कहींं तुम पूछ मत लेना यह गूंगा बोल सकता है

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एनडीटीवी पर एक दिन के प्रतिबंध और भोपाल जेल एनकाउंटर पर हमारे एक पाठक ने मुनव्‍वर राणा की यह कविता भेजी है, आप भी पढि़ए…

मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है,

हुकूमत के ईशारे पे तो मुर्दा बोल सकता है,

यहां पर नफरतों ने कैसे कैसे गुल खिलाए हैं,

लुटी अस्मत बता देगी दुपट्टा बोल सकता है,

हुकूमत की तवज्जह चाहती है ये जली बस्ती,

अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है,

कई चेहरे अभी तक मूंह जबानी याद हैं इसको,

कहींं तुम पूछ मत लेना यह गूंगा बोल सकता है,

बहुत सी कुर्सियां इस मुल्क में लाशों पे रखी हैं,

ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता है,

सियासत की कसौटी पर परखिए मत वफादारी,

किसी दिन इन्तकामन मेरा गुस्सा बोल सकता है।

मुनव्‍वर राणा

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