कानूनों पर ‘आधे सच’ का रायता मत फैलाइए, मुश्किल होगी

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), नैशनल पॉपुलेशन रजिस्‍टर (एनपीआर) और नैशनल रजिस्‍टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) को लेकर चाहे जितना बवाल मच रहा हो लेकिन सीएए को लेकर अपने कदम एक इंच भी पीछे हटाने से इनकार करने वाली सरकार समानांतर रूप से अपने लक्ष्‍य की ओर बढ़ रही है। सीएए पर जहां सरकार और सत्‍ता संगठन ने लोगों को अपने स्‍तर पर समझाने का अभियान चला रखा है वहीं एनपीआर को लेकर भी सरकार निर्धारित कार्यक्रम पर ही चल रही है।

इस बीच केरल सरकार सीएए का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। केरल का सुप्रीम कोर्ट में जाना यह भी बताता है कि वे सरकारें जो कह रही हैं कि वे अपने यहां इस कानून को लागू नहीं करेंगी उन्‍हें भी कहीं न कहीं यह अहसास है कि ऐसा करना उनके बूते का नहीं है। राजनीति के लिहाज से ऐसे बयानों का भले ही अपना अलग नफा-नुकसान हो लेकिन कानूनी रूप से ऐसे बयानों पर टिके रहना बहुत मुश्किल है और शायद इसीलिए उन्‍हें सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी है। यदि वे अपने स्‍तर पर सीएए को लागू न करने की ताकत रखते तो उन्‍हें कोर्ट में जाना ही क्‍यों पड़ता।

इसलिए लोगों को भी यह समझना होगा कि जो भी उनसे यह कह रहा है कि वे सीएए या एनपीआर आदि की प्रक्रिया का पालन न करें वह अपनी राजनीति कर रहा है। इसका परिणाम उसे नहीं बल्कि उन लोगों को ही भुगतना होगा जो ऐसा करेंगे। सीएए और एनपीआर का विरोध करते हुए बड़े जोर शोर से यह कहा जा रहा है कि कोई सरकारी आदमी यदि आपके पास इस बारे में जानकारी मांगने आए तो उसे या तो जानकारी न दें या फिर गलत जानकारी दें। लेकिन इसके परिणाम क्‍या होंगे और उनसे निपटना कितना कठिन होगा यह कोई नहीं बता रहा।

पिछले दिनों ऐसा ही एक बयान ‘लेखिका’ अरुंधति रॉय ने दिया था। उनकी बेशकीमती सलाह यह थी कि सरकारी कर्मचारी यदि जानकारी लेने आएं तो लोग अपना नाम रंगा-बिल्‍ला या कुंगफू कुत्‍ता कुछ भी लिखवा दें। अपने घर का पता रेसकोर्स रोड लिखवा दें। इसी तरह बॉलीवुड की ‘अभिनेत्री’ स्‍वरा भास्‍कर ने मीडिया के सामने कहा कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है न मेरे पास डिग्री है और न ही अपने बाप दादा की जमीन के कागजात, यदि मेरा नाम एनआरसी से छूट गया तो?

ऐसी ही कई बेशकीमती (या शेखचिल्‍ली) सलाहों के बीच गृह मंत्रालय के हाल ही में दिए गए एक स्‍पष्‍टीकरण ने एनपीआर मामले को और उलझा दिया है। ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ ने गुरुवार को लीड खबर छापी कि एनपीआर में जानकारी देने को लेकर केंद्रीय मंत्रियों के बयानों के बाद असमंजस की स्थिति बनी। मंत्री पीयूष गोयल ने जहां कहा कि एनपीआर में आधार की जानकारी देने की बात वैकल्पिक होगी। वहीं सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि एनपीआर की जानकारियां स्‍वप्रमाणन या स्‍वघोषणा के आधार पर ली जाएंगी जबकि गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि जानकारी स्‍वैच्छिक होगी।

अखबार ने गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया कि मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि एनपीआर के तहत कोई भी व्‍यक्ति अपने दस्‍तावेजों के बारे में जानकारी न देने का विकल्‍प चुन सकता है। कोशिश यह रहेगी कि ऐसे लोगों को जानकारी देने के महत्‍व और उसकी उपयोगिता के बारे में समझाया जाए। लेकिन इसके साथ ही एनपीआर में यह प्रावधान भी है कि यदि परिवार के सदस्‍यों के बारे में सही जानकारी नहीं दी गई तो परिवार के मुखिया पर 1000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।

अखबार ने लिखा कि गृह मंत्रालय ने जानकारियों को लेकर ‘वैकल्पिक’ और ‘अनिवार्य’ की स्थिति और कानूनी पेचीदगियों को भी स्‍पष्‍ट कर दिया है। मंत्रालय के मुताबिक निश्चित रूप से जानकारी न देने का विकल्‍प मौजूद होगा। यदि किसी के पास आधार, पासपोर्ट, ड्राइविंग लायसेंस या वोटर कार्ड नहीं है तो वह संबंधित जानकारी वाले कॉलम को खाली छोड़ सकता है।

लेकिन मंत्रालय का कहना है कि जानकारियों को लेकर अनिवार्यता का मतलब यह है कि यदि आपके पास कोई भी दस्‍तावेज है तो उसकी जानकारी आपको एनपीआर के फार्म में देनी ही होगी। आप ऐसा नहीं कर सकते कि आपके पास आधार, पासपोर्ट, ड्राइविंग लायसेंस या वोटर कार्ड आदि हों और जानकारी का कॉलम आप खाली छोड़ दें।

इस खबर से नया बवाल मच गया। मामला बढ़ता देख गुरुवार को गृह मंत्रालय ने ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की खबर को टैग करते हुए ट्विटर पर सफाई दी कि ‘’यह समाचार भ्रम पैदा करने वाला है। इससे ऐसा लगता है कि एनपीआर के लिए जानकारी देते समय व्‍यक्ति को इन दस्‍तावेजों की जानकारी देना अनिवार्य होगा, लेकिन इस तरह के निष्‍कर्ष निकालना सही नहीं है।‘’

सरकार ने ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की खबर को तो भ्रामक बताते हुए कह दिया कि वह सही नहीं है और दस्‍तावेजों की जानकारी देना अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन उसके इस स्‍पष्‍टीकरण ने मामले को और पेचीदा बना दिया है। ट्विटर पर ही एक यूजर ने लिखा- ‘’यह स्‍पष्‍टीकरण आधे अधूरे मन से दिया गया है। आप सिर्फ यह कह रहे हैं कि जानकारी लेने आने वाले कर्मचारी को ये दस्‍तावेज नहीं दिखाने होंगे। (लेकिन) क्‍या आप दावे से कह रहे हैं कि यदि व्‍यक्ति के पास ऐसा कोई दस्‍तावेज यदि है भी, तो भी वह उसकी जानकारी न देने का अधिकार रखता है।‘’

दरअसल चाहे सीएए हो, एनपीआर या कि एनआरसी, सभी मामलों में रायता इसलिए भी फैला है कि कोई भी पक्ष सही और साफ-साफ जानकारी नहीं दे रहा। दोनों तरफ से आधा सच ही बोला जा रहा है। इस स्थिति ने विरोधियों के लिए जहां विन-विन सिचुएशन बना दी है वहीं सरकार की मुश्किल को और बढ़ा दिया है। सच और आधेसच का यह द्वंद्व जितना लंबा खिंचेगा वास्‍तविकता पर कोहरा उतना ही घना होता जाएगा। टुकड़ों टुकड़ों में बात करने के बजाय सरकार को चाहिए कि वह एक बार में ही पूरी बात ठीक से बताए और यदि किसी मामले में कोई स्‍पष्‍टीकरण देना भी पड़े तो वह कम से कम ऐसा तो न हो जो एक नया भ्रम पैदा कर दे।

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