबार लिखता है कि अवैध कॉलोनियों को वैध करने के राज्यस्तरीय अभियान की शुरुआत करते हुए ग्वालियर में अपने 33 मिनिट के भाषण में शिवराज ने 8 बार ‘नालायक’ शब्द का इस्तेमाल किया।
माना कि कमलनाथ के पास वक्त बहुत कम है। लेकिन बेहतर होगा वे मीडिया को बयान देने में कोई जल्दबाजी न करें। इससे तो रोज नए विवादों और संकटों में फंसते चले जाएंगे। उन्हें जल्दबाजी ही दिखानी है तो पूरे प्रदेश का दौरा करने में दिखाएं, कांग्रेसियों को मैदानी स्तर पर सक्रिय करने में दिखाएं, पार्टी के सारे नेताओं को एकजुट करने में दिखाएं।
बयान देकर विवाद में उलझने या विरोधियों को खुद पर वार करने का मौका देने से तो कांग्रेस का नुकसान ही होगा। ‘मीट द प्रेस’ में मैंने एक बात और नोट की। हालांकि वह बात कमलनाथ पहले भी कई बार कह चुके हैं लेकिन उन्होंने मीडिया के सामने उसी बात को बहुत शान से दोहराया।
कमलनाथ ने कहा कि ‘’मेरा डंपर से, रेत से या शराब से कोई संबंध नहीं रहा। मेरा सार्वजनिक जीवन बेदाग रहा है, उस पर कोई उंगली नहीं उठा सका, मुझ पर कोई मुकदमा नहीं है।‘’ नाथ की यह बात सच हो सकती है, लेकिन मैं समझता हूं इसे बार बार दोहराने या इसे अपनी यूएसपी बताने से उन्हें परहेज करना चाहिए।
मैंने ऐसा क्यों कहा? वो इसलिए कि भाजपा के वर्तमान नेतृत्व और रणनीतिकारों ने चुनाव लड़ने के औजार और तौर तरीके सभी बदल दिए हैं। अब वे सबसे पहले अपने दुश्मन को नैतिक रूप से ही कमजोर करते हैं। भले ही कमलनाथ आज तक ‘बेदाग’ रहे हों लेकिन मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए वोट पड़ने तक भी वे ‘बेदाग’ रहेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
चाहे कमलनाथ हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया। इनका अपना बहुत बड़ा कारोबार भी है और इनके पास अथाह संपत्तियां भी। इस बात से भी कोई असहमत नहीं होगा कि आज कोई भी कारोबार सौ टंच खरा और सौ फीसदी ईमानदारी से नहीं चलता। सरकार के पास तमाम एजेंसियां हैं, आपको क्या पता कि कल को कौनसी एजेंसी कौनसा पर्चा या पुर्जा ढूंढ लाए और आपके ‘बेदाग जीवन’ के दावे की हवा निकाल दे।
मैं जो कह रहा हूं मेरे पास उसका आधार भी है। अभी तो खेल शुरू ही हुआ है और अभी से ऐसे सवाल उस ‘अनमैनेजेबल मीडिया’ पर तैरने लगे हैं जिसका जिक्र मैं दो दिनों से कर रहा हूं। यकीन न आए तो मध्यप्रदेश भाजपा के पूर्व मीडिया प्रभारी और वर्तमान में नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष डॉ. हितेष वाजपेयी की फेसबुक वॉल पर जाकर देखिए।
जिस दिन कमलनाथ की ‘मीट द प्रेस’ हुई उसी दिन डॉ. वाजपेयी ने कमलनाथ को ‘कंपनी बहादुर’ की संज्ञा देते हुए अपनी फेसबुक वॉल पर कुछ सवाल डाले हैं। वे पूछते हैं- ‘’SMPL कंपनी से आपका या आपके परिवार का क्या सम्बन्ध है ‘कंपनी-बहादुर’ साहब?’’ और दूसरा सवाल है- ‘’पिछले 40 सालों से आपके हवाई ज़हाज़ और हेलीकाप्टर का खर्च जो कंपनी उठा रही है, उसका आपके और आपके परिवार से क्या सम्बन्ध है?’’
उसी दिन डॉ. वाजपेयी एक अन्य पोस्ट में लिखते हैं- ‘’अभी तो हमने ‘कंपनी बहादुर साहब’ की 21 कंपनी के बारे में परिचय ही नहीं दिया है! फिर आगे इन कंपनियों ने क्या क्या ‘फर्जीवाड़े ’ किये हैं यह भी सामने आएगा तो क्या आप हमें ‘धमकाओगे’?’’
अब थोड़ी सी बात कमलनाथ के मशहूर ‘छिंदवाड़ा मॉडल’ की भी कर लें। उन्होंने मीडिया के सामने उस दिन विकास की अपनी अवधारणा को लेकर कुछ बातें करते हुए विकास के ‘छिंदवाड़ा मॉडल’ का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि उनके संसदीय क्षेत्र का ज्यादातर इलाका आदिवासी है और जो आदिवासी एक समय ठीक से कपड़े भी नहीं पहन पाते थे वे आज जीन्स पहनकर घूम रहे हैं।
आदिवासी जीन्स पहनें, अच्छी बात है। इसे तरक्की की पहचान के रूप में आप प्रचारित करें, उसमें भी कोई बुराई नहीं है। छिंदवाड़ा की सड़कें वहां के नगरीय विकास को लेकर भी आपने बहुत काम किया है इसमें भी दो राय नहीं। लेकिन बात घूम फिरकर वहीं आ जाती है कि छिंदवाड़ा अंतत: एक लोकसभा क्षेत्र भर है। और यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि वहां की जीत के पीछे सिर्फ विकास ही एकमात्र कारण नहीं है। उसमें ‘खास प्रबंधन’ का बड़ा हाथ है।
मध्यप्रदेश में आज की तारीख में 51 जिले हैं और उनमें से छिंदवाड़ा सिर्फ एक जिला भर है। राज्य में लोकसभा की 29 सीटें हैं उनमें से वह एक सीट है। वहां के विकास और समूचे मध्यप्रदेश के विकास में बहुत बड़ा अंतर है। एक ग्राम पंचायत के विकास मॉडल को आप उस पंचायत वाले जिले तक में तो पूरी तरह लागू कर नहीं सकते, फिर मध्यप्रदेश जैसे इतने बड़े राज्य में एक जिले के विकास की अवधारणा को कैसे अमली जामा पहना सकेंगे।
मेरी बात को आप ‘गुजरात मॉडल’ की मोदीजी की अवधारणा से समझिए। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद मोदीजी ने और भाजपा ने देश भर में प्रचारित किया था कि यदि उनकी सरकार आई तो ‘गुजरात मॉडल’ की तर्ज पर पूरे देश का विकास किया जाएगा। सरकार आ भी गई, लेकिन चार साल के बाद हकीकत क्या है यह सबके सामने है।
जिस तरह एक राज्य का मॉडल पूरे देश पर लागू नहीं हो सकता उसी तरह एक जिले का मॉडल पूरे प्रदेश पर लागू नहीं हो सकता। जिस तरह भारत विविधताओं वाला देश है, उसी तरह मध्यप्रदेश भी विविधताओं वाला राज्य है। एक जिले के लिए संसाधन जुटाना आसान है, पूरे प्रदेश के लिए बहुत कठिन। इसलिए आपको यदि मध्यप्रदेश का नेतृत्व करना है तो ‘छिंदवाड़ा सिंड्रोम’ से बाहर निकलकर सोचना होगा।
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कहने को तो अब भी बहुत कुछ है लेकिन इस प्रसंग को मैं यहीं समाप्त करता हूं। वैसे भी प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं, ऐसी बातें आपसे आगे भी होती रहेंगी…