मत देखो सूरज को
सिर्फ उजाले की नजर से
देखो उस मिट्टी की नजर से
जो अपनी कोख में पलते अंकुर को
पालने पोसने के लिए
देखती है उसकी ओर
देखो उस चिडि़या की नजर से
जो तड़के ही तैयार करने लगती है अपने पंख
उसके स्वागत में उड़ने के लिए
देखो उस कली की नजर से
जो इंतजार करती है उसका
अपने संपूर्ण यौवन के लिए
देखो उस आदमी की नजर से
जो बिना कंबल के गुजारता है सर्द रात
धूप की आस में
देखो सूरज को
उस उषा के लिए
जो अंधेरे की तमाम साजिशों के बावजूद
लेकर आती है संदेश
कि सूरज है तो
उम्मीद है
देखो सूरज को
जीवन की ऊष्मा के लिए
– गिरीश उपाध्‍याय

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